Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के प्रभाव के कारण दुबारा तख्तापलट का खतरा मंडरा रहा है। बांग्लादेश की सेना और यूनुस हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा नहीं रोक पा रहे हैं।
Bangladesh Crisis: बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति में जमात-ए-इस्लामी के बढ़ते प्रभाव के चलते तख्तापलट की संभावनाएं नजर आ रही हैं। वर्तमान अंतरिम सरकार और सेना, जिनके प्रमुख मुहम्मद यूनुस हैं, देश में अवामी लीग और अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जारी हिंसा को काबू में लाने में असफल रहे हैं।
शेख हसीना की सत्ता से बेदखली के एक महीने बाद भी बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिति में सुधार नहीं (Bangladesh Crisis) आया है। मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार और जनरल वाकेर-उज-जमान की सेना इस्लामवादी हिंसा और कानून-व्यवस्था की समस्याओं को सुलझाने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।
जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islami), जो कि कट्टरपंथी इस्लामवादी ताकतों का हिस्सा है, ने हाल के महीनों में तेजी से ताकत हासिल की है और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) को कमजोर कर दिया है। बांग्लादेश में अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक रेडिकलाइजेशन का खतरा बढ़ता जा रहा है। हाल ही में, पाकिस्तान की तरह भीड़ ने पुलिस थाने में घुसकर एक अल्पसंख्यक हिन्दू लड़के की मॉब लिंचिंग की कोशिश की।
कट्टरपंथी इस्लामवादी जमात-ए-इस्लामी ने मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठनों के साथ अपने संबंध मजबूत कर लिए हैं और हिफाजत-ए-इस्लाम और अंसार-उल-बांग्ला टीम जैसे अल्ट्रा-इस्लामिस्ट समूहों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इन ताकतों ने छात्र नेताओं को भी प्रभावित और नियंत्रित किया है।
इस समय बांग्लादेश की सेना और अंतरिम सरकार दोनों ही हिंसा को रोकने में असमर्थ हैं। यूनुस केवल शेख हसीना के खिलाफ बयानबाजी तक सीमित रह गए हैं, जबकि सेना हिंसा के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सुस्त है। भारत ने जमात-ए-इस्लामी के उभार को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि इसका प्रभाव भारत के सुरक्षा पर पड़ सकता है। जमात ने 1990 के दशक में भारत में SIMI की स्थापना की थी और वर्तमान में कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक भावना को बढ़ावा दे रहा है।
हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चुनाव की घोषणा करने में जल्दबाजी नहीं दिखा रही है, लेकिन देश की कमजोर सरकार, बढ़ती इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतें और गिरती हुई अर्थव्यवस्था गंभीर संकट पैदा कर सकती हैं। शेख हसीना के समर्थक आने वाले महीनों में फिर से संगठित हो सकते हैं और बीएनपी तथा जमात-ए-इस्लामी को चुनौती दे सकते हैं।
अंतरिम सरकार के नेता मुहम्मद यूनुस भले ही शेख हसीना को निशाना बना रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश की राजनीति में असली खतरा कट्टरपंथी इस्लामवादियों से है। रिपोर्टों के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी ने 5 अगस्त के बाद बीएनपी के नुकसान पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और बांग्लादेश एक बार फिर सियासी विस्फोट का सामना कर सकता है।
भारत बांग्लादेश में हो रही हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता पर नजर बनाए हुए है, लेकिन स्थिति को देखते हुए सक्रिय कदम उठाने में संकोच कर रहा है। बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्ज के कारण भी स्थिति विकराल हो सकती है।