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धनतेरस के दिन भगवान महावीर ने समवशरण को छोड़कर जंगल में ध्यान पुरुषार्थ प्रारंभ किया था: मुनिश्री

धनतेरस के दिन भगवान महावीर ने समवशरण को छोड़कर जंगल में ध्यान पुरुषार्थ प्रारंभ किया था: मुनिश्री

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धनतेरस के दिन भगवान महावीर ने समवशरण को छोड़कर जंगल में ध्यान पुरुषार्थ प्रारंभ किया था: मुनिश्री

धनतेरस के दिन भगवान महावीर ने समवशरण को छोड़कर जंगल में ध्यान पुरुषार्थ प्रारंभ किया था: मुनिश्री

अशोकनगर. मेरी छोटी सी बुद्धि भी उसी आत्मा से उत्पन्न हुई है जो केवलज्ञान प्राप्त करने की क्षमता रखता है। हमें अपनी क्षमता पर भरोसा नहीं है जिस दिन हमारे अंन्दर ये विश्वास जाग जायेगा उसी दिन आप मोक्षमार्ग पर निकल पड़ेंगे उक्त उदगार मुनिश्री निर्वेगसागरजी महाराज ने सुभाषगंज में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे।


उन्होंने बताया कि अच्छे व्यापार से धन कमाया जा सकता है, यहां तक की दुगना भी किया जा सकता है फिर भी उसमें कुछ न कुछ तो खर्च होता ही है। इसी प्रकार आपके प्रभु स्तवन से पुण्य की प्राप्ति होती हैं, इसलिए पूजन पाठ आदि के माध्यम से पुण्य को प्राप्त करते रहना चाहिए।

उन्होंने धनतेरस का महत्व बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन भगवान महावीर समवशरण को छोड़कर जंगल में जाकर ध्यान में लीन हो गये। योग निरोध मुक्ति प्राप्त करने के लिए अंतिम ध्यान पुरुषार्थ प्रारंभ किया था। भगवान महावीर समवशरण में सबकुछ छोड़कर गये थे जिसे प्राप्त कर लोगों ने कहा था कि हम धन्य हो गये कि प्रभु मुक्ति प्राप्त करने गये और सारा धन वैभव लोगों को मिल गया। इसलिये इस दिन को धनतेरस कहते है।

इसके बाद अमावस्या को महावीर ने सिद्ध अवस्था को प्राप्त किया इसलिये अमावस्या को भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन शाम को इंद्रभूति गौतम गणधर को केवल ज्ञान हुआ था इसलिये शाम को ६४ रिद्धि के प्रतीक स्वरूप दीपक जलाते है।


धर्मसभा के पहले आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज की अष्ट द्रव्यों से पूजा की गई जिसका सौभाग्य युवा वर्ग के संरक्षक विजय धुर्रा, शैलेन्द्र श्रृंगार, दिनेश महिदपुर व राकेश जैन सहित अन्य भक्तों को मिला।