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अयोध्या की नई तस्वीर, राम मंदिर निर्माण में इस्तेमाल नहीं होगा बाजार का सीमेंट

- सूर्य के प्रकाश से जगमगाएगी अयोध्या, सोलर सिटी की तर्ज पर होगा विकास।

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अयोध्या की नई तस्वीर, राम मंदिर निर्माण में इस्तेमाल नहीं होगा बाजार का सीमेंट

अयोध्या की नई तस्वीर, राम मंदिर निर्माण में इस्तेमाल नहीं होगा बाजार का सीमेंट

अयोध्या. भूमिपूजन के बाद अब प्रदेश सरकार की कोशिश अयोध्या की तस्वीर बदलने की है। सरकार का फोकस अयोध्या में चल रही विकास परियोजनाओं पर है। जिससे विश्व पटल पर अयोध्या की एकदम अलग फिजा पेश की जा सके। इसको लेकर सीएम योगी लगातार अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दे रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ रामजन्मभूमि में बनने वाले रामलला के भव्य मंदिर को प्राकृतिक आपदाओं से एक हजार साल तक सुरक्षित रखने के लिए श्री रामजन्मभूमि ट्रस्ट कोई कसर नहीं छोड़ रहा। इसे लेकर हर तकनीकी पहलू पर विशेषज्ञ शोध करने में जुटे हैं। जिसके चलते मंदिर निर्माण के लिए नींव खोदने और उसे भरने में अभी थोड़ा समय लग सकता है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि राम मंदिर निर्माण में बाजार का सीमेंट इस्तेमाल नहीं होगा। बल्कि जिन सामग्रियों का उपयोग होना है, पहले उनकी ताकत की जांच की जाएगी। फिर इसके बाद उनकी ताकत और क्षमता को बढ़ाने के लिए उसमें विशेष रसायनों का प्रयोग किया जाएगा। इन सभी पर भी सीबीआरआई और आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञ रिसर्च भी कर रहे हैं। ये रिसर्च पूरा होने के बाद ही मंदिर निर्माण की अगली प्रक्रिया शुरू होगी। चंपत राय ने बताया कि मंदिर के निर्माण में कौन सी और कहां कि गिट्टी इस्तेमाल होगी और कहां की मोरंग लगेगी। उसका भी परीक्षण चल रहा है।

चंपत राय ने बताया कि बुंदेलखंड की गिट्टी को मजबूती के लिहाज से हमेशा सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसी तरह से बेतवा-केन नदी की मोरंग को भी सबसे अच्छा माना जाता है। फिर भी इन सभी का इस्तेमाल परीक्षण करने के बाद ही किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आईआईटी, चेन्नई के विशेषज्ञों ने दस-दस टन गिट्टी और मोरंग की मांग की है जिनका परीक्षण होना है। यह गिट्टी और मोरंग अब चेन्नई भेजी जाएगी। इसी तरह मंदिर निर्माण में साधारण सीमेंट का भी इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। बल्कि परीक्षण होने के बाद बताया जाएगा कि किस स्टैंडर्ड की सीमेंट इस्तेमाल होनी है। विशेषज्ञ सीमेंट की क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें डालने वाले रसायनों पर भी रिसर्च कर रहे हैं। यह रिपोर्ट मिलने के बाद ही मंदिर निर्माण के काम में तेजी आएगी।

सूर्य के प्रकाश से जगमगाएगी अयोध्या

वहीं दूसरी तरफ रामनगरी अयोध्या सूर्य के प्रकाश से जगमगाएगी। दरअसल सीएम योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या को सोलर सिटी के रूप में विकसित किए जाने के निर्देश दिये। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को अयोध्या के विश्वस्तरीय प्रचार-प्रसार की बेहतर योजना तैयार करने के लिए कहा है। उनका मानना है कि इससे जहां एक ओर पर्यावरण संरक्षित और संतुलित रहेगा, वहीं दूसरी ओर इस पवित्र नगरी को एक नई पहचान मिलेगी। सीएम योगी ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार अयोध्या में मूलभूत पर्यटन सुविधाओं सहित समग्र विकास के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रही है। राज्य सरकार के प्रयासों में केन्द्र सरकार का पूरा सहयोग भी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में अयोध्या, भगवान श्रीराम जी की नगरी के रूप में जानी जाती है। अयोध्या धाम का पौराणिक महत्व है। इसलिए इसकी पुरातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए अयोध्या को विकसित किया जाए।

रिवर फ्रंट भी बनेगा

सीएम योगी ने अयोध्या के सभी घाटों को संरक्षित करते हुए इनका सौन्दर्यीकरण किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि गुप्तार घाट से नए घाट तक रिवर फ्रंट विकसित किया जाए। अयोध्या में 2 बस अड्डों की व्यवस्था के लिए कार्यवाही की जाए। वहीं पंचकोसी, चैदहकोसी तथा चैरासीकोसी परिक्रमा मार्गों को इस प्रकार विकसित किया जाए, जिससे श्रद्धालु सुगमतापूर्वक परिक्रमा कर सकें। सीएम योगी ने कहा कि निकट भविष्य में अयोध्या में देश-दुनिया से आने वाले पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ेगी। इसे देखते हुए अयोध्या में अच्छे होटलों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए सीएम योगी ने आवश्यक भूमि का चिन्हांकन करके धर्मशाला और विश्रामालय सुविधाओं का विस्तार करने के निर्देश दिये हैं।


अयोध्या में बनेंगे 25 राज्यों के गेस्ट हाउस

राम की नगरी को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने के लिए सरकार ने अयोध्या में देश के 25 राज्यों के गेस्ट हाउस बनाने का फैसला किया है। ताकि रामलला के दर्शन को आने वाले उन राज्यों के विशेष अतिथि वहां ठहर सकें। साथ ही अयोध्या मे 50 से ज्यादा भूखंड धार्मिक संप्रदाय, मठ, आश्रम के लिए भी आवंटित किए जाएंगे। आपको बता दें कि इस समय अयोध्या में 258 करोड़ रुपये की विकास योजनाएं चल रही हैं। अयोध्या के विकास के साथ-साथ इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि पर्यावरण और धार्मिक, ऐतिहासिक स्वरूप पर भी कोई असर न पड़े।


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