पिछले कुछ समय से इन शिविरों से कई तरह की खबरें भी आ रही हैं। इनमें उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। खबरों के अनुसार- इस दौरान लोगों खासकर बच्चों ने नए कपड़े पहने और एक दूसरे को ईद की बधाई दी। बता दें, 1970 के दशक के अंत में म्यानमार में हुए हमलों के बाद हजारों की संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचने शुरू हुए थे। इस तहर से पहुंचने वाले लोगों के पास अपनी पहचान के लिए कोई दस्तावेज भी नहीं था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार- इस वजह से वे रोजी-रोटी जुटाने के लिए कानूनी रूप से काम कर सकते और ना ही शिक्षा हासिल कर पाते हैं। शिविरों में पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। इनमें से ज्यादातर को स्कूल जाने का मौका नहीं मिलता।
एक मीडिया रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के हवाले से कहा गया है कि नए शरणार्थी शिविरों में कुछ महीनों में पांच हजार बच्चे पैदा होंगे। जबकि अकेले संयुक्त राष्ट्र की सुविधाओं में हर महीने 300 बच्चे जन्म लेते हैं।
बुरी हालत में रह रहे हैं शरणार्थी पिछले कुछ समय से मीडिया में खबरें आ रही हैं कि शिविरों में रोहिंग्याओं को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें रह रहे लोगों की आंखों में अभी भी अपनी जन्मभूमि पर लौटने का सपना है। एक मीडिया रिपोर्ट में थंगखाली शरणार्थी शिविर में आठ दिन की अपनी बेटी को उठाए 20 साल की सितारा के बारे में लिखा गया है। रिपोर्ट में सितारा कहती है कि- ‘मैं चाहती हूं, एक दिन मेरी बेटी म्यांमार देखे।’