अनूपपुर। जिले में उगाए जाने वाले खरीफ की मुख्य तिलहनी फसलों में शामिल सोयाबीन की फसल अब किसानों के लिए उपयुक्त खेती नहीं मानी जा रही है। उपयुक्त खेत और बेमौसम बारिश से सोयाबीन फसल को होने वाले नुकसान से बचने अब किसानों ने धान सहित अन्य फसलों की ओर रूख किया है। जिसके कारण सोयाबीन की फसल के रकबों में ज्यादा बढोत्तरी नहीं हुई, लेकिन पिछले साल की तुलना में धान की फसल के लिए निर्धारित लक्ष्य में ६ हजार हेक्टेयर अधिक रकबे जरूरत अधिक बढ़ गए हैं। जो आगामी माह के दौरान बोई धान की फसल तैयार होकर किसानों के घरों तक पहुंचेगी। इससे पिछले डेढ़ साल से कोरोना महामारी के दौरान बेहाल रही खेती और इस वर्ष खरीफ की बुवाई में घर की जमा पंूजी को दांव पर लगाकर किए गए खेती से किसानों की माली हालत में सुधार की आशाएं झलकने लगी है। जबकि अनूपपुर में पिछले तीन वर्षो में सोयाबीन के लिए विभाग की तरफ से लगभग ५ हजार हेक्टेयर रकबा निर्धारित किया जा रहा है, जिसमें उत्पादन पूर्ति इससे कम ही हो रही है। किसानों का कहना है कि फिलहाल लौटती मानसून में झमाझम बरस रही पानी से धान की फसल को अधिक लाभ पहुंचेगा और दाने पुष्ट होंगे, जबकि इसके विपरीत कुछ किसानों के खेतों में लगी सोयाबीन, उरद सहित अन्य दलहनी तैयार हो रही फसलों को नुकसान की आशंका बनी हुई है। जानकारों का मानना है कि अगर बारिश का यह सिलसिला आगामी कुछ दिनों तक बना रहा तो किसानों की तैयार हो रही फसलें बर्बाद हो जाएगी। किसान अरूण पाल सिंह बताते हैं कि पूर्व में वह कम रकबे पर सोयाबीन की खेती करना आरम्भ किए थे, लेकिन बाद में फसल बेहतर नजर आने पर उन्होंने ५ एकड़ पर खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके खेती की मिट्टी काली मिट़्टी है, और पानी का जमाव नहीं होता, जिसके कारण उन्हें नुकसान नहीं होता है। लेकिन पड़ोस के किसान के खेत में बनी डोलिया में पानी भराव और काली मिट्टी नहीं होने के कारण उन्हें खर्च के अनुपात फसल का उत्पाद नहीं हो पाता। इसके कारण अधिकांश किसानों ने सोयाबीन की पूर्व निर्धारित रकबे को कम करते हुए अब धान की खेती आरम्भ कर दी है। वहीं जिले में सोयाबीन की फसल के प्रति किसानों का अधिक रूख नहीं होने और खेती नहीं होने के कारण भी किसान इस फसल पर अपनी खेती का दांव नहंी लगाते। जिसके कारण यहां सोयाबीन की फसल की खेती लगभग नियत रकबे या उससे कम में ही उत्पादित हो रही है।[typography_font:18pt]बॉक्स: सोयाबीन के लिए नहीं उपयुक्त अनूपपुर के खेत[typography_font:18pt]विभागीय जानकारी के अनुसार जिले के चारों विकासखंड अनूपपुर, जैतहरी, कोतमा और पुष्पराजगढ़ में सिर्फ पुष्पराजगढ़ के कुछ नर्मदा बेल्ट (कछारीय क्षेत्र)से जुड़े ग्रामीण अंचलों में सोयाबीन की खेती होती है। इसके अलावा जिले के तीन अन्य विकासखंड में दो-चार हेक्टेयर के अलावा सोयाबीन की खेती नहीं होती है। सोयाबीन की फसल के लिए काली मिट्टी क्षेत्र और पानी का जमाव नहीं होना बताया जाता है। अमरकंटक की मैकाल पर्वतीय क्षेत्र के दूसरी छोर डिंडौरी में नर्मदा कछारीय मिट्टी होने के कारण वहां सोयाबीन की अच्छी पैदावार होती है, जबकि पुष्पराजगढ़ के क्षेत्र में खांटी, मोंहदी, चंदनघाट, बेनीबारी, बिलासपुर, कुम्हारवार, दमहेड़ी सहित आसपास के अन्य गांव हैं, जहां सोयाबीन की फसल होती है।[typography_font:18pt]बॉक्स: बेमौसम बारिश और बाजार का अभाव[typography_font:18pt]जिले में नर्मदा बेसिन के कारण बेमौसम बारिश और सोयाबीन के लिए बेहतर मार्केट के अभाव में भी किसानों ने सोयाबीन से दूरी बनाई है। कृषि विभाग के जानकारों के अनुसार अनूपपुर का मौसम एकल फसली क्षेत्र है। पुष्पराजगढ़ विकासखंड के अधिकांश हिस्सों में दोहरी फसल उपजाई जाती है। इसमें नर्मदा बेल्ट के कारण खरीफ की फसल में सोयाबीन की फसल भी शामिल हैं। जबकि अन्य तीन विकासखंड में खरीफ की फसल के बाद रबी की कम मात्रा में फसल उपजाया जाता है। [typography_font:18pt]बॉक्स: तीन साल धान की खेती आंकड़ा(हजार हेक्टेयर)[typography_font:18pt]वर्ष निर्धारित लक्ष्य पूर्ति[typography_font:18pt]२०२१ १२२.०० ००[typography_font:18pt]२०२० ११६ ११८.४७[typography_font:18pt]२०१९ ११५.२० ११५.२० [typography_font:18pt]वर्सन:[typography_font:18pt]सोयाबीन के लिए यहां की खेत उपयुक्त नहीं है, कछारीय क्षेत्र में इसकी खेती होती है। लेकिन मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से भी अब किसान नुकसान के डर से सोयाबीन की खेती से दूरी बना रहे हैं। इससे धान का रकबा बढ़ा है।[typography_font:18pt]एनडी गुप्ता, उपसंचालक कृषि अनूपपुर।[typography_font:18pt;" >-------------------------------------------------