
अयोध्या. भगवान राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आन्दोलन का श्री गणेश सीतामढ़ी बिहार से श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की ओर से निकाली गई रथयात्रा से सन 1983 में हुआ था। इसके बाद चरणबद्ध आन्दोलन में पहले 1986 में तत्कालीन जिला सत्र न्यायाधीश के आदेश से राम जन्मभूमि का ताला खुला। फिर तो आन्दोलन और आगे चढ़ता गया।
30 अक्तूबर 1990 को अयोध्या चलो का आह्वान विहिप की ओर से किया गया था। तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की तो इसकी इतनी बड़ी प्रतिक्रिया पूरे प्रदेश में हुई कि उसकी कल्पना भी शासन ने नहीं की थी। फिलहाल गांव-गांव के लोग मदद में खड़े हो गए और उन्हीं के सहयोग से कार सेवक पुलिस प्रशासन को चकमा देकर अयोध्या पहुंचने में कामयाब हो गए। यहां पहुंचे कार सेवकों ने विवादित ढांचे पर चढ़कर झंडा फहरा दिया और दूसरे दिन सभी कार सेवक रामलला के सामूहिक दर्शन की योजना भी बना डाली।
अफसरों ने सामूहिक दर्शन से रोकने के लिए अयोध्या की गलियों को रक्तरंजित करने में कोई संकोच नहीं किया। कई कारसेवक इसमें मारे गए। इसके कारण आए कार सेवक वापस लौट गए लेकिन जब 6 दिसम्बर 1992 में उनकी दोबारा वापसी हुई तो फिर बिना हथियार के ही राम जन्मभूमि पर स्थित विवादित ढांचे का ध्वंस करके ही लौटे। कारसेवकों का दिल यहीं भर गया होता तो ठीक था लेकिन इस दौरान पुलिस का मुखबिर मानकर उन्होंने पत्रकारों के साथ-साथ एक समुदाय विशेष के घरों पर भी हमला कर दिया। इसके कारण जिला प्रशासन को कर्फ्यू की घोषणा करनी पड़ी।
लाखों कार सेवकों की मौजूदगी में जहां पुलिस अधिकारी बेबस थे। वहीं इस घटना से आक्रोशित लोगो द्वारा कजियाना मुहल्ले में स्थित मॉन्टेसरी स्कूल में लगी आग को बुझाने की कोशिश राकेश मावी जो बैंक ऑफ बड़ौदा अयोध्या शाखा के कर्मचारी थे की थी। इसके कारण उन्हें भी कारसेवकों के क्रोध का सामना पड़ा। इस घटना से वह इतने सदमे में आए कि उन्होंने यहां से अपना स्थानान्तरण ही करवा लिया। स्कूल के व्यवस्थापकों का कहना है कि स्थानीय लोगों की मदद के कारण ही वहां से निकलने में सफल हुए। इसी दहशत का परिणाम था कि लम्बे समय तक छह दिसम्बर की तिथि आते ही समुदाय विशेष के लोग शहर छोड़कर रिश्तेदारों के यहां चले जाते थे।
Updated on:
06 Dec 2017 01:39 pm
Published on:
06 Dec 2017 01:35 pm
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