Designer Baby in Lab: दक्षिण अफ्रीका ने आनुवांशिक बदलाव के नियमों में ढील दी है। अब एक नई बहस शुरू हो गई है कि जब डिजाइर बच्चे, डिजाइनर इन्सान होंगे और फायदेमंद होगा या प्रकृति का कोप झेलना होगा।
Designer Baby in Lab: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI ) के मानव जीवन में बढ़ते दखल के खतरों के बीच कुदरत को अब तक की सबसे बड़ी चुनौती देने की नई तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। दक्षिण अफ्रीका ( South Africa )ने एक विवादास्पद कदम उठाते हुए नियमों में बदलाव कर आनुवंशिक रूप से संशोधित यानी जेनेटिकली मोडिफाइड ( genetic modification) मानव पैदा करने की अनुमति देने का रास्ता खोल दिया है। हालांकि इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि दक्षिण अफ्रीका के नए स्वास्थ्य अनुसंधान दिशा-निर्देशों से जीनोम एडिटिंग (gene editing) तकनीक का उपयोग करके भ्रूण में बदलाव किया जा सकता है। आनुवांशिक रोगों से निजात दिलाने के नाम पर जीएम मानव पैदा करने का मार्ग प्रशस्त करने वाले इस निर्णय के बाद वैश्विक स्तर पर नैतिक बहस फिर से शुरू हो गई है। आनुवांशिक बदलाव करने वाली तकनीक के दीर्घकालिक प्रभाव और नैतिक पक्षों (ethical concerns) को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं। दक्षिण अफ्रीका यदि इस जैव तकनीक (biotechnology) पर आगे बढ़ रही है, तो दुनिया में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का नया युग (designer humans) शुरू हो सकता है और इसके इस्तेमाल की होड़ लग सकती है।
यह समझना मुश्किल है कि दक्षिण अफ्रीका को नियमों में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी। क्योंकि बीमारियों के इलाज के लिए जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग तो अब भी हो ही रहा है। हाल ही में, सोमैटिक जीन एडिटिंग तकनीक का उपयोग करके सिकल सेल रोग का प्रभावी इलाज विकसित किया गया है। इसके लिए भ्रूण में आनुवांशिक संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होती है। सोमैटिक जीन एडिटिंग तकनीक में रोग के लिए जिम्मेदार मानव कोशिकाओं में बदलाव किया जाता है। इसीलिए इलाज के नाम पर भ्रूण में ही संशोधन करने की बात हजम नहीं हो रही है।
दक्षिण अफ्रीका का यह कदम पूरी दुनिया के लिए नैतिक और सामाजिक चुनौतियां पेश कर सकता है। इस तकनीक के फायदों और नुकसानों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इसका उपयोग मानवता के हित में ही हो। कॉटन, बैंगन और सरसों में आनुवांशिक बदलाव के दुष्परिणाम सामने आए हैं लेकिन व्यावसायिक हितों के टकराने से इनका ठीक से अध्ययन भी नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यदि 'जीेएम मानव' पैदा करने की नई होड़ शुरू हो गई तो न सिर्फ हमारा भविष्य बल्कि, प्रकृति का कोप भी कल्पना से परे होगा।