Ram Mandir Katha Quiz 3: आज के इस अध्याय में हम आपको अयोध्या में मां सरयू की उत्पत्ति और उनकी प्राचीनता के बारे में बताएंगे। साथ ही अयोध्या में सरोवर निर्माण पर भी बात करेंगे। साथ ही, कथा के अंत में एक क्विज भी दिया गया है, जिसके विजेता को सर्टिफिकेट दिया जाएगा। साथ ही एक लकी विजेता को मिलेगा पत्रिका समूह की ओर से राम मंदिर ट्रिप का मौका। क्विज का लिंक इसी कथा के अंत में दिया गया है।
Ram Mandir Katha Quiz 3: राम मंदिर कथा क्विज की इस कड़ी में आज हम आपको राम और उनकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में बताएंगे। आज हम भगवान श्री राम की अयोध्या से नेपाल तक की यात्रा को जानेंगे। साथ ही अयोध्या की सांस्कृतिक सीमाओं की भी चर्चा करेंगे। इसी कथा के अंत में आपको पत्रिका समूह की ओर से अगले 100 दिनों तक लगातार आयोजित होने वाले एक क्विज का लिंक मिलेगा, जिसमें आप आज की कथा पर आधारित कुछ सवालों के जवाब दे कर पत्रिका के आधिकारिक सोशल पेज पर फीचर हो सकते हैं। साथ ही इस क्विज के विजेता को एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इसके अलावा एक लकी विजेता को मिल सकता है पत्रिका समूह की तरफ से राम मंदिर ट्रिप का मौका। आइए, जानते हैं राम की अयोध्या की सांस्कृतिक सीमाओं के बारे में।
जब विष्णु भगवान की नाभि से उत्पन्न कमल पर बैठे ब्रम्हा जी ने विचार किया कि बिना तप किए सृष्टी की रचना कैसे हो पाएगी। तब उन्होंने भगवान विष्णु की उपासना किया, जिसके बाद विष्णु ने उनको दर्शन दिया। ब्रम्हा जी के अगाध प्रेम को देखते हुए भगवान विष्णु की आंखे नम हो गई और उसमें से प्रेमाश्रु निकलने लगे। जिसे ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल में रोक लिया और मानस सरोवर का निर्माण किया। अयोध्या में वैवस्वत मनु नाम के राजा हुए जो भगवान श्रीराम के प्रथम पूर्वज थे। राजा मनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुए जिन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से अयोध्या में सरोवर निर्माण की बात कही। जिसके बाद वशिष्ठ ऋषि ने अपने पिता ब्रम्हा से सरयू के अवतरण की प्रार्थना किया, ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से ही सरयू का अवतरण कराया…
अयोध्या लाखों साल के कालखंड में अनेक उतार-चढ़ाव से गुजरी है, जिसकी एकमात्र साक्षी माता सरयू हैं। सरयू नदी श्रीहरि विष्णु के अवतार श्रीराम की साक्षी है, उनकी लीलाओं की द्रष्टा है तो अंत में भगवान के महाप्रस्थान का मार्ग भी है। अयोध्या का इतिहास जितना प्राचीन है, उतना ही सरयू का। प्रयाग विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर डीपी दूबे हमें यही बताते हैं।
राजन मै तीर्थराज प्रयाग हूं...
राजन मै तीर्थराज प्रयाग हूं। संसार की कोटि-कोटि जनता तीर्थराज प्रयाग में स्नान करके अपने पापों को भस्म करती है, जिससे मै काला पड़ गया हूं। मै पवित्र सरयू में स्नान करके अपने दिव्य स्वरुप को धारण करता हूं। पुराणों में यह उल्लेख है कि महाराजा उज्जैन विक्रमादित्य जब आखेट करते अयोध्या तक आ गए तो उन्होंने एक युवक को देखकर यह पूछा था। जिसके उत्तर में युवक ने बताया कि वह तीर्थराज प्रयाग है। प्रोफेसर डीपी दूबे बताते हैं कि ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को श्री सरयू जी से मान सरोवर से निकली थी ऐसा उल्लेख पुराणों में है।
‘कौशल प्राचीन देश सरयू अथवा घाघरा के माध्यम से दो प्रांतों में विभक्त था। उत्तरीय भाग को उत्तर कोशल दक्षिणी भाग को बनौघ कहते थे। फिर इन दोनों के और दो भाग थे।’
(कनिंघम एनसिएंट ज्योग्राफी ऑफ इंडिया, पेज 408)
कोशल सरयू के किनारे धन-धान्यवान देश था, निविष्ट शब्द का प्रयोग करते हुए वाल्मीकि कहते हैं कि यह देश सरयू नदी के दोनों किनारों पर स्थित था।
कोसलो नाम विदित: स्फीतो जनपदो महान।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभुतधनधान्यवान।।
(वाल्मीकि रामायण, आरंभ)
महाराज भगीरथ की तपस्या से गंगा का अवतरण हुआ है तो ऋषि वशिष्ठ की तपस्या से सरयू का प्रादूर्भाव हुआ है। अवध में यह नदी नेपाल से निकलकर बहराइच आती है, अल्मोड़ा में इसे सरयू कहते हैं। बहराईच जिले में तीस कोस बहकर यह कौडिय़ाला से अलग होते हुए घाघरा में मिल जाती है। इतिहास के जानकार कहते हैं कि इसे अंग्रेजों ने अपने समय में धारा बदल कर घाघरा में मिला दिया था। पुरानी धारा अब भी छोटी सरयू के नाम से बहराईच से एक मील हटकर बहती है।
कनिघंम लिखते हैं कि प्राचीन अयोध्या नगरी जैसा की रामायणी में लिखा है सरयू नदी के किनारे थी। कहा गया है कि उसका घेर 12 योजन या लगभग 100 मील था। किंतु हमे इसे 12 कोस या 24 मील ही पढऩा चाहिए। संभव है कि उस प्राचीन नगर को उपवन सहित यह नाप किया गया हो। पश्चिम में गुप्तारघाट से लेकर पूर्व में रामघाट तक की दूरी सीधी छह मील है।
सरस्वती: सरयु: सिंधुरुर्मिभि: महामही रवसायंतु वक्षणी:।
देवी रायो मातर: सूदयित्नो घृतवतपयो मधुमन्नो अर्चत:।।
(ऋग्वेद मंडल, 10, 64, 9)
ऋग्वेद के इस मंडल में सरयू का आहवान सरस्वती और सिंधु के साथ किया गया है और उनसे प्रार्थना की गई है कि यजमान को तेज बल दे और मधुमन घृतवत जल दे। संत गोस्वामी तुलसी दास लिखते हैं कि
अवध पुरी मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिशि बह सरयू पावनि।।
सरयू की कल-कल, छल-छल बहती धारा अयोध्या का परिचय दे देती है। सरयू को लेकर हमारे अनेक धर्मग्रंथों, आर्षग्रंथों में चर्चा की गई है। यहां तक कि प्रथम वेद ऋग्वेद में भी पर्याप्त लिखा गया है। कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में सरयू का वर्णन है। माता सरयू को श्रीराम की जननी के समान ही पूज्य बताया गया है। यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि अयोध्या के लाखों साल पुराने इतिहास के साथ सरयू का इतिहास जुड़ा है। अयोध्या के उत्थान-पतन की सरयू साक्षी रही है। प्राचीन काल के गौरव से लेकर खंडहर होती अयोध्या से लेकर मुगल आक्रमणों, विध्वंस से लेकर वर्तमान तक न केवल अयोध्या बल्कि भारत वर्ष के इतिहास की मौन गवाह है सरयू की कल-कल, छल-छल बहती धारा...
एक कवि और साहित्यकार कहते हैं कि
यह कल-कल, छल-छल बहती। क्या कहती सरयू धारा।।
युग-युग से रक्त लिए आता। यह देश-धर्म का नाता।।
जिस प्रकार अयोध्या अदभुत है। अजेय है। शास्वत है। चिरंतन है ठीक वैसे ही सरयू अनंत, अविनासी और मोक्षदायिनी है... युग बीते। नारायण की लीला जारी है। चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ सरयू की ही संतान हैं, पूर्वकाल में महाराज मनु थे। अयोध्या बिना सरयू के अधूरी है, उर्जा और तेजहीन है, संदर्भहीन है और अब नए इतिहास को संवरते देख रही है। सरयू तंत्र, मंत्र, यंत्र, तत्वज्ञों का आहवान करती है और चेतना के गौरीशंकर खींचे चले आते हैं।
Note - पूरी कथा पढ़ने के बाद अब यहां आपको एक क्विज दिया जा रहा है। आपको कथा पर आधारित कुछ प्रश्नो के जवाब देने हैं। इस क्विज में जीतने वाले को पत्रिका डॉट कॉम की तरफ से सर्टिफिकेट दिया जाएगा। साथ ही, उसे 50 लाख से अधिक फॉलोअर वाले पत्रिका उत्तर प्रदेश के सोशल मीडिया पेजेज पर फीचर होने का मौका भी मिलेगा। इसके अलावा एक लकी विजेता को मिलेगा पत्रिका समूह की ओर से राम मंदिर ट्रिप का मौका। राम मंदिर कथा क्विज का आयोजन पत्रिका की तरफ से अगले 100 दिनों तक लगातार किया जाना है। ऐसे में आप रोजाना पत्रिका उत्तर प्रदेश को फॉलो कर क्विज खेल सकते हैं। साथ ही अपने दोस्तों, घर-परिवारवालों और रिश्तेदारों को भी क्विज खेलने को आमंत्रित कर सकते हैं।
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