Rajasthan Crime News : सोशल मीडिया से बहक रहे नाबालिग। घरवालों की मर्जी बगैर कर रहे शादी। राजस्थान में 5 साल में बालिग के 6,134 और नाबालिग के 18,552 केस दर्ज किए गए हैं।
पंकज वैष्णव
Rajasthan Crime News : सोशल मीडिया की चकाचौंध में हर कोई भ्रमित है। बालिग और बड़े-बुजुर्गों पर इसका असर भले ही कम हो लेकिन 8 से 16 साल तक के करीब 62 फीसदी बच्चे (नाबालिग) इसकी गिरफ्त में हैं। फूहड़ और अश्लील रील्स-शॉर्ट्स बढ़ते बच्चों में भटकाव पैदा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर आइडियल बातें बोलते रंगे-पुते लोग अंदर से कितने हिंसक और खोखले हैं इसे बच्चे नहीं समझ पाते हैं। इंस्टाग्राम, फेसबुक और स्नेपचैट पर बच्चे देर रात तक चैटिंग में लगे रहते हैं। मम्मी-पापा न देख पाएं इसलिए चैट को डिलीट या हिडेन मोड में डाल देते हैं। चैट में बच्चे-बच्चियों में जो संवाद होता है उसे ही यह सच मान लेते हैं। इसका असर है कि कच्ची उम्र में बच्चों के कदम बहक रहे हैं। विभाग के आंकड़े बताते हैं कि परिवार की मर्जी के बगैर घर से भागकर शादी करने वालों में बालिग की अपेक्षा नाबालिग की संख्या तीन गुना ज्यादा है। पिछले 5 साल की स्थिति पर नजर डालें तो बालिग लड़कियों के घर से भागकर शादी करने के 6134 केस दर्ज हुए, नाबालिग के भागकर शादी करने के 18 हजार 552 मामले आए हैं।
मनोविज्ञानियों का मानना हैं कि बच्चों पर भरोसा करें लेकिन आंख मूंदकर नहीं। 10 साल के बाद बच्चों के हावभाव पर नजर रखना शुरू कर दें। बच्चे अगर आईने के सामने देर तक खड़े होने लगे तो सतर्क हो जाएं। बच्चे अगर बेवजह नई-नई चीजों की डिमांड करें तो वजह जानने की कोशिश करें। बच्चे अगर खास टीचर, लड़के या लड़की का जिक्र बातों में बार-बार करें तो समझ जाएं कि तारीफ बेवजह नहीं है।
दर्ज कुल प्रकरण - 18,552
चालान पेश - 8,204
एफआर लगाई - 9,969
जांच पेंडिंग - 379
आरोपी गिरफ्तार - 10,144
दर्ज कुल प्रकरण - 6,134
चालान पेश - 1,282
एफआर लगाई - 4,769
जांच पेंडिंग - 83
आरोपी गिरफ्तार - 1,780
8-16 साल तक के बच्चे गिरफ्त में - 62 फीसद
1- बालिग लड़कियों के 6051 केस निस्तारित, 83 की जांच जारी।
2- 18 हजार 173 नाबालिग केस निस्तारित, 379 केस जांच में।
3- बालिग लड़कियों को बहला-फुसलाकर ले जाने के मामलों में 1780 आरोपी गिरफ्तार। नाबालिग लड़कियों के मामलों में 10,144 गिरफ्तार, चालान पेश हुए।
ऐसे मामले में सामाजिक स्तर पर प्रयास की जरूरत है। उदयपुर में जैन समाज ने कुछ माह पूर्व किशोरियों के लिए सेमिनार आयोजित किया था। इसका उद्देश्य यही था कि वे प्यार की चकाचौंध में पड़ने की बजाय पारिवारिक और सामाजिक दायित्व समझें।
नाबालिग लड़के-लड़कियों का दिमाग अपरिपक्व होता है। वे रील और रियल लाइफ के फर्क को वे समझ नहीं पाते। हार्मोंस के प्रभाव से शारीरिक आकर्षण होना स्वाभाविक है। लेकिन यह बताने की जरूरत है कि आकर्षण प्यार नहीं है। जरूरत है कि बालक-बालिकाओं को सही समय पर यौन शिक्षा दी जानी चाहिए। स्कूली शिक्षा में यह प्रभावी रूप से शामिल होना चाहिए।
डॉ. गायत्री तिवारी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, मानव विकास और परिवार अध्ययन