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श्रीलंका के PM विक्रमसिंघे ने भारत और जापान से की निवेश की मांग

प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने देश में बढ़ते चीनी निवेश के विरोध में लोगों की मांग को ध्यान में रखते हुए भारत और जापान से निवेश की मांग की है।

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ranil wickremsinghe

नई दिल्ली। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भारत और जापान से बुनियादी ढ़ांचा के विकास के लिए निवेश की मांग की है। प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने देश में बढ़ते चीनी निवेश के विरोध में लोगों की मांग को ध्यान में रखते हुए भारत और जापान से निवेश की मांग की है। विक्रमसिंघे ने उम्मीद जताई कि चीन के निवेश को संतुलित करने के लिए भारत और जापान से निवेश आएंगे।
एक साक्षात्कार के दौरान प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने पिछले साल सरकार और चीनी कंपनी के बीच हंबनटोटा बंदरगाह के विकास के लिए हुए सौदे का बचाव किया है। यह बंदरगाह चीनी कंपनी पोर्ट होल्डिंग्स सह लिमिटेड को 99 साल की लीज पर दिया गया है। इस समझौते के तहत श्रीलंका को 1.1 अरब डॉलर का राजस्व दिया जाएगा जबतक कि इस बंदरगाह के 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो जाएगा। हालांकि एक कारोबारी सम्मेलन में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा कि अब बोझ हम पर है। क्योंकि चीनी मर्चेंट्स और श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण ने इसे ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि हम एक विस्तृत विदेशी निवेश की ओर देख रहे हैं। हालांकि सबसे पहले चीन, भारत और जापान से हीं निवेश आएंगे लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि यूरोप से भी निवेश आएंगे।

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श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर का ऋण बोझ
बता दें कि विक्रमसिंघे ने 2015 में जब सत्ता संभाली थी तब श्रीलंका आर्थिक सुधारों के दबाव से गुजर रहा था। तीन दशक से चल रहे गृहयुद्ध के बाद 2009 में जब दक्षिण एशियाई देश उभर कर सामने आए तब श्रीलंका की पूर्व सरकार ने चीन से एक बहुत बडी राशि बुनियादी निर्माण के लिए ऋण के तौर लिया, जिससे हम पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया। उन्होंने आगे कहा कि इसी के परिणाम स्वरुप श्रीलंका को आज मजबूर होकर ऐसे कदम उठाने पड़े हैं। 2017 के अंत तक श्रीलंका का कुल कर्ज 5 अरब डॉलर था।
विक्रमसिंघे ने कहा कि हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय प्रभुत्व बंधन है जिसके कारण 2018, 2019 और 2020 तक श्रीलंका के लिए कठिन समय रहेगा। हालांकि श्रीलंका, चीन की बुनियादी ढ़ांचा विकास योजनाओं में प्रारंभिक सहयोगी रहा है। जिसमें चीन की महत्वकांक्षी परियोजना वन-बेल्ट-वन-रोड़ परियोजना एक है। बता दें कि इस परियोजना में पडोसी देशों की भागीदारी से भारत चिंतिति है । क्योंकि यह सीधे-सीधे भारत की सामरिक गतिविधि में एक हस्तक्षेप की तरह है।