राजा कर्ण की दानवीरता का राज जानने के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने राजा कर्ण के यहां नौकरी कर ली। एक दिन राजा कर्ण का भेष धारण कर कर्णा देवी के सामने पहुंचे तो माता कर्णा देवी ने उन्हें पहचान कर इच्छा वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने उन्हें उज्जैन में चलने को कहा, जिस पर उन्होंने चलने से इनकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर राजा विक्रमादित्य ने तलवार से प्रहार कर दिया, जिससे मूर्ति दो टुकड़ों में बंट गई। विक्रमादित्य देवी ने मूर्ति का आधा धड़ कटकर उज्जैन में ले जाकर स्थापित कर दिया, जिसकी पूजा वहां हरि सिद्धि देवी के नाम से आज भी हो रही हैं। आधी खंडित मूर्ति को भक्त कर्णा देवी के नाम से पूजते हैं। यहं प्रतिवर्ष लाखों की तादाद में भक्त आते हैं। प्रचीन कालीन शिवलिंग व अन्य मूर्तियां यहां खंडित अवस्था में विराजमान हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें- कैसे पहुंचे मां कर्णा देवी के मंदिर
औरैया से ऐसे पहुंचे मां कर्णा देवी के मंदिर औरैया पहुंचकर वहां से बस या निजी वाहन द्वारा भीखेपुर पहुंचें। वहां से बस या टेम्पो के माध्यम से जालौन की ओर चलें। जनपद की सीमा के नजदीक ही मां कर्णा देवी का मंदिर स्थिति है। आगे की स्लाइड्स में देखें तस्वीरें...