30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अयोध्या के कनक भवन में आज भी होते हैं चमत्कार, त्रेतायुग के हैं देवालय

Ram Mandir Katha: पत्रिका राम मंदिर कथा के अध्याय-8 में हम आपको कनक भवन के बारे में बताएंगे। कनक भवन में भगवान श्रीराम के भाई भरत का जन्म हुआ था। आज भी कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जो रहस्य बना हुआ है। पढ़िए मार्कण्डेय पाण्डेय और राहुल मिश्रा की विशेष रिपोर्ट…

4 min read
Google source verification
untitled-6.png

सप्तपुरियों में से एक अयोध्या पुरी धार्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। रामजन्म स्थान, सहित अन्य कई ऐसे स्थल हैं, जिनका संबंध त्रेतायुग से है। आइए आपको इनमे से कुछ धार्मिक स्थलों की जानकारी से रूबरू कराते हैं। अयोध्या पुरी में स्थित कैकेयी भवन भगवान श्रीरामचंद्र जी के अनुज भरतजी की जन्मभूमि माना जाता है। यह स्थान वर्तमान में कोप भवन मंदिर के पीछे उत्तर तरफ स्थित है। इसी स्थान पर भरत जी का जन्म हुआ था। यहां पर भगवान भोलेनाथ का एक शिवालय है, जिसके अन्दर गणेशजी की पाषाण मूर्ति रखी है। उक्त मूर्ति बहुत ही प्राचीन काल की बतलाई जाती है।

बाबर के हमले से पहले गड़ा है सुमित्रा भवन का पत्थ
श्रीराम जन्मभूमि के दक्षिण तरफ थोड़ी दूर पर सुमित्रा भवन नामक स्थान है। यहीं पर महारानी सुमित्रा देवी के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न पैदा हुए। इस स्थान पर सुमित्रा भवन लिखा हुआ एक पत्थर भी गड़ा है। इसीप्रकार दंतकथाओं और धार्मिक पुस्तकों में आनंद भवन का विशेष उल्लेख मिल जाता है। इस स्थान पर भगवान राम का बचपन व्यतीत हुआ था। इस मन्दिर में काकभुसुण्डी का दर्शन होता है।


दशरथ जी के आंगन में है सीताकूप
यह प्राचीन मंदिर बहुत दिनों तक जीर्ण-शीर्ण दशा में पड़ा, जिसे बस्ती शहर के पण्डित रामसुन्दर पाठक ने सैकड़ों साल पहले लगभग एक लाख रुपया खर्च करके बनवाया था। मन्दिर में राजभोग की व्यवस्था बहुत ही सुन्दर है। अयोध्या धाम में मौजूद सीताकूप लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। इस कूप के बारे में वर्णित है कि यह कूप महाराजा दशरथ के आंगन में स्थित था। इसे ज्ञानकूप भी कहते हैं। यह स्थान जन्मभूमि से कुछ ही दूरी पर है। जब माता जानकी विवाह कर अयोध्या आईं तो इसी कूप की पूजा हुई थी। मान्यता है कि इस कुंआ का जल पीने से अनेक असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं और ज्ञान की प्राप्ति होती है। मूल नक्षत्र में पैदा हुए नवजात शिशु की ग्रह शांति पूजा में इस कूप के जल का विशेष महत्व है।

मुंह दिखाई में सीता को मिला कनक भवन
कनक भवन नामक स्थान महारानी कैकेयी का सोने का महल था, जिसे उन्होंने सीता को मुंह दिखाई में दे दिया था। यह श्रीराम जानकी का खास महल है। साधुओं में विशेषकर रसिक सम्प्रदाय के सन्तों में इस स्थान के प्रति अपूर्व निष्ठा है, यहां कोई न कोई अद्भुत घटना प्राय: घटित हुआ करती है। विक्रमादित्य के बनवाये हुए विशाल भवन कनक भवन को जब सैयद मसऊद सालार गाजी ने तोड़ डाला तब से यह स्थान भग्नावस्था में पड़ा था। इसे टीकमगढ़ की महारानी श्रीवृषभानु कुंवर ने एक सुन्दर विशाल भवन के रूप में बनवा दिया है, जो वर्तमान में मौजूद है।


सीता रसोई मां अन्नपूर्णा निवास
सीता रसोई वही प्राचीन स्थान है जहां पर जनकपुर से ब्याह कर आने पर जानकी ने सर्वप्रथम रसोई बनाकर अपने ससुर दशरथ महाराज तथा चारों भाइयों राम, लक्ष्मण भरत एवं शत्रुधन को खिलाया था। इस मन्दिर में एक गुफा के अन्दर महारानी जानकी की एक सुन्दर मूर्ति विराजमान है और चूल्हा आदि रखा है।

कोप भवन में कैकेई ने मांगा था 14 साल का वनवास
इसी तरह कोप भवन के बारे में हम आपको बताते हैं। हनुमानगढ़ी से रामजन्मभूमि जाते समय दाहिने तरफ कोप भवन है । माना जाता है कि महारानी कैकेयी ने इसी स्थान पर कोप कर राजा दशरथ से श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत के लिए राजगद्दी मांगी थी। मंदिर में महारानी कैकेयी कोप में हैं और राजा दशरथ उदास बैठे हैं। जबकि राम और लक्ष्मण वन जाने की आज्ञा मांग रहे हैं। कनक भवन के दक्षिण तरफ रत्नसिंहासन, जिसे राजगद्दी भी कहते हैं, मौजूद है। माना जाता है कि इसी स्थान पर महाराजा रामचन्द्र का राज्याभिषेक हुआ था। इस स्थान पर तीन मूर्तियां गुप्ताकालीन सम्राट महाराज समुद्रगुप्त के समय से प्रतिष्ठित हैं।


सप्तसागर सरोवर के जल से होता था राज्याभिषेक
मत्तगजेंद्र मंदिर के ईशानकोण पर सप्तसागर नामक बहुत बड़ा सरोवर स्थित था, जो अब सूख गया है और लगभग लुप्तप्राय हो चुका है। कहा जाता है कि अयोध्या के चक्रवर्ती राजाओं का राजतिलक इसी के जल से होता था। इस सरोवर में सातों समुद्र का जल संचित था। स्वर्गद्वार घाट के पश्चिम तरफ लक्ष्मण घाट नामक दिव्य स्थान है। यहीं पर शेषावतार लक्ष्मण का मंदिर है, जिसमें उनकी मूर्ति विराजमान है।


भईदग्धा पर हुआ था महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार
विल्वहरिघाट नामक स्थान से कुछ दूरी पर स्थित भईदग्धा स्थान पर ही महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार भारत जी द्वारा किया गया था। वहीं, विल्वहरिघाट अयोध्या से 15 किलोमीटर पूर्व दिशा में सरयू नदी के किनारे स्थित है, जहां एक शिवालय स्थित है। जिसमें महाराजा विक्रमादित्य काल की विल्वहरि महादेव की मूर्ति आज भी विराजमान है।


महात्मा बुद्ध ने भी किया था अयोध्या में साधना
हनुमानगढ़ी से पूर्व एक कुंड स्थित है, जिसके दक्षिण तरफ बौद्ध चरण चिन्ह अंकित एक चबूतरा बना हुआ है। लोगों का मानना है कि इसी स्थान पर रहकर महात्मा बुद्ध ने सोलह सालों तक तपस्या किया था और अपने सिद्धांत यहीं निर्धारित किया था। एक दिन बुद्धदेव ने दातुन करके उसे दनुइन कुण्ड के निकट गाड़ दिया जो कुछ दिन बाद जमकर वृक्ष हो गया। वही वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाया। कहा जाता है कि इसी कुण्ड के समीप एक खेत में एक कुएं की खुदाई हो रही थी, जिसमें प्राचीन काल की एक पाषाण मूर्ति का भग्नावशिष्ट निकला था। इसके साथ ही धर्मनगरी अयोध्या में ब्रह्मकुंड, श्रीराम-गुरूपीठ विद्यास्थली, तुलसी स्मारक भवन सहित अन्य कई तीर्थ स्थल हैं, जिनका संबंध त्रेतायुगकाल से है और आज भी लोगों की आस्था का केंद्र हैं।