Voluntary Deportation: अमेरिका में एक लाख से ज़्यादा भारतीयों पर 'स्वैच्छिक निर्वासन' का खतरा मंडरा रहा है। क्या है पूरा मामला? आइए जानते हैं।
अमेरिका (United States Of America) में एच1-बी वीज़ा (H1-B Visa) धारकों के लाखों भारतीय बच्चे (Indian Children), जो नाबालिग अवस्था में अमेरिका आए थे और अब 21 साल के होने वाले हैं, एक गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहे हैं। अब वो एनआरआई माता-पिता के आश्रित (एच-4 वीज़ा धारक) नहीं माने जा सकते। अमेरिकी राज्य टेक्सास (Texas) में हाल ही में आए एक अदालती फैसले ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है, जिसमें डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स (डीएसीए) के तहत नए आवेदकों को वर्क परमिट देने पर रोक लगा दी गई है।
अमेरिकी नीति के अनुसार, अब तक एच-4 वीज़ा धारकों यानी आश्रितों को ‘एजिंग आउट’ (आयुसीमा पार करने) के बाद नए वीज़ा की स्थिति चुनने के लिए 2 साल का समय दिया जाता था, पर हाल ही में आव्रजन नियमों में हुए बदलाव और अदालतों में चल रहे मामलों के कारण उन्हें इस प्रावधान के हटाए जाने का डर सता रहा है। आशंका बनी हुई है कि या तो उन्हें स्वयं भारत लौटने के लिए मजबूर किया जाएगा या फिर वो अमेरिका में ‘बाहरीलोगों' के रूप में जीने को मजबूर होंगे।
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डीएसीए अवैध रूप से आए प्रवासियों (जिनमें वे बच्चे भी शामिल हैं जो 21 वर्ष की आयु के बाद अपने माता-पिता के आश्रित नहीं रह पाते) को अस्थायी रूप से 2 सालों के लिए निर्वासन से सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें नवीनीकरण की संभावना होती है। इस प्रावधान के बिना, भारतीय युवाओं को भविष्य में भारी अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है। और भी गंभीर मुद्दा यह है कि आश्रित बच्चों के माता-पिता ने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया हुआ है, पर इसके लिए इंतज़ार का समय 12 से लेकर 100 वर्ष तक है। हालांकि 'स्वैच्छिक निर्वासन' (Voluntary Deportation) के संकट का सामना कर रहे कुछ भारतीय बच्चों पर एफ-1 (छात्र वीज़ा) का विकल्प है पर यह प्रक्रिया भी आसान नहीं है। कुछ युवा अब कनाडा (Canada) या यूके (UK) जाने पर विचार कर रहे हैं।
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