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रक्तरंजित हुई अयोध्या, कारसेवकों ने शरीर के अंगों पर अपना नाम, घर का पता लिख दिया

मैं तो पंजाब में ब्लू स्टार आपरेशन में था। वहां भी हमने निहत्थों को नहीं मारा। लेकिन आज तो अर्धसैनिक बलों का इतिहास गंदा हो गया। निहत्थों पर निशाना लगाकर गोलियां मारी गई हैं। पूणे से आए कारसेवक दत्तात्रेय रामचंद्र पहले सेना में थे। वह घायल अवस्था में पत्रकारों से कहते रहे। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से आए दिनेश सिंह अस्पताल में इलाज करवा रहे थे, कहते रहे आग भड़क चुकी है, अब इसकी लपटें दूर-दूर तक जाएंगी। पत्रिका राम कथा अभियान के 47वें अध्याय में अयोध्या के र‌क्तरंजित होने की पूरी कहानी।

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सरयू में स्नान के लिए प्रत्येक साल लाखों लोग आते थे। लेकिन आज के दिन 2 नवंबर 1990 को सरयू स्नान की जगह अयोध्या रक्त स्नान से नहा उठी।

Ram Mandir Katha: कारसेवा के लिए अयोध्या आए देवरिया के तेजनारायण पाण्डेय और आचार्य दशरथजी बताते हैं कि दक्षिण भारतीय कारसेवक श्रृंगार हाट की तरफ बढ़ते समय पुलिस बैरियर लगा होने से शास्त्री नगर के पास रुक गए। इनके हाथों में तौलिया या बोरे का टुकड़ा था जिसे इन लोगों ने गीला कर लिया था। बच्चे दौड़-दौड़ कर पानी से इन्हें और गीला करने का प्रयास करते। महिलाएं घरों के उपर से पानी फेंकती।

कुछ बुजुर्ग नमक और चूना इनको पकड़ा रहे थे। ये सब कवायद आंसू गैस से बचने के लिए किया जाता। मणिराम दास छावनी से निकले कारसेवक दक्षिण भारतीय कारसेवकों के साथ शामिल हो गए। इन सभी कारसेवकों का नेतृत्व उमा भारती कर रही थी। सभी कारसेवक लाइन लगाकर चुपचाप बैठ गए।

कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। दो नवंबर 1990। इस दिन सरयू, गंगा, यमुना, नर्वदा आदि नदियों में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। सरयू में स्नान के लिए प्रत्येक साल लाखों लोग आते थे। लेकिन आज के दिन 2 नवंबर 1990 को सरयू स्नान की जगह अयोध्या रक्त स्नान से नहा उठी। निहत्थे, अहिंसक और रामभजन करने वाले कारसेवकों के लहू से अयोध्या लाल हो उठी। कानून व्यवस्था बनाए रखने की आड़ में मुलायम सरकार के इन नरसंहार की शुरुआत हुई दिगंबर अखाड़े से। दिन में करीब दस बजे के बीच।

IMAGE CREDIT: निहत्थे, अहिंसक और रामभजन करने वाले कारसेवकों के लहू से अयोध्या लाल हो उठी।

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आपरेशन कारसेवक सोची-समझी सरकारी चाल

हनुमान गढ़ी से होकर जन्मभूमि पर पहुंंचने के लिए दिगंबर अखाड़े से कारसेवक निकले। 80 साल के बुजुर्ग परमहंस आचार्य रामचंद्र दास भी निकले। पुलिस ने आसपास की छतों पर पहले ही हथियार समेत डेरा डाल दिया था। अयोध्या शोध संस्थान, राजमंदिर और आसपास की ऊंची इमारतों पर मौजूद निशाना साधे जवानों ने दाईं ओर सड़क की तरफ बढ़ते कारसेवकों पर संकरी गली आते ही गोलियों की बरसात कर दी।

गोली लगते ही कारसेवक जयश्रीराम कहते जमीन पर गिरने लगे। धरती लाल होने लगी। चार-पांच शव वहां छोड़कर बाकी शव पुलिस उठा ले गई। जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई। बगल में लालकोठी राम की नगरी में रामभक्तों के रक्तरंजित होने की मूक साक्षी बनी रही। यहां पर निहत्थे कारसेवकों के खून की होली खेली गई। जिसका दाग सरयू का सारा पानी भी नहीं धूल सकता।

IMAGE CREDIT: गोली लगते ही कारसेवक जयश्रीराम कहते जमीन पर गिरने लगे। धरती लाल होने लगी।

निशाना साधकर मारी गोलियां, राजस्थानी कारसेवक आगे बढ़ते रहे

गोलियों की बरसात के बाद कारसेवकों तेजी से आगे गली में निकल गए। लेकिन यहां भी पहले से आपरेशन कारसेवक की तैयारी थी। गोलियों से बचने के लिए कुछ कारसेवक आसपास की मकानों में घुस गए तो दरवाजा तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया और मार दिया गया। अयोध्या के कमल नयन शास्त्री के घर में चार-पांच कारसेवक छिपे थे। इन सभी को दरवाजा तोड़कर बाहर निकाला गया और गोली मार दी गई।

यहीं पर राजस्थान के बीकानेर से आए शरद कोठारी और राम कोठारी भाई छिपे थे। पहले बड़े भाई को बाहर निकालकर खोपड़ी में गोली मारी गई। बड़े भाई शरद कोठारी के जमीन पर गिरते ही छोटा भाई राम कोठारी बचाने के लिए दौड़ा और शरद के शव से लिपट गया। उसके बाद राम कोठारी को भी गोली मार दी गई। दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। राजस्थान के ही मथानिया के सेठाराम, जोधपुर के प्रोफेसर महेंद्र अरोड़ा को गोली लगी और शहीद हो गए।

IMAGE CREDIT: बीकानेर से आए शरद कोठारी और राम कोठारी भाई छिपे थे। पहले बड़े भाई को बाहर निकालकर खोपड़ी में गोली मारी गई।

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हाथ जोड़कर जमीन पर लेटे कारसेवकों पर हुई निर्ममता

दो नवंबर 1990, दोपहर करीब एक बजे। अयोध्या कोतवाली के पास दो बैरियर लगे थे। शास्त्री नगर की तरफ से हजारों कारसेवक आ गए। दक्षिण भारतीय कारसेवक सरयू घाट की तरफ से आए। आगे बढ़ने की कोशिश में बैरियर टूट गया। इसके बाद हवा में गोलियां चलने लगीं। दक्षिण भारतीय कारसेवक हाथ जोड़कर जमीन पर लेट गए। उनको देखते ही सभी कारसेवक जमीन पर लेट गए। इन सभी कारसेवकों पर लाठियां बरसाई गईं, बंदूकों के कूंदों से मारा गया, बूटों से कुचला और शरीर पर घोड़े तक दौड़ा दिए गए।

कारसेवकों ने पीछे हटना स्वीकार नहीं किया। घायल अवस्था में कराहते रहे। जयश्रीराम बोलते रहे। दूसरी तरफ उमा भारती को घसीट कर अमानवीय और निर्ममता पूर्वक गिरफ्तार किया गया। एक कारसेवक जो दो दिन पहले 30 अक्टूबर की कारसेवा में लाठी चार्ज से घायल हुआ था। दोनों हाथ टूट चुके थे। दोनों हाथों में प्लास्टर लगा था। लेकिन वह अस्पताल से भागकर दो नवंबर की कारसेवा में शामिल हो गया। एक कारसेवक जिसके दोनों पैर बुरी तरह घायल हो चुके थे, फिर भी बैसाखी के सहारे वह आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था।

हाथ और पीठ पर नाम पता लिख छोड़ा था

अनेक कारसेवकों ने अपने हाथ, पैर, जंघे और पीठ पर, शरीर के विभिन्न अंगों पर अपना नाम, घर का पता लिख दिया था। जिससे वह शहीद हो जाएं तो उनका शव उनके परिजनों तक पहुंच जाए। शरीर पर कई जगह नाम पता इसलिए लिख लिया था कि अगर गोली लगने से नाम पता पढ़ने में ना आए तो दूसरे या तीसरे अंग पर लिखा हुआ पढ़ा जा सके।

30 अक्टूबर को जवाबी कार्रवाई में या अपने बचाव में कारसेवकों ने पुलिस पर दस बीस ढ़ेले-पत्थर चलाएं हो। लेकिन दो नवंबर की कारसेवा में सभी को शपथ दिला दी गई थी कि कोई किसी भी सूरत में प्रतिक्रिया नहीं करेगा। लाठियां, गोलियां, आंसू गैस, घोड़े दौड़ाकर कुचलना आदि बेरहम कार्रवाई के बावजूद अयोध्या का इतिहास इस पर बात पर गर्व करेगा कि उसके भक्तों ने मौत को गले लगाया। लेकिन पीठ नहीं दिखाया, सीने पर गोली खाई।

अस्पताल में भर्ती पूणे से आए कारसेवक दत्तात्रेय रामचंद्र कह रहे थे कि मै पहले सेना में था। ब्लू स्टार आपरेशन में रहा हूं लेकिन हमने निहत्थों पर गोली नहीं चलाई। लेकिन आज अर्धसैनिक बलों का इतिहास गंदा हो गया। गाजीपुर उत्तर प्रदेश से आए दिनेश सिंह घायल थे। अस्पताल में पत्रकारों से कहे कि आग भड़क चुकी है, इसकी लपटें दूर-दूर तक जाएंगी। रमेश अरोड़ा आक्रोशित थे, चाहते थे कि गोली का जबाव गोलों से दिया जाए।

बिहार से आए युवक मरहम पट्टी करवा रहे थे और कह रहे थे कि हम अहिंसक आंदोलन के लिए आए हैं। लेकिन हमसे तेज बम बनाना कोई पुलिस वाला भी नहीं जानता होगा। हम इसका माकूल जबाव दे सकते हैं। जारी रखेंगे।

कल के अंक में हम आपको बताएंगे कि दो नवंबर के गोली कांड में असामाजिक तत्वों की भूमिका, किसने चलाई गोलियां, षडयंत्र का खुलासा ।


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