
कलेक्ट्रेट में विकलांगों की मुसीबत
अशोकनगर. भले ही प्रशासन विकलांगों को सरकारी ऑफिसों में तमाम सुविधाओं के दावे करता हो। लेकिन विकलांगोंं को अपनी आवाज प्रशासन व अधिकारियों के कानों तक पहुंचाने के लिए मुसीबत भरी 26 सीडिय़ां पार करना पड़ती हैं। फिर चाहे उन विकलांगों को बैसाखी के सहारे या दोनों पैर न होने के बावजूद घिसटते हुए इन सीडिय़ों को चढऩा पड़े, लेकिन विकलांगों की इस परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं है और उन्हें कलेक्ट्रेट की मुसीबत भरी सीडिय़ां चढऩे की परंपरा का सख्ती से पालन करना पड़ता है। तब कहीं वह अधिकारियों के पास पहुंचकर अपनी समस्या बता पाते हैं। जबकि कलेक्ट्रेट में विकलांगों के लिए लिफ्ट भी लगी है, लेकिन लिफ्ट सिर्फ कुछ दिन के लिए ही चालू हुई थी और बंद पड़ी हुई है।
विकलांगों की समस्या की तीन कहानियां-
1. बेटे की मौत पर सहायता राशि के लिए घिसटकर पहुंचा पिता-
गोरा गांव निवासी दलवीरसिंह गेगरीन की बीमारी से ग्रसित है, 20 साल पहले एक पैर कटा और दो महीने पहले दूसरे पैर भी कट गया। पुत्र गोविंद की बिच्छू के काटने से मौत हो गई, इससे बेटे की मृत्यु पर सहायता राशि की मांग करने दलवीर घिटसते हुए सीडिय़ां चढ़कर पहुंचा।
2. विकलांग सहायता के लिए बैसाखी ने लगाया पार-
बावड़ीखेड़ा निवासी करतारसिंह बंजारा का एक पैर नहीं है, विकलांगता प्रमाण पत्र तो मिल गया लेकिन सहायता राशि स्वीकृत नहीं हुई। इससे करतारसिंह बैसाखी के सहारे बड़ी मुश्किल से कलेक्ट्रेट की सीडिय़ों को चढ़कर अधिकारियों तक पहुंचा।
3. आवास के लिए डंडे के सहारे ऑफिस तक पहुंचा-
बावड़ीखेड़ा निवासी मौकमसिंह बंजारा भी विकलांग है और एक पैर कमजोर होने की वजह से चलने के लिए उसे डंडे का सहारा लेना पड़ता है। आवास स्वीकृत नहीं हुआ तो वह आवेदन करने कलेक्ट्रेट पहुंचा, लेकिन डंडे के सहारे उसे सीडिय़ां चढऩा पड़ी।
Published on:
06 Feb 2019 11:15 am
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