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राम की अयोध्या त्राहिमाम्-त्राहिमाम् कर रही है, राम की राजधानी में राक्षसों का राज है

ऐसा हो रहा है जो न भूतो न भविष्यति है। कोई दंगा-फसाद, हिंसा-मारपीट तो हुआ नहीं। फिर भी बेमियादी कर्फ्यू मुलायम सरकार ने लगा दिया है। साधु क्या चाहते हैं ? जन्मभूमि ही न ? वह कौन सा गलत मांग कर रहे हैं? कर्फ्यू और सन्नाटे के बीच हनुमत औषधालय चलाने वाले बाबा वैष्णवदास उदास बैठे हैं। वह डबडबाई आंखों से कहते हैं-देखें राम कब आते हैं।

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Ayodhya News

विभिन्न सुरक्षा बलों के एक लाख से अधिक जवान और उत्तर प्रदेश सशस्त्र पुलिस के 45 हजार जवानों की तमाम कोशिशें कारसेवकों को रोक रही थी।

Ram Mandir Katha: यज्ञशााला के पास एक ग्रामीण महिला जोर-जोर से पुलिस वालों पर चीखती है। उनको लानत भेजती है और कहती है कि कैसे रोकोगे ? हर घर में दस से पंद्रह कारसेवक आ चुके हैं। अयोध्या वालों ने अपने घरों के दरवाजे खोल दिए हैं। अयोध्या का बच्चा-बच्चा कारसेवक है। जाकर देखो मणिराम दास छावनी और दिगंबर अखाड़े में कितने कारसेवक मौजूद हैं। कान खोलकर सुन लो! कारसेवा होकर रहेगी...।

हांलाकि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सुखपाल सिंह, वीपी सिंह, शंकर सिंह वगैरह आश्वत हैं कि कारसेवक जैसे ही घरों से बाहर निकलेंगे गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। पुलिस अधिकारी आपस में बातचीत करते हैं कि कारसेवा तो महज खयाली पुलाव है। सरयू पुल के उस पार हजारों की तादात में कारसेवक पहुंच चुके थे।

लेकिन सरयू पुल को पुलिस ने सील कर दिया था। कारसेवकों ने स्थानीय मल्लाहों की मदद लिया। नाव से या नदी तैरकर सरयू पार करने का सिलसिला शुरू हो गया। अधिकारियों को पता चला अरे ऐसा हो रहा है? फौरन सैकड़ों नावों को सरयू जी में डूबो दिया गया। लेकिन सिलसिला थमा नहीं। रोक नहीं पाए। कारसेवक आते रहे। सरकार डाल-डाल, कारसेवक पात-पात।

रामजन्मभूमि से हर संभव नजदीकी देखते हुए खेतों, पेड़ों और झाड़ियों में कारसेवक डेरा डालने लगे थे। एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि ज्यादातर मध्यप्रदेश या राजस्थान के हैं। बेचारे कई दिनों से भूखें हैं तो हमलोग ही पूड़ी का पैकैट फेंक देते हैं। सरकार के दमनकारी रवैये से तंग आए लोग तो राजनीतिक दलों की सीमाएं भी टूट गई।

फैजाबाद के वामपंथी सांसद मित्रसेन यादव तो मुलायम सरकार पर बरस पड़े। चौदह कोसी, पंचकोसी परिक्रमा कोर्ट के आदेश के बावजूद रोकने पर उग्र विरोध करने लगे। दूसरी तरफ कांग्रेस के पूर्व सांसद निर्मल खत्री परिक्रमा में भाग लेने की मांग को लेकर गिरफ्तारी दे चुके थे। अदभुत दृश्य था। झंडा कांग्रेस पार्टी का और गिरफ्तारी देते कांग्रेस नेता नारे लगा रहे थे कि राजीव गांधी जिंदाबाद, बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का।

असली इम्तहान तो बाकी है

उत्तर प्रदेश में तैनात विभिन्न सुरक्षा बलों के एक लाख से अधिक जवान और उत्तर प्रदेश सशस्त्र पुलिस के 45 हजार जवानों की तमाम कोशिशें कारसेवकों को रोक रही थी। विलंबित कर रही थी। उत्पीड़न, गिरफ्तारी जारी था। लेकिन इसके बावजूद हजारों की तादात में कारसेवक अयोध्या पहुंच चुके थे।

अब अयोध्या में तैनात 20,800 जवानों पर ही मुलायम सरकार आश्रित हो चुकी थी। मुलायम सरकार के दावे परिंदा भी पर नहीं मार सकता को कायम रखना था। केंद्र और प्रदेश सरकार सत्ता के मद में मदहोश थे। लेकिन असली इम्तहान तो बाकी था। इंतजार था 30 अक्टूबर 1990 का।

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सूर्यवंश की राजधानी का सूरज हुआ लाल

देवोत्थान एकादशी को सूर्यवंश की राजधानी अयोध्या का सूरज निकला तो कुछ अधिक ही लाल था। रातभर का तनाव और उत्तेजना, जोश और जूनून में बदल चुका था। थोड़ा पीछे चलते हैं। 28-29 अक्टूबर 1990 की रात जब अयोध्या में शायद ही कोई सो पाया हो। घड़ी की सूई जैसे-जैसे आगे बढ़ती लोगों की धडक़ने बढ़ती जाती। रात के घुप्प अंधेरा और कारसेवक जन्मभूमि की तरफ बढऩे लगे।

तैनात जवानों की चहलकदमी, मठ-मंदिरों में रातभर कारसेवकों की धर-पकड़ और सरयू पुल पार जमे हजारों कारसेवकों को खदेडऩे की कोशिशें जारी थी। अयोध्या में तनाव लेकिन कारसेवक अडिग थे। अयोध्यावासियों ने कारसेवकों को हर संभव मदद देनी शुरू कर दी। पुलिस से बचने के लिए घरों के दरवाजे तो रात-दिन खुले ही थे। अब सड़कों को भी जाम किया जाने लगा। पेड़ काटकर सड़क पर डाला गया, टायर, ड्रम डाल दिया गया। ट्रकों की हवा निकाल दी गई। पुलिस की गाड़ियां पंचर कर दी गई। ताकि पुलिस गिरफ्तार कारसेवकों को अयोध्या से बाहर न ले जा सके।

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सुबह चार बजे कर्फ्यू में तीन घंटे की ढील

30 अक्टूबर 1990 की सुबह चार बजे। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आश्वस्त थे कारसेवा नहीं हो पाएगी। सुबह चार बजे तीन घंटे के लिए कर्फ्यू में ढील दी गई। हजारों की तादात में महिलाएं घरों से निकलकर सरयू स्नान के लिए निकली। इसी बीच मठ और मंदिरों से कारसेवक निकल पड़े। झुग्गी-झोपड़ियों में छिपे कारसेवक भी पुलिस से लुकाछिपी करते जन्मभूमि की तरफ बढऩे लगे।

शायद विश्व हिंदू परिषद के अधिकारियों ने भी नहीं सोचा होगा कि उस दिन कारसेवक नया इतिहास लिखने जा रहे हैं। जैसा माहौल था, उस माहौल में कारसेवा तो छोड़िए, सत्याग्रह ही राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का शंखनाद माना जाता। जो हुआ भी।

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9 बजकर 44 मिनट पर कारसेवा का मूहूर्त

80 साल के महंत परमहंस रामचंद्र दास ने अन्न ग्रहण नहीं किया था। उनका संकल्प था जबतक कारसेवा नहीं होगी, वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। मूहूर्त का समय करीब आया। कारसेवा के लिए अशोक सिंहल, महंत नृत्य गोपाल दास, वयोवृद्ध वामदेव महाराज, विवेकानंद महाराज, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक और विहिप नेता श्रीशचंद्र दीक्षित मणिराम दास छावनी के दाई ओर की गली से निकलकर मुख्य सड़क पर आ गए।

जन्मभूमि की तरफ संत आगे बढ़ने लगे। इसी दौरान वामदेव महाराज के सीने में अचानक दर्द उठा लेकिन वह वापस जाने को तैयार नहीं हुए। उनको एक ठेला गाड़ी में रखा गया। सीयावर रामंचद्र की जय के नारों के साथ सब तरफ से लोग जन्मभूमि की तरफ बढ़ने लगे। मठ-मंदिरों में शंख, घंटा एक साथ बजना शुरू हो गया। सैकड़ों की तादात हजारों में बदल गई। लोग घरों से निकलकर सड़क पर आने लगे। कारसेेवकों का हूजूम हनुमान गढ़ी तक पहुंंचा जिसके बाद पुलिस ने रोक दिया। अशोक सिंहल को एक लाठी अचानक से लगी। वे गिरे। गिरकर संभल गए। खून का फब्बारा माथे से निकलने लगा। जिसे गमछा से बांधा गया। जारी रखेगें।

कल की स्टोरी में बताएंगे सरयू पुल पर हुई गोलीबारी और जन्मभूमि पर तैनात जवानों का गोली चलाने से इंकार करना।


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