क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी की गति धीरे-धीरे धीमी हो रही है? नासा के अनुसार, हर 100 साल में दिन 1.7 मिलीसेकंड लंबा हो जाता है। जानिए चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण और जलवायु परिवर्तन कैसे हमें 25 घंटे के दिन की ओर ले जा रहे हैं।
The Slowing Earth: क्या आपने कभी कल्पना की है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमारी धरती पर दिन-रात 24 नहीं, बल्कि 25 घंटे होंगे? यह विज्ञान-कथा नहीं, बल्कि पृथ्वी की धीमी होती गति का परिणाम है। नासा (NASA) के वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी की घूर्णन गति धीरे-धीरे कम हो रही है। हालांकि समय की यह मंद चाल इतनी धीरे हैं कि हमें इसका एहसास तक नहीं होता, लेकिन ब्रह्मांड की घड़ी में यह बदलाव लगातार दर्ज हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हर सौ साल में पृथ्वी का एक दिन लगभग 1.7 मिलीसेकंड लंबा हो जाता है। यही छोटा-सा अंतर करीब 20 करोड़ वर्ष में पूरे घंटे का रूप ले लेगा।
नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के वैज्ञानिक उपग्रहों की लेजर रेंजिंग, रेडियो सिग्नलों और परमाणु घड़ियों की मदद से पृथ्वी की हर सूक्ष्म हरकत पर नजर बनाए हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी हमें धरती की गति धीमी होने का अहसास नहीं है लेकिन करोड़ों वर्षों बाद एक दिन-रात 25 घंटे का होगा।
पृथ्वी के घूर्णन में आ रही कमी के कई कारण काम कर रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख भूमिका चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की है। चंद्रमा पृथ्वी के महासागरों को अपनी ओर खींचता है, जिससे ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है। यही ज्वारीय घर्षण पृथ्वी के घूर्णन पर धीरे-धीरे ब्रेक का काम करता है और परिणामस्वरूप चंद्रमा हर साल लगभग 3.8 सेंटीमीटर दूर खिसकता जा रहा है। इसके अलावा पृथ्वी के बाहरी कोर में पिघले लोहे की गति और द्रव्यमान में बदलाव भी गति को प्रभावित कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, हिमनदों का पिघलना, भूजल का दोहन और समुद्र स्तर में वृद्धि भी पृथ्वी की गति को कम कर रहे हैं।
शोध से पता चलता है कि 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी और चंद्रमा के निर्माण के समय एक दिन केवल 6 घंटे का था। 3.5 अरब वर्ष पहले दिन 12 घंटे का था। 2.5 अरब वर्ष पहले 18 घंटे और 1.7 अरब वर्ष पहले दिन 21 घंटे का था। डायनासोर के युग में दिन 23 घंटे का था।