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पाकिस्तान में महिलाओं की न्याय व्यवस्था फेल: सिंध की GBV लड़ाई से खुलासा !

Gender Based Violence: पाकिस्तान के सिंध में GBV रोकने की कार्य योजना ने न्याय व्यवस्था की नाकामी उजागर की, जहां सिर्फ 1.2% केस में सजा मिलती है।

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Oct 17, 2025
पाकिस्तान में महिलाओं पर अत्याचार। (फोटो: एएनआई.)

Gender Based Violence: पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हाल ही एक बड़ा संवाद (Sindh GBV Plan 2030) हुआ, जहां महिलाओं पर हो रही लैंगिक हिंसा (Gender Based Violence Pakistan) रोकने की प्रांतीय योजना पर बात हुई। डॉन के अनुसार यहां कार्यकर्ताओं ने साफ कहा- देश की पूरी न्याय व्यवस्था महिलाओं के लिए बेकार साबित हो रही है! कमजोर पुलिस, सुस्त कोर्ट और पुरानी सोच वाली व्यवस्था पीड़ितों को इंसाफ से दूर रखती है। यह खुलासा सिंध महिला वकील गठबंधन (Women Justice Failure Sindh) और मानवाधिकार आयोग ने किया।

क्यों सिर्फ 1.2% केस में ही सजा ? चौंकाने वाली सच्चाई

अधिवक्ता शाजिया निजामानी ने बताया, लैंगिक हिंसा के हजारों केस दर्ज होते हैं, लेकिन सिर्फ 1% से भी कम में दोषी को सजा मिलती है। वजह? पुलिस को ट्रेनिंग नहीं, वकीलों को कम सैलरी और आश्रय घरों के लिए पैसे का टोटा। ऊपर से कोई सेंट्रल डेटाबेस नहीं, जिससे आंकड़े जुटाना नामुमकिन है। पुलिस वाले और जजों की पुरुषवादी सोच पीड़ितों को और दुख देती है। सिंध में यह समस्या इतनी गहरी है कि गांव-शहर हर जगह महिलाएं डर में जी रही हैं।

2030 तक 50% GBV खत्म करने का बड़ा प्लान

सिंध सरकार का नया लक्ष्य है- 2030 तक लैंगिक हिंसा के केस आधे कर दें और सजा की दर 20% तक ले जाएं। कैसे? हर जिले में इमरजेंसी टीम बनेंगी, अस्पतालों में काउंसलर तैनात होंगे और कोर्ट में तेज सुनवाई होगी। शाजिया ने सुझाव दिया- पुलिस में 50% महिलाएं भर्ती करें, जजों को GBV पर ट्रेनिंग दें। ट्रांसजेंडर और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए अलग हेल्पलाइन भी जरूरी। यह प्लान अगर चला तो सिंध मिसाल बनेगा!

धन की कमी से विशेष कोर्ट अटके, क्या करें ?

पूर्व आयोग अध्यक्ष नुजारत शिरीन बोलीं, GBV के लिए अलग कोर्ट बनाने के पैसे नहीं। बेहतर है, मौजूदा कोर्ट को तेज बनाएं। विशेषज्ञ खालिद मल्लाह ने कहा, विदेशी दानदाताओं से फंडिंग लाएं। डॉ. कौसर खान ने जोर दिया- गांवों में जागरूकता कैंप चलाएं, ताकि लोग पुलिस पर भरोसा करें। अल्पसंख्यक कार्यकर्ता सीमा माहेश्वरी ने डेटा जुटाने के गलत तरीकों पर चोट की।

शहरी vs ग्रामीण: महिलाओं का दर्द अलग-अलग

अनिता पिंजानी ने मांगा शोध : शहरों में महिलाएं चुप रहती हैं, गांवों में परिवार दबाव डालता है। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट मासूमा उमर ने दुख जताया, कानून हैं लेकिन पुलिस असंवेदनशील। समुदाय अभी भी डर और चुप्पी के जाल में फंसा है। यह संवाद ने साफ कर दिया- बिना सिस्टम चेंज के GBV नहीं रुकेगा। ( ANI)

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