
On this day in 1929, JRD Tata became the first Indian to receive a commercial pilot's license
अब हम उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जब बहुत सी ऐसी बातें जो बचपन में हमारे लिए रोमांचकारी होती थीं, उन्हें नज़रअंदाज किया जा सकता है। लेकिन तमाम समझदारी के बावजूद आज भी मैं खुद को हवा में उड़ते जहाजों को देखने से रोक नहीं पाता हूं। ये शायद एक ऐसा क्षण होता है जब मेरे भीतर का बचपन कुछ पल के लिए ही सही लेकिन अपनी ख्वाहिशों और Airplane (हवाई जहाज) के प्रति अपनी उत्सुकता को आज भी दबा नहीं पाता है। खैर, हवाई जहाज इंसान द्वारा तैयारी की गई कुछ उन चुनिंदा मशीन या यूं कहें कि कि अविष्कारों में से एक है जो अपने भीतर दिलचस्प किस्सों का पूरा आकाश ही छिपाए हुए है। आज हम आपको अतीत के एक ऐसे ही किस्से से रूबरू कराएंगे।
हम सभी आए दिन खुले आकाश में हवाई जहाज को उड़ते देखते हैं, हम में से बहुतायत लोग ऐसे भी होंगे जो राह चलते कुछ देर ठिठक कर आकाश में उड़ते इन कृत्रिम परिंदों को देखना पसंद भी करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि एयरलाइंस का बिजनेस और इनकी दुनिया हम सभी को आकर्षित करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 'भारत' में एयरलाइन बिजनेस की शुरूआत कैसे हुई और आखिर वो कौन शख़्स था जिसे पहला कमर्शियल पायलट लाइसेंस मिला? तो पाठकों अपनी कुर्सी की पेटी बांध लिजिए और एक रोमांचकारी सफ़र पर चलने के लिए तैयार हो जाइये-
देश को मिला पहला कमर्शियल पायलट:
बात है साल 1929 की, और आज यानी 10 फरवरी के ही दिन जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा जिन्हें दुनिया JRD Tata के नाम से भी जानती है, को देश का पहला पायलट लाइसेंस दिया गया था। उन्होंने देश की पहली कमर्शियल विमान सेवा 'टाटा एयरलाइंस' की शुरुआत की, जो आगे चलकर सन 1946 में 'एयर इंडिया' बन गई। जेआरडी टाटा को उनके इस ख़ास योगदान के लिए सिविल एविएशन (नागरिक उड्डयन) का पिता भी कहा जाता है।
JRD Tata ने न केवल भारत की पहली एयरलाइन टाटा एयर सर्विस की स्थापना की, जो बाद में एयर इंडिया बन गई - बल्कि इसकी उद्घाटन उड़ान का संचालन भी किया। 1932 में अक्टूबर महीने की एक सुबह उन्होनें कराची से एक पुस मोथ (एयरक्रॉफ्ट का मॉडल) से बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए उड़ान भरी और 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हवा को चीरते हुए वो आगे बढ़ते गएं।
क्या कहता है इतिहास:
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा का जन्म 29 जुलाई 1904 को पेरिस में हुआ था। वे रतनजी दादाभाई टाटा और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सुज़ेन्न ब्रीरे (Suzanne Briere) के पांच संतानों मे से दूसरे नंबर पर थें। उनके पिता रतनजी भारत के अग्रणी उद्योगपति जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई थें। शुरूआती दौर में उनका बचपन फ्रांस में ही बीता था, जिसका असर उनकी भाषा पर भी देखने को मिलता था। बाद में उन्होनें मुंबई के कोनोन स्कूल से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और आगे पढ़ने के लिए ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ चले गए।
विदेश से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो वापस भारत लौटें और महज 22 साल की उम्र में बतौर इंटर्न टाटा ग्रुप से जुड़ें। यहीं से उनके व्यवसायिक जीवन की शुरूआत हुई। चूकिं फ्रांस में रहते हुए उन्होनें एक साल का सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था, क्योंकि ऐसा उस दौर में फ्रांस में अनिवार्य था। इसके बाद वे दशकों तक टाटा ग्रुप के निर्देशक रहें, इस दौरान 1932 में उन्होंने टाटा एयरलाइंस शुरू की, जो आगे चलकर साल 1946 में भारत की राष्ट्रीय एयरलाइन, एयर इंडिया बनी। हालांकि, एक बार फिर से इसकी कमान टाटा ग्रुप के हाथों में आ चुकी है।
भारत सरकार ने उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड का निर्देशक नियुक्त किया था। जेआरडी टाटा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भारतीय वायु सेना ने उन्हें ग्रुप कैप्टन की मानद पद से सम्मानित किया था। फ़्राँस ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरकिता पुरस्कार ‘लीजन ऑफ द ऑनर’ से नवाजा तो भारत में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
जेआरडी टाटा की योग्यता और कुशल नेतृत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, उन्होनें 14 उद्योगों के साथ टाटा समूह के नेतृत्व की शुरूआत की थी और जब अध्यक्ष पद छोड़ा तब तक टाटा समूह 95 उद्यमों का एक विशाल समूह बन चुका था। 29 नवंबर 1993 को गुर्दे में संक्रमण के कारण जिनेवा में 89 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर भारतीय संसद उनकी स्मृति में स्थगित कर दी गई थी, और उनके शव को पेरिस में एक कब्रिस्तान में दफनाया गया। भारत के विकास में JRD Tata के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
Updated on:
10 Feb 2022 10:36 pm
Published on:
10 Feb 2022 10:28 pm
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