अमेरिका की सख्त वीजा नीतियों से निराश होकर भारतीय छात्रों की नज़र अब जर्मनी पर! कम फीस, आसान वीजा और बेहतरीन कोर्सेज़ के चलते जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। अनुमान है कि 2030 तक ये संख्या चार गुना होकर 1.14 लाख तक पहुँच सकती है, जिससे जर्मनी भारतीय छात्रों के लिए नया पसंदीदा अध्ययन स्थल बनता जा रहा है। क्या जर्मनी अमेरिका को पछाड़ पाएगा?
अमेरिका की बदलती नीतियों के चलते भारतीय छात्रों का अमेरिका में शिक्षा से मोहभंग हो रहा है। इस बीच जर्मनी नई पसंद बनकर उभर रहा है। जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या चीन को पछाड़ते हुए पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत बढ़कर करीब 60,000 हो गई है।
जर्मनी की एकेडमिक एक्सचेंज सर्विस ‘डॉयचर एकेडेमिसचर ऑस्टौशडिएनस्ट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार विंटर 2023-24 सेमेस्टर में जर्मनी में 49,483 भारतीयों का दाखिला हुआ था।
हालिया ट्रंप प्रशासन की नीतियों के कारण अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या गिरावट आई है। जुलाई 2025 में 46त्न कमी दर्ज हुई। मार्च-मई 2025 में केवल 9,906 एफ-1 वीजा भारतीय छात्रों को मिले, जबकि 2024 में यह संख्या 13,478 थी।
एसोसिएशन आॉफ इंटरनेशनल एजुकेटर्स (एनएएफएसए) का अनुमान है कि इस बार अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय दाखिले 30-40त्न घट सकते हैं, जिससे 1.5 लाख कम छात्र और लगभग 7 अरब डॉलर की सामुदायिक खर्च में कमी होगी।
ट्रंप प्रशासन की ओर से 6,000 से अधिक वीजा रद्द करना, 100 दिनों से ज्यादा की वीजा प्रतीक्षा अवधि और वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण (वर्क परमिट) को लेकर अनिश्चितता ने भारतीय छात्रों को मायूस किया है। ऐसे में भारतीय छात्र अब अमेरिका को जोखिम भरा और जर्मनी को सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं।
जर्मनी में पढ़ाई की चाहत का कारण वहां कम फीस (अधिकतर पब्लिक यूनिवर्सिटी में लगभग 350 यूरो प्रति सेमेस्टर), इंडस्ट्री से जुड़े कोर्स, और पढ़ाई के बाद 18 महीने का जॉब-सीकिंग वीजा है।
जो कि आगे ईयू ब्लू कार्ड और स्थायी निवास का रास्ता खोलता है। रिपोर्ट्स के अनुसार 2030 तक जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या चार गुना होकर 1.14 लाख तक पहुंच सकती है।
ईयू ब्लू कार्ड, ईयू से बाहर के शिक्षाविदों के लिए निवास परमिट है। इसे पाने के लिए विश्वविद्यालय डिग्री और न्यूनतम वेतन मानदंड पूरा करने वाला कार्य अनुबंध होना जरूरी है।