AI-driven treatment: यही कोई एक साल पहले की बात है, डॉक्टरों ने रोगी जोसेफ़ कोट्स से पूछा था कि अब सिर्फ़ एक ही चीज़ तय करनी है कि वे घर पर मरना चाहते हैं या अस्पताल में मरना चाहते हैं ?
AI-driven treatment: अमेरिका में कोट्स नामक शख्स ने यह मान लिया था कि वह एक गंभीर बीमारी की वजह से बस मरने ही वाले हैं, लेकिन ए.आई. (AI) के कारण उनकी ज़िन्दगी (life) बच गई। कोट्स उस समय 37 साल के थे और वाशिंगटन के रेंटन में रहते थे और मुश्किल से होश में थे। वह महीनों से पोइम्स सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ रक्त विकार से जूझ रहे थे, जिसके कारण उनके हाथ और पैर सुन्न हो गए थे, उनका दिल बड़ा हो गया था और गुर्दे काम करना बंद कर रहे थे। डॉक्टरों को उनके पेट से थोड़े-थोड़े दिनों में कई लीटर तरल पदार्थ निकालने पड़ते थे। वो इतने बीमार हो गए थे कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट नहीं करवा पाए, जबकि यही एकमात्र उपचार (treatment) था, जिससे उन्हें राहत मिल सकती थी, लेकिन कोट्स की गर्लफ्रेंड तारा थियोबाल्ड हार मानने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए उसने फिलाडेल्फिया के डेविड फैजगेनबाम नामक एक डॉक्टर को ई मेल भेज कर मदद मांगी, जिनसे उनकी एक साल पहले एक दुर्लभ रोग सम्मेलन में मुलाकात हुई थी।
अगली सुबह तक डॉ. फजगेनबाम ने जवाब दिया था, जिसमें कोट्स के विकार के इलाज के लिए कीमोथैरेपी, इम्युनोथैरेपी और स्टेरॉयड का पहले परीक्षण करवाने के लिए कहा गया। एक सप्ताह के भीतर, कोट्स उपचार के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगे। वे चार महीनों में स्टेम सेल प्रत्यारोपण के लिए पर्याप्त रूप से स्वस्थ हो गए और आज, वे ठीक हो रहे हैं। जीवनरक्षक दवा का विचार डॉक्टर या किसी व्यक्ति ने नहीं सोचा था। इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडल से तैयार किया गया था।