Pager Attack Lebanon: लेबनान में पेजर बम धमाकों के बाद दुनिया भर में इस बात की चर्चा है कि आखिर एंड्राइड और आई फोन के जमाने में दुनिया का इतना बड़ा आतंकी संगठन पेजर का इस्तेमाल क्यों कर रहा है।
Pager Attack Lebanon: दुनिया भर के देशों में जंग हो या आतंकी संगठनों के हमले,सभी अत्याधुनिक संचार माध्यमों और हथियारों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ऐसी क्या वजह है कि आतंकी संगठन हिज़बुल्लाह ( Hezbollah) आज के जमाने में एंड्रॉइड या आई फोन के बजाय पेजर (Pager) का इस्तेमाल कर रहे हैं। आइए इसकी पड़ताल करते हैं। दरअसल ये डिवाइस सन 1980 और 90 के दशक में लोकप्रिय थी, लेकिन अब इसका इस्तेमाल बहुत कम है। ब्लास्ट ने मुख्य रूप से हिज़बुल्लाह को प्रभावित किया है। हिज़बुल्लाह खुद को बहुत चालाक समझ रहा था कि पेजर में लोकेशन पता न चल पाने के कारण वह अपने हर मकसद में कामयाब होगा, लेकिन इजराइल और मोसाद ( Mossad) ने नहले पर दहला तकनीक का इस्तेमाल कर हिज़बुल्लाह पर पेजर हमला (Pager Attack Lebanon) किया।
साइबर एक्सपर्ट के अनुसार पेजर की सुरक्षा व्यवस्था मोबाइल फोन या अन्य इंटरनेट आधारित डिवाइसों की तुलना में सीमित होती है। इसके अलावा पेजर सिस्टम में एन्क्रिप्शन नहीं होता, जिससे इसका डेटा किसी भी इंटरसेप्टर से कैप्चर किया जा सकता है, हालांकि पेजर का उपयोग करने वाले मुख्य तौर पर छोटे टैक्स्ट मैसेज ही भेजते हैं। गौरतलब है कि पेजर का आविष्कार सन 1921 में हुआ था, लेकिन इसकी शुरुआत 1950 और 1960 के दशक में हुई थी और भारत में पेजर की शुरुआत 1995 में हुई थी व 1980 और 1990 के दशक में पेजर का काफ़ी इस्तेमाल किया गया था, लेकिन अब ज़्यादातर पश्चिमी देशों में ये दुर्लभ हैं।
सूचना तकनीक विशेषज्ञों के मुताबिक पेजर रेडियो सिग्नल पर काम करते हैं, जबकि मोबाइल फ़ोन सेल्युलर नेटवर्क पर निर्भर करते हैं और पेजर में कॉल या मल्टीटास्किंग की सुविधा नहीं होती, जबकि मोबाइल फ़ोन से कॉल, मैसेज, इंटरनेट, वीडियो स्ट्रीमिंग वगैरह किया जा सकता है। पेजर का स्टोरेज मोबाइल फ़ोन के मुकाबले कम होता है,लेकिन गोपनीयता अधिक रहती है। पेजर हैक करना मुश्किल होता है, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में इसका खंडन भी किया गया है। हालांकि मोबाइल फ़ोन ( Mobile Phone ) हैक करना भी मुश्किल होता है, लेकिन यह उसके ऑपरेटिंग सिस्टम और सिक्योरिटी सिस्टम पर निर्भर करता है। पेजर का इस्तेमाल मुख्य रूप से क्लोज़्ड जगह किया जाता है, जहां फ़ोन पर निर्भरता काम में देर करवा सकती है, जैसे अस्पताल, सिक्योरिटी कंपनियां और आपातकालीन सेवाओं का स्थान आदि।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि लेबनान में हिज़बुल्लाह के लड़ाके आपस में मैसेज भेजने के लिए पेजर का उपयोग करते रहे हैं। एक वजह यह है कि मोबाइल ट्रेस और हैक कर कर सकते हैं, लेकिन पेजर को हैक और ट्रैस नहीं कर सकते। इसलिए हिज़बुल्लाह ने संचार के लिए इस डिवाइस को चुना। वहीं पेजर पेजर बम धमाके की हकीकत यह है कि पेजर की बैटरी गर्म होने के कारण पफट गई और हमलावर अपने मकसद में कामयाब हो गया।
प्रतिरक्षा सूत्रों ने बताया कि हिज़बुल्लाह के लड़ाके आपस में बातचीत करने के लिए केवल पेजर का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इनसे किसी पर नजर रखना आसान नहीं होता। हिज़बुल्लाह के लड़ाके तीन तरह के पेजर इस्तेमाल करते हैं, सये हैं मोटोरोला LX2, Teletrim और गोल्ड अपोलो रग्ड पेजर AR924 और तीनों पेजर का काम सिर्फ संदेश देना और रिसीव करना था। हजारों हिज़बुल्लाह लड़ाकों के पास पेजर हैं। हिज़बुल्लाह मानता है कि स्मार्टफोन की तुलना में पेजर ट्रैक या हैक करना आसान नहीं है। हिज़बुल्लाह के कम्युनिकेशन नेटवर्क में कई स्तर की संचार व्यवस्था है। इसमें सिविलियन नेटवर्क भी शामिल है। साथ ही पारंपरिक सूचना प्रणाली भी है। हिजबुल्लाह ने अपना फाइबर ऑप्टिक्स नेटवर्क डवलप किया है. ताकि इसे इजराइल या कोई और देश इंटरसेप्ट न कर सके।
रक्षा व आईटी विशेषज्ञों के अनुसार पेजर दरअसल एक वायरलेस टेलीकम्युनिकेशन डिवाइस है,जो अल्फान्यूमेरिक या वॉयस मैसेज एक से दूसरी जगह पहुंचाते हैं। इनको बीपर के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि हिज़बुल्लाह संचार का एक सुरक्षित तरीके मान रहा था, वही उस पर हमले का हथियार बन गए। माना जा रहा है कि हिज़बुल्लाह के साथ लंबे समय से संघर्ष में लगे इज़राइली बलों ने पेजर्स निशाना बना कर एक गुप्त अभियान चलाया,वहीं पेजर में लीथियम बैटारी गर्म करने की तकनीक काम में ली गई और खतरनाक पीईटीए कैमिकल इस्तेमाल किया गया, जिससे इन धमाकों को अंजाम दिया गया। पेजर के अंदर लिथियम बैटरी अधिक गर्म होने कर वजह से ये धमाके हुए। ये बैटरियां गर्म करने के लिए उसके अंदर विस्फोटक मौजूद था। इस तकनीक का उपयोग करके ये विस्फोट किए गए।
पेजर साधारण रेडियो डिवाइसेस हैं,जिनसे छोटे संदेश या सिग्नल हासिल किए जाते हैं। इनका इस्तेमाल खास तौर की रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिये किया जाता है। लेबनान और हिजबुल्लाह को यह पता नहीं होगा कि अगर किसी को पेजर में विस्फोट करने हैं तो उसे रिमोट से ट्रिगर होने वाले एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करना होगा, जिसे पहले से पेजर में छिपाया गया हो और पेजर लोगों तक पहुंचने से पहले कंपनी में ही टैम्पर किए गए हों या फिर पेजर के अंदर चुपके से कोई हथियार छिपाया जाए। अगर हिजबुल्लाह को यह बात पहले से पता होती तो वह पेजर का उपयोग ही नहीं करता। लेबनान और हिजबुल्लाह को यह पता नहीं होगा कि सुरक्षित पेजर में भी धमाके हो सकते हैं। इधर इज़राइल का कहना है कि वह यह जानना चाहता था कि हिज़बुल्लाह अब पेजर का इस्तेमाल करेगा या नहीं।
सूचना तकनीक विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह के हमले फ्रिक्वेंसी जाम कर के, हैकिंग या वायरलेस सिग्नल कंट्रोल के माध्यम से भी हो सकते हैं। इसके लिए रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन (RFID) का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें वायरलेस कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल्स खराब किया जाता है या फिर पेजर की तकनीक का ही सहारा लेकर उसमें रखे विस्फोटक ट्रिगर किया जाता है, यह सबसे एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर है।