साइंस जर्नल में छपे शोध में एल नीनो को लेकर चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इससे गर्मी बढ़ने की आम धारणा खत्म हो गई है।
कोलकाता में सबसे ज्यादा बारिश का बीते 40 साल का रिकॉर्ड टूटने की खबर ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। इसका कारण El Nino नामका मौसमी 'दानव' भी हो सकता है। जी हां, एक स्टडी में चौकाने वाला खुलासा हुआ है कि एल नीनो को सिर्फ सूखे से नहीं जोड़ना चाहिए। यह भारत के लिए एक दोधारी तलवार की तरह है, जहां एक ओर यह कुछ हिस्सों को सूखे के चपेट में लाता है, वहीं दूसरे इलाकों में भारी बारिश के बाद बाढ़ भी ला सकता है।
लंबे समय से माना जाता रहा है कि एल नीनो की स्थिति भारतीय मॉनसून को कमजोर करती है और देशभर में सूखे का खतरा बढ़ाती है। लेकिन साइंस जर्नल में छपे अध्ययन में बताया गया है कि असल में तस्वीर इतनी सीधी नहीं है। इससे आने वाले सालों में जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के दबाव के बीच मौसम विज्ञान के लिए नए तरह से अनुमान लगाना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है ताकि जानमाल के नुकसान से बचा जा सके।
रिसर्च में भारतीय मौसम विभाग के 1901 से 2020 तक के बारिश के आंकड़े टेस्ट किए गए। साथ ही, 1979 से 2020 तक के वायुमंडलीय डेटा का सहारा लेकर यह समझने की कोशिश की गई कि किस तरह एल नीनो भारी बारिश का केंद्र बनाता है। इसके नतीजे चौंकाने वाले हैं। देश के अपेक्षाकृत ड्राई हिस्सों जैसे दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पश्चिम भारत में एल नीनो के दौरान बारिश कम हुई। लेकिन इसके उलट मॉनसून के सबसे अधिक वर्षा वाले इलाके मध्य और दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थिति बिल्कुल अलग दिखी। यहां बारिश की घटनाओं की फ्रीक्वेंसी भले कम होती है, लेकिन जब बारिश होती है तो उसका स्वरूप कहीं अधिक प्रचंड हो जाता है।
उत्तर-पश्चिम इलाके में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली जैसे राज्य शामिल होते हैं। वहीं दक्षिण-पूर्वी भारत की बात करें तो, इसमें अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। मध्य भारत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जबकि दक्षिण-पश्चिम में महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा पड़ते हैं।
इसका कारण है Convective Buoyancy यानी बादलों को ऊर्जा देने वाली वायुमंडलीय शक्ति। एल नीनो की गर्माहट इसको बढ़ा देती है, जिससे भीषण बारिश की संभावना और बढ़ जाती है। आंकड़ों के मुताबिक, 250 मिमी से ज्यादा बारिश वाले दिन की संभावना एल नीनो के प्रभाव वाले सालों में 43% तक बढ़ जाती है। वहीं, मध्य भारत के मॉनसूनी क्षेत्र में यह आशंका 59% तक पहुंच जाती है।
रिसर्च में कहा गया है कि भारत के लिए आपदा प्रबंधन की दृष्टि से यह शोध बेहद उपयोगी है। क्योंकि एल नीनो का असर अब सिर्फ सूखा बढ़ाने वाले कारक के रूप में नहीं देखा जा सकता। हकीकत यह है कि यह पैटर्न सूखे और बाढ़, दोनों तरह की चरम स्थितियों को अलग-अलग भौगोलिक हिस्सों में जन्म दे सकता है। इसलिए, अगर वैज्ञानिक एल नीनो की तीव्रता और उसके दौरान चरम वर्षा की आशंका को बेहतर तरीके से मॉडल कर सकें, तो भारत में मौसम का पूर्वानुमान कहीं ज्यादा सटीक हो पाएगा। खासकर बाढ़ वाले क्षेत्रों में इससे बड़ी संख्या में जानमाल की रक्षा की जा सकती है।
1- फोरकास्ट सिस्टम - सरकार और मौसम विभाग को ENSO आधारित (El Nino–Southern Oscillation) पूर्वानुमान को मॉडल में शामिल करना चाहिए।
2- एग्रीकल्चर - किसानों को सिर्फ सूखे की चेतावनी नहीं, बल्कि संभावित बाढ़ की आशंका की जानकारी भी समय पर मिलनी चाहिए।
3- इंफ्रास्ट्रक्चर - शहरी इलाकों और ग्रामीण गांवों में जल निकासी, तटबंध और राहत तंत्र को इस बदलते परिदृश्य के हिसाब से मजबूत करना होगा।