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यहां महर्षि भृगु ने किया था तप, तपस्या पूरी होने के बाद यही छोड़ गए कमंडल

विरासत: कमंडल में हाथ डालने से जल प्राप्ति होने पर पापों से मिलती है मुक्ति

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Here Maharishi Bhrigu did penance, after the completion of penance, th

यहां महर्षि भृगु ने किया था तप, तपस्या पूरी होने के बाद यही छोड़ गए कमंडल

अनूपपुर। पवित्र नगरी अमरकंटक में धूनी पानी के समीप महर्षि भृगु ने कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान के दर्शन होने के उपरांत तपस्या पूर्ण करते हुए महर्षि अपना कमंडल यहीं छोड़ कर चले गए थे। आज भी यह कमंडलनुमा आकृति चट्टानों पर बनी हुई है। जिसमें हाथ डालने पर यदि जल प्राप्त हो जाता है तो ऐसी मान्यता है कि उस व्यक्ति के सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। दूसरी ओर यह भी मान्यता है कि जिस व्यक्ति को जल प्राप्त हो जाता है वह पुण्य का भागीदार होता है। और जिसे जल प्राप्ति नहीं होती उसे पापी की श्रेणी में गिना जाता है।
भगवान विष्णु के अपमान का पश्चाताप की थी तपस्या
नर्मदा मंदिर अमरकंटक के मुख्य पुजारी धनेश द्विवेदी वंदे महाराज ने बताया कि यज्ञ में सबसे पहले ब्रह्मा विष्णु और महेश में किस देवता की उपासना की जाए इसका निर्धारण करने की जिम्मेदारी ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु को दी थी। जिसके बाद सर्वप्रथम महर्षि भृगु अपने पिता ब्रह्मा के पास गए और परीक्षा लेने के लिए उनका अनादर करने लगे, जिससे नाराज ब्रह्मा क्रोधित हो उठे, घबराकर महर्षि भृगु वहां से कैलाश पर्वत की ओर भगवान भोलेनाथ की परीक्षा लेने के लिए चले गए। यहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ का अनादर परीक्षा लेने के लिए किया, जिस पर वह भी क्रोधित हो उठे। अंत में महर्षि बैकुंठधाम भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए पहुंचे। जहां भगवान सो रहे थे, जिस पर परीक्षा लेने के उद्देश्य से महर्षि भृगु ने उनके सीने पर लात मार दी। जिस पर नींद से उठ कर भगवान विष्णु ने क्रोध करने की बजाय महर्षि से कहां की महर्षि कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं लगी। यही महर्षि भृगु की परीक्षा पूरी हुई और भगवान विष्णु को देवताओं में श्रेष्ठ घोषित किया गया। जिसके बाद भगवान बह्मा विष्णु और महेश का अनादर किए जाने पर पश्चाताप के लिए महर्षि भृगु ने पवित्र तपोभूमि अमरकंटक के धुनी पानी पर सैकड़ों वर्षो तक तपस्या की। जिसके बाद देवताओं केदर्शन दिए जाने एवं क्षमा करने के बाद महर्षि भृगु अपनी तपस्या पूरी कर कमंडल यहीं छोड़ते हुए वापस चले गए।
कमंडल से निकली जलधारा नर्मदा में होती है समाहित
महर्षि प्रभु के कमंडल नुमा चट्टानी आकृति से निरंतर जल की धारा भी प्रवाहित होती रहती है। जिसे कारा कमण्डल नदी कहा जाता है। जो कि आगे चलकर नर्मदा नदी में समाहित हो जाती है। इस पवित्र स्थल को देखने तथा पूजा अर्चना के लिए प्रतिदिन यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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