Vat Vriksh Bina Vat Savitri Puja : 26 मई को वट सावित्री व्रत है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा कर पति की दीर्घायु और सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। लेकिन शहरों में कई बार बरगद के पेड़ ढूंढ़ना मुश्किल होता है तो जानिए इस स्थिति में क्या करें।
Vat Savitri Puja Without Banyan Tree: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ यानी वट वृक्ष की पूजा की जाती है। यह पेड़ दृढ़ता, अमरता का भी प्रतीक है। मान्यता है कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का निवास होता है और देवी सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस पाए थे। इसलिए यह सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक है।
लेकिन महानगरों में लोगों के लिए बरगद के पेड़ ढ़ूंढ़ना आसान नहीं है, इसलिए प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय से जानते हैं कि ऐसी स्थिति में कैसे पूजा करें …
प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार वट सावित्री व्रत भावना प्रधान है। इसलिए पेड़ उतना आवश्यक नहीं है, जितना व्रत की भावना। श्रद्धा और मन से इसकी भावनाओं को आत्मसात करना, विधि विधान से पूजा करना। लेकिन बरगद का पेड़ न हो तो इन विधियों से पूजा कर सकते हैं।
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आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार यदि बरगद का पेड़ न मिले तो किसी स्थान से पहले ही बरगद के पेड़ की टहनी और पत्तियां लाकर उसको बरगद का पेड़ मानकर पूजा कर सकते हैं। इसके लिए इसे गमले या घर के पूजा स्थान पर स्थापित कर उसकी परिक्रमा पूरी कर लेनी चाहिए। किसी दूसरे वृक्ष को भी वट वृक्ष मानकर पूजा कर सकते हैं।
वट वृक्ष की टहनी मिलना भी संभव न हो तो वट वृक्ष का चित्र पूजा स्थान पर स्थापित कर उसे वट वृक्ष मानकर पूजा कर सकते हैं और परिक्रमा के लिए आप इसके चारों ओर घूम सकती हैं या उसी स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा के भाव को पूरा कर सकते हैं।
कुछ क्षेत्रों में आटे का वट वृक्ष बनाकर उसके पूजा की परंपरा है। इसके लिए आप शुद्ध आटे से एक छोटा बरगद का पेड़ बना सकती हैं। इसके बाद इसे पूजास्थल पर स्थापित कर विधि विधान से पूजा कर सकते हैं।
यदि बरगद का पेड़ न मिले तो सुपारी या कलश से भी पूजा कर सकते हैं। इसके लिए सुपारी या एक कलश लें और पूजा से पहले भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवी सावित्री का ध्यान करते हुए सुपारी या कलश में वट वृक्ष का आह्वान करें। मंत्रों का जाप करते हुए संकल्प लें कि आप इसे वट वृक्ष मानकर पूजा कर रहीं हैं और 108 बार परिक्रमा करें। साथ ही पूजन सामग्री अर्पित करें।
बरगद के बिना पूजा करने की विधि भी समान ही है, बस वट वृक्ष के बिना वैकल्पिक वस्तु का उपयोग करें।
1. प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
2. इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें और सोलह श्रृंगार करें।
3. पूजा स्थल को साफ करें और चौकी स्थापित करें।
4. पूजा सामग्री (जैसे फल, फूल, मिठाई, पूरियां, भीगे चने, रोली, अक्षत, धूप, दीप, कच्चा सूत या मौली) तैयार रखें।
5. अपनी चुनी हुई वैकल्पिक वस्तु (टहनी, सुपारी, चित्र आदि) को स्थापित करें।
6. सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें, फिर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवी सावित्री का आह्वान करें।
7. बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
8. ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
9. इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें।
10. इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
11. इसके बाद धूप, दीप नैवेद्य, रोली और अक्षत अर्पित कर ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। यम की भी पूजा करें।
12. अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें, कुमकुम अर्पित करें।
13. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
14. जल से वटवृक्ष (वैकल्पिक वस्तु) को सींचकर, कुमकुम अर्पित कर, उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन, 7 या 108 बार परिक्रमा करें।
15. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। आरती करें और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें।
16. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपये रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें। यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं।
17. पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को या योग्य साधक को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
18. इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें। यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं।
नोटः आचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार पूजा का महत्व श्रद्धा और भावना में निहित है। यदि आप निष्ठा से पूजा करती हैं तो साधन का महत्व नहीं है। बरगद का पेड़ न होने से भी पूजा का फल समान ही मिलेगा।