
नई दिल्ली।
चीन की ताइवान से दुश्मनी जगजाहिर है। ऐसे में कोई ताइवान से दोस्ती का हाथ बढ़ाएगा तो स्पष्ट है कि चीन उसे भी अपने दुश्मन की लिस्ट में शामिल करेगा।
दरअसल, चीन यह दावा करता है कि ताइवान उसका ही हिस्सा है, जबकि ताइवान इसे मानने को तैयार नहीं है। ताइवान अपना स्वतंत्र अस्तित्व बचाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह दुनियाभर में अपना पक्ष रख रहा है और समर्थन की अपील कर रहा है। मगर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। वह सिर्फ ताइवान ही नहीं बल्कि उससे संबंध रखने वाले प्रत्येक देश, संगठन, संस्था या व्यक्ति को सबक सिखाने पर तुला है।
यही स्थिति इस समय लिथुआनिया के साथ बनी हुई है। लिथुआनिया ने ताइवान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो चीन ने उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को कम कर दिया है। चीन ने लिथुआनिया को चेतावनी भी दी है कि वह तुरंत ताइवान से रिश्ते छोड़े वरना आगे अंजाम और बुरा होगा।
ताइवान से दोस्ती का हाथ बढ़ाने पर चीन ने लिथुआनिया से नाराजगी जताई है। चीन ने लिथुआनिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटाते हुए डाउनग्रेड भी कर दिया है। चीन ने यह फैसला ताइवान लिथुआनिया में प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की इजाजत देने की वजह से लिया है। दूसरी ओर, लिथुआनिया ने चीन की नाराजगी की परवाह नहीं करते हुए ताइवान के साथ अपने संबंध रखने के अधिकार का बचाव किया है। लिथुआनिया की ओर से कहा गया है कि वह वन-चाइना पॉलिसी का सम्मान भी करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ताइवान का लिथुआनिया में नया प्रतिनिधि कार्यालय सामान्य आधिकारिक राजनयिक संबंधों के समान नहीं है। हालांकि, इस पहल को ताइवान और लिथुआनिया के बीच बढ़ते संबंधों के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। चीन को मिर्ची इस लिए भी लगी है, क्योंकि लिथुआनिया में खोले गए इस नए कार्यालय का नाम चीनी-ताइपे रखने की जगह ताइवान कार्यालय रखा गया है। पिछले 18 वर्षों में यूरोप में यह पहला राजनयिक कार्यालय है।
Published on:
22 Nov 2021 04:30 pm
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