नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया, रहते है बिना कपड़ों के, करते है खुद अपना पिंडदान
- नागा साधु बनने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही शुरू होती है
- नागा बनने से पहले ब्रह्मचर्य की परीक्षा देना अनिवर्य होता है
- नागा बनने से पूर्व गंगा नंदी में लगाते है 108 डुबकियां

नई दिल्ली। आदि काल से देश में कुंभ का काफी महत्व रहा है। कुंभ के मेले में प्रमुख आकर्षण का केंद्र नागा साधु होते हैं। हिंदू घर्म में नागा साधुओं के जीवन को काफी कठिन माना गया है। नागा साधु शैव परंपरा के अनुयायी होते हैं। इनके जीवन को काफी रहस्य़ भरा माना जाता है। नागा साधु के जीवन पर नज़र डालते हैं।
13 अखाड़ों को मिला कर हर कुंभ में नागा साधु शामिल होते हैं। सभी 13 अखाड़ों में से ज्यादा संख्या जूना अखाड़े के नागाओं की होती है। आपको बतादें नागा साधु बनाने के लिए कठिन दौर से हर साधु को गुज़रना पड़ता है। नागा साधु बनने से पहले पूरे परिवार की जांच-पड़ताल होती है। साधु कि उपाधि मिलने से पहले लंबे समय तक गुरुओं की सेवा करनी पड़ती है। साधु बनने से पहले सभी इच्छाओं का त्याग करना अनिवार्य होता है।
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कैसे बनते हैं नागा साधु?
इतिहास में नागा साधुओं का वर्णन सबसे पुराना है। जानकार बताते हैं कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही शुरू होती है। बताया तो यह भी जाता है कि नागा बनने से पहले ब्रह्मचर्य की परीक्षा देना अनिवर्य होता है। ब्रह्मचर्य के पालन के सिद्ध होने के बाद नवागत को महापुरुष का दर्जा दिया जाता है। नागाओं के प्रमुख पांच गुरु माने गए हैं उनमें से भगवान शंकर,, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश हैं। नागा साधु बनने से पहले बाल कटवाए जाते हैं, और कुंभ के दौरान नागा बनने से पूर्व गंगा नंदी में 108 डुबकियां भी लगाना अनिवार्य माना जाता है।
महापुरुष के बाद बनते हैं अवधूत – बतादें पहले महापुरुष की उपाधि मिलती है इसके बाद अवधूत बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है, इस दौरान स्वयं का श्राद्ध करना और अपना ही पिंडदान करना अनिवार्य हो जाता है। इसके बाद साधु बनने की एक और कड़ी परीक्षा होती है इसके लिए 24 घंटे तक बिना कपड़ों के अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना पड़ता है, इस तप के बाद ही नागा साधु बनन का रास्ता प्रशस्त होता है।
नागा साधुओं का नामकरण- नागा साधु जिस स्थान पर दीक्षा लेते हैं उन्हीं जगहों के नाम पर ही साधुओं को अलग-अलग नाम पर पहचान मिलती है। प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले को नागा कहते हैं, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले साधओं को बर्फानी नागा साधु पुकारते हैं। उज्जैन कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को खूनी नागा कहते हैं। इसके अलावा नासिक में दीक्षा लेने वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।
सबसे बड़ी बात होती है नागा साधुओं का जीवन और उनके रहस्य, कुंभ समाप्त होने के बाद के सभी नागा साधु अपने अपने अखाड़ों को लौट जाते हैं। लेकिन एक बात और हैरान करने वाली होती है वह है नागा साधुओं की यात्रा नागा साधु जंगल के रास्ते से देर रात में यात्रा करते हैं इसलिए ये किसी को दिखाई कम ही देते हैं। इसके अलावा नागा साधु स्थाई एक जगह नहीं रहते हैं ये स्थान बदलते रहते हैं। इसी कारण इनका स्थाई पता लगाना मुश्किल कार्य होता है।
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