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पहली बार कारसेवा शब्द का जिक्र आया, वीपी सिंह को मिला चार और महीना

...लालकृष्ण आडवाणी को पूर्व कार्यक्रम के अनुसार कोलकाता जाना था। लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु दिल्ली आ गए। आशंका थी कि केंद्र की वीपी सिंह सरकार गिरने वाली है। उन्होंने आडवाणी को फोन करके कोलकाता दौरा रद्द करने को कहा, अगले दिन ज्योति बसु और आडवाणी के बीच बातचीत हुई। आडवाणी किसी कीमत पर कारसेवा रोके जाने से सहमत नहीं थे।

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विहिप ने भी प्रधानमंत्री को संदेश भेजवा दिया कि 8 जून 1990 तक निर्णय नहीं होता तो हम हरिद्वार में संत सम्मेलन करेंगे। इसके बाद मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर देंगे।

Ram Mandir Katha: प्रधानमंत्री वीपी सिंह के अनुरोध पर विहिप ने चार माह का समय सरकार को दे दिया था। इस दौरान हर महीने विहिप कार्यकर्ता प्रधानमंत्री आवास के सामने घंटा, शंख आदि बजाकर वक्त बीत जाने की याद दिलाते। चार माह की अवधि में से आधा समय बीत जाने के बाद विहिप के उच्चाधिकार समिति ने प्रधानमंत्री द्वारा गठित मंत्रीस्तर के तीन सदस्यों मधु दंडवते, जार्ज फर्नाडिस और मुख्तियार अनीस से मुलाकात किया।

विहिप ने जानना चाहा कि सरकार ने अबतक क्या किया है। लेकिन मंत्रियों के पास कोई जवाब नहीं था। फिर भी मंत्रियों ने कहा कि कृपया 8 जून तक निर्णय का इंतजार करें। विहिप ने भी प्रधानमंत्री को संदेश भेजवा दिया कि 8 जून 1990 तक निर्णय नहीं होता तो हम हरिद्वार में संत सम्मेलन करेंगे। इसके बाद मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर देंगे।

IMAGE CREDIT: संत सम्मेलन

डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि यदि किसी भी सरकार को जो इस मामले पर गंभीर होती तो यह काफी लंबी मोहलत थी लेकिन मोर्चा सरकार ने इस विषय के समाधान के लिए मंत्रियों की जो कमेटी बनाई उसमें किसी को इतनी फुरसत नहीं थी कि वह इस ओर ध्यान देता। आगे कारसेवक के बारे में पढ़ने से पहले, देखें यह वीडियो। इस वीडियो में बताया गया है कि कारसेवक शब्द का इस्तेमाल पहली बार कब हुआ था।

हरिद्वार का संत सम्मेलन और कारसेवा की घोषणा

23-24 जून को हरिद्वार में संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। जहां पर पहली बार कारसेवा शब्द आया। 30 अक्टूबर 1990 से अयोध्या में कारसेवा शुरू कर दिए जाने का धर्माचार्य और संतों ने एक सुर में निर्णय ले लिया। इसके अलावा संतों ने दो फैसला किया।

1- मंदिर निर्माण की तिथि और प्रारूप में कोई परिवर्तन संभव नहीं है।

2- गर्भ गृह पर अब कोई भी बातचीत नहीं होगी।

इस तरह वीपी सिंह सरकार को चार महीने का वक्त और मिल गया। लेकिन सरकार इस समस्या के समाधान के लिए कुछ करना चाहते तब तो समाधान निकलता। वोट बैंक बनाने में अंधी हो चुकी सरकार अपने ही वायदे से मुकरती रही।

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IMAGE CREDIT: पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव

हथियार उठा लेने और एक होकर मुकाबला करने की बात

उत्तर प्रदेश में जनता दल की सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने वामपंथियों से साजिश करके सांठगांठ कर लिया। जिले-जिले में जनसभाएं शुरू हो गईं। यहां तक कि मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों से एकजुट होकर मुकाबला करने और हथियार उठा लेने तक की बात कही।

दूसरी तरफ विहिप ने हरिद्वार संत सम्मेलन के बाद वृन्दावन में संत संकल्प दिवस का आयोजन एक अगस्त को किया। इसी संत सम्मेलन में निर्णय हुआ कि 12 अक्टूबर से 18 अक्टूबर 1990 के बीच श्रीराम ज्योति यात्रा निकाली जाएगी। यह यात्रा काशी, मथुरा, अयोध्या से होते हुए सात हजार प्रखंडों में जाएगी। देश के सभी गांवों से लोग मशाल लेकर आएंगे और अरणी मंथन से निकली अग्नि को लेकर जाएंगे। देश के सभी घरों में दीवाली इसी राम ज्योति से मनाई जाएगी।

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दीवाली बाद होगी कारसेवा

तय हो चुका था कि रामज्योति यात्रा सम्पन्न होते ही देश के विभिन्न हिस्सों से पांच लाख कारसेवकों का जत्था अयोध्या पहुंचेगा। अलग-अलग तिथि पर कारसेवक आएंगे और मंदिर निर्माण प्रारंभ कर दिया जाएगा। यदि कारसेवा में सरकार बाधा उत्पन्न करेगी तो कारसेवक शांतिपूर्वक गिरफ्तारियां देंगे। कार्यक्रम 30 अक्टूबर से शुरू होगा।

आडवाणी की रथ यात्रा

एक सितंबर से राम ज्योति यात्रा देश के सात हजार प्रखंडों के लिए निकल चुकी थी। ठीक इसी समय भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने का फैसला किया। इस यात्रा से राममंदिर निर्माण के महत्व को जनता को बताने के लिए वह 25 सिंतबर 1990 को रथयात्रा लेकर चलने की तैयारी शुरू कर दिए।

दूसरी तरफ अटल बिहारी बाजपेई आडवाणी की इस यात्रा से सहमत नहीं थे। उनको रथयात्रा में काफी खतरों की आशंका थी, लेकिन आडवाणी के अडिग निर्णय को वह बदलवा नहीं सके। रथ यात्रा चल पड़ी और देश भर में भारी जनसमर्थन हासिल होने लगा। राजनैतिक दलों ने इसे साम्प्रदायिकता भड़काने वाला और दंगा कराने वाला कहते हुए इसे रोकने की मांग किया।


मद्रास में आयोजित राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में कांग्रेस ने कहा कि कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री, जो भी केंद्र सरकार चाहेगी वह एक्शन लेंगे। अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी को लगेगा कि किसी कांग्रेस शासित राज्य से लहरों में लोग आ रहे हैं और कुछ कार्रवाई करनी है तो हमारे मुख्यमंत्री तत्काल कार्रवाई करेंगे।

वीपी सिंह से भाजपा की दूरी बढ़ गई

अब भाजपा ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापस लेने का मन बनाना शुरू कर दिया। भाजपा के अटल बिहारी बाजपेई, भैरो सिंह शेखावत, जसवंत सिंह वगैरह नेता जरूर चाहते थे कि कोई न कोई बीच का रास्ता निकाला जाए लेकिन संघ परिवार और उसके आनुषांगिक संगठन चाहते थे कि वीपी सिंह सरकार से भाजपा अपना समर्थन वापस ले ले।

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18 अक्टूबर दीपावली आई

पूरे देश में श्रीराम ज्योति यात्रा सम्पन्न हो चुकी थी और दूसरी तरफ 16 से 18 अक्टूबर लालकृष्ण आडवाणी दिल्ली में थे। भाजपा की बैठक हुई और फैसला किया गया कि 11 नवंबर 1989 के चुनावों में जनता से जो जनादेश प्राप्त हुआ है, वह जनादेश अब समाप्त हो चुका है।

इस सरकार से जुड़े रहना, यह जनता के मन में अपने प्रति अपमान पैदा करना है। कश्मीर, पंजाब और श्रीराम जन्मभूमि के सवाल पर सरकार के साथ हमारे व्यापक मतभेद हैं। ऐसे में सरकार को समर्थन देते रहना ठीक नहीं है, यदि आडवाणी की रथ यात्रा में व्यवधान खड़ा किया जाता है तो भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।

जब अशोक सिंघल से मिले जार्ज फर्नाडिस

सरकार से समर्थन वापस लेने के भाजपा के निर्णय के बाद केंद्र सरकार में खलबली मच गई। तत्कालीन रेल मंत्री जार्ज फर्नाडिस और सूचना प्रसारण मंत्री पी उपेंद्र नई दिल्ली के झंडेवाला संघ कार्यालय पहुंचे। वहां पर विहिप के अशोक सिंघल से बातचीत में सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा गया कि सरकार एक अध्यादेश लाना चाहती है जिसमें गर्भगृह को छोड़कर बाकी जमीन श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंप दी जाएगी। लेकिन अशोक सिंहल तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि सम्पूर्ण गर्भगृह समेत सम्पूर्ण श्रीराम जन्मभूमि की जमीन न्यास को सौंप दे। इससे कम कुछ मंजूर नहीं है। वार्ता लगभग विफल हो गई।

IMAGE CREDIT: तत्कालीन रेल मंत्री जार्ज फर्नाडिस और अशोक सिंघल

उसी रात प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी को फोन किया और प्रस्ताव रखा

विवादित ढाचे को छोड़कर बाकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाए तो स्वामित्व के सारे विवाद खत्म हो जाएंगे। फिर सरकार इसके बारे में निर्णय कर लेगी। उनकी बात से आडवाणी सहमत भी हुए और कहा कि सुझाव अच्छा है, ठीक है और इस दिशा में सोचना चाहिए।

केंद्र सरकार का प्रस्ताव

केंद्र सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा गया कि कुल परिसर का 70 एकड़ जमीन में से सिर्फ ढाई एकड़ विवादास्पद है। बाकी जमीन जिसमें शिलान्यास वाला स्थान भी है, वह विवादित नहीं है। इसलिए बाकी जमीन श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंप दी जाएगी, जिससे कारसेवा हो सके। शर्त है कि विवादित स्थल पर कारसेवा नहीं होनी चाहिए।

लालकृष्ण आडवाणी का संसद में बयान

केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के सामने यह विषय रखना चाहती है कि क्या उस स्थान पर कभी मंदिर था जिसको तोड़कर मस्जिद बनाई गई। (7 नवंबर 1990, संसद)

भूमि अधिग्रहण को लेकर भाजपा नेताओं के सकारात्मक रुख को देखते हुए सरकार ने अध्यादेश राष्ट्रपति से जारी करवा दिया। भूमि अधिग्रहण की सूचना मिलते ही बाबरी मस्जिद समर्थक खुला विरोध पर उतर आए। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने 30 अक्टूबर को भारत बंद की घोषणा कर दिया।

जबकि मंदिर समर्थकों में कोई खास उत्साह नहीं था, क्योंकि इस अधिग्रहण में विवादित भूमि को शामिल नहीं किया गया था। बाबरी समर्थकों का एक दल प्रधानमंत्री से मिला, दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने प्रधानमंत्री से मिलकर नाराजगी प्रगट की जिसके बाद सरकार को लगने लगा कि मुस्लिम वोट बैंक उससे छिटक जाएगा। आखिरकार 21 अक्टूबर को सरकार ने अध्यादेश को वापस ले लिया।

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क्या कहा वीपी सिंह ने ?

अध्यादेश वापस लेने के बाद जब सरकार से सवाल किया गया कि अध्यादेश वापस क्यों लिया गया तो वीपी सिंह का जबाव-

सिर्फ भाजपा के एक हिस्से ने अध्यादेश को अपना कार्य सम्पन्न माना और सोचा इसे मान लिया जाएगा। लेकिन विहिप ने विरोध किया। आरएसएस के बड़े नेता ने विरोध किया। पुजारियों ने हड़ताल कर दिया। इसलिए अध्यादेश वापस लेना पड़ा।

लेकिन अध्यादेश वापस लेने के असली कारण का खुलासा डॉ मुरली मनोहर जोशी ने किया-

भारतीय जनता पार्टी ने सरकार को एक प्रस्ताव द्वारा चेतावनी दी है कि यदि आडवाणी जी की यात्रा को अवरुद्ध किया गया या उन्हें गिरफ्तार किया गया तो पार्टी अपना समर्थन सरकार से वापस ले लेगी। इस चेतावनी के बाद सरकार कुछ हरकत में आई लेकिन हमेशा इस बात को ध्यान में रखा कि मुस्लिम वोट खिसकने नहीं पाए। इसलिए जब एक अध्यादेश हड़बड़ी में जारी किया गया तो बाबरी एक्शन कमेटी के विरोध करने पर उसे वापस ले लिया गया।

22 अक्टूबर को लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा बिहार से गुजर रही थी तो उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 23 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। सरकार अल्पमत में आ गई और वीपी सिंह को विदा होना पड़ा।


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