Ram Mandir Katha Quiz 4: आज के इस अध्याय में हम आपको अयोध्या के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जिसे राजा जनक ने अयोध्या नरेश दशरथ से खरीद लिया था। साथ ही, कथा के अंत में एक क्विज भी दिया गया है, जिसके विजेता को सर्टिफिकेट दिया जाएगा। साथ ही एक लकी विजेता को मिलेगा पत्रिका समूह की ओर से राम मंदिर ट्रिप का मौका। क्विज का लिंक इसी कथा के अंत में दिया गया है।
Ram Mandir Katha Quiz 4: राम मंदिर कथा क्विज की इस कड़ी में आज हम आपको अयोध्या के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जिसे राजा जनक ने अयोध्या नरेश दशरथ से खरीद लिया था। इसी कथा के अंत में आपको पत्रिका समूह की ओर से अगले 100 दिनों तक लगातार आयोजित होने वाले एक क्विज का लिंक मिलेगा, जिसमें आप आज की कथा पर आधारित कुछ सवालों के जवाब दे कर पत्रिका के आधिकारिक सोशल पेज पर फीचर हो सकते हैं। साथ ही इस क्विज के विजेता को एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इसके अलावा एक लकी विजेता को मिल सकता है पत्रिका समूह की तरफ से राम मंदिर ट्रिप का मौका। आइए, जानते हैं राम की अयोध्या के उस खास गांव के बारे में।
अयोध्या का एक गांव ‘जनौरा’
अयोध्या और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को लेकर हमारी (पत्रिका) पड़ताल लगातार जारी है। इसके लिए धर्मग्रंथों से लेकर इतिहास के पन्ने पलटने के दौरान कुछ किताबों और संत महंतों से मिलने और उनसे जानकारी जुटाने का सिलसिला अनवरत चल रहा है। इसी दौरान राम की पैड़ी पर अनवरत यज्ञ अनुष्ठान करने वाले संत पंडित कल्किराम ने बताया कि ‘यदि आपको रामायण काल की कुछ सत्य घटनाओं से रूबरू होना है तो आपको जनकौरा स्थित मंत्रेश्वर महादेव मंदिर जाना चाहिए। वहां आपको महाराजा जनक द्वारा स्थापित शिवलिंग का दर्शन हो जाएगा।’
इस जानकारी के बाद दिनभर की थकान भूलकर हम जनकौरा मंदिर की तलाश में निकलने को तैयार हो गए। लेकिन, मुश्किल यह थी कि जनकौरा है कहां पर? हम अभी इस बारे में सोच ही रहे थे कि पंडित जी ने हमारी ये राह भी आसान कर दी। उन्होंने बताया कि शहर से सटे स्थल जनौरा का नाम ही त्रेता युग में जनकौरा हुआ करता था। हमनें पंडित कल्किराम को धन्यवाद देते हुए अपनी अगली मंजिल की ओर कदम बढ़ा दिया। कुछ ही देर में हम नाका हनुमान गढ़ी के पास स्थित जनौरा (जनकौरा) पहुंच गए।
बेहद पतली ईंटों से बनी है ये मंदिर
हमें मंदिर ढूंढने में कुछ खास कठिनाई नहीं हुई। मंदिर के गेट पर पहुंचते ही हमें इस मंदिर के पुरातन का अहसास होने लगा। लखौरी ईंटों (बेहद पतली ईंटों) से बनी ये मंदिर काफी भव्य और मनमोहक था। मंदिर के सामने स्थित सरोवर उसकी भव्यता को और बढ़ा रहा था। इस सुंदरता को लगातार निहारने का मन तो हो ही रहा था, पर त्रेतायुग कालीन निशानियां देखने की उत्सुकता मन पर हावी हो गई। हमने अपना कदम मंदिर के गेट की ओर बढ़ा दिया।
थोड़े समय तक इंतजार के बाद हमारी मुलाकात मंदिर के पुजारी शिवरतन सिंह से हुई। मैंने उन्हें अपने आने का उद्देश्य बताया। पुजारी ने हमें कुछ क्षण इंतजार करने को कहा और कहीं चले गए। इंतजार के समय को न गंवाते हुए हमलोग मंदिर परिसर में टहलने लगे। इस दौरान हमने मंदिर के पास स्थापित एक शिवलिंग और उनके सामने स्थापित भगवान नंदी को देखा। इसी बीच पुजारी जी ने आवाज लगाई। हम पुजारी के साथ मंदिर प्रांगण में ही बैठ गए और बातों का सिलसिला शुरू हो गया।
सीता के विवाह के बाद राजा जनक उदास रहने लगें
पुजारी शिव रतन सिंह ने बताया कि ‘जनकौरा का जिक्र तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के बालकांड में भी किया है। जनकौरा से पहले इस स्थान का नाम जानकी नगर था।’ मिल रहीं जानकारियां अमूल्य थीं पर हमारी उत्सुकता रामायण कालीन साक्ष्यों को देखने की थी। पुजारी जी से इस बात की चर्चा की गई तो उन्होंने मुस्कराते हुए मुझे इंतजार करने व पहले पूरी कहानी जान लेने की नसीहत दे दी। उन्होंने बताया कि ‘माता जानकी का भगवान राम से पाणिग्रहण होने के बाद वे अयोध्या आ गईं। इसके उपरांत महाराजा जनक काफी उदास रहने लगे। वे अयोध्या तो आना चाहते थे पर उनके सामने यह समस्या आ गई कि सनातन धर्म में बेटी के घर रुकना वर्जित है। महाराजा जनक ने इस परंपरा का पालन करते हुए अयोध्या के राजा दशरथ से उचित मूल्य चुकाकर जनकौरा को खरीद लिया और यहाँ आकर भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए मंदिर का निर्माण कराया।’
मंदिर के पुजारी ने हमें एक ऐसी जानकारी दी, जिससे हम चौंक उठे। उन्होंने बताया कि ‘त्रेता युग में अवतरित भगवान राम जब धरती पर निर्धारित अपनी अवधि पूर्ण कर चुके तो कालदेव स्वयं उनसे मिलने आये और उन्होंने इसी स्थान पर बैठकर भगवान से मंत्रणा की थी। उसी के बाद इस मंदिर का नाम मंत्रेश्वर महादेव पड़ा।’
पुजारी ने किए चौंकाने वाले खुलासे
पुजारी जी के अनुसार इस मंदिर में राजा जनक ने शिवलिंग स्थापित न कर महादेव और मां पार्वती का स्वरूप स्थापित किया था। और यही कारण है कि उक्त स्वरूप अन्य शिवलिंग से भिन्न है। अयोध्या के मुख्य सात पीठों में मंत्रेश्वर महादेव मंदिर भी शामिल है। बताया यह जाता है कि बाबर की सेना ने इस मंदिर को भी काफी छति पहुंचाई थी पर वह भगवान के स्वरूप को नुकसान नहीं पहुंचा सका। जब हमने त्रेतायुग कालीन साक्ष्यों को दिखाने की बात कही तो उन्होंने बताया कि बातचीत से पूर्व आप जिस मूर्ति (शिवलिंग) को निहार रहे थे, उसे ही राजा जनक ने मंदिर में स्थापित कराया था। फिर सवाल किया गया कि यदि भगवान शिव का स्वरूप त्रेता कालीन है तो माता पार्वती का स्वरूप कहां है? इतना कहते ही पुजारी जी उठ खड़े हुए और पीछे आने का इशारा किया। वे मंदिर परिसर में बने एक कमरे में गए और उसका ताला खोलने लगे। बाहर रुकने का इशारा करते हुए वे अंदर चले गए।
कुछ ही मिनट बाद उन्होंनेे आवाज लगाई और अपने पास बुलाया। फिर सामने वह दिखा, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। शिवलिंग प्रकार का एक ऐसा स्वरूप, जो कई स्थानों से टूट चुका था। इस स्वरूप के पौराणिकता का अनुमान भी लगाना कठिन हो रहा था। श्रद्धावश हमारे हाथ प्रणाम करने को स्वयं ही उठते चले गए। अब यह त्रेतायुग कालीन स्वरूप था, अथवा किसी अन्य कालखंड का पर इतना तो जरूर था कि भारतीय संस्कृति को उक्त स्वरूप जीवन्त कर रहे थे।
राम मंदिर से जुड़ी स्पेशल स्टोरी पढ़ें
Note - पूरी कथा पढ़ने के बाद अब यहां आपको एक क्विज दिया जा रहा है। आपको कथा पर आधारित कुछ प्रश्नो के जवाब देने हैं। इस क्विज में जीतने वाले को पत्रिका डॉट कॉम की तरफ से सर्टिफिकेट दिया जाएगा। साथ ही, उसे 50 लाख से अधिक फॉलोअर वाले पत्रिका उत्तर प्रदेश के सोशल मीडिया पेजेज पर फीचर होने का मौका भी मिलेगा। इसके अलावा एक लकी विजेता को मिलेगा पत्रिका समूह की ओर से राम मंदिर ट्रिप का मौका। राम मंदिर कथा क्विज का आयोजन पत्रिका की तरफ से अगले 100 दिनों तक लगातार किया जाना है। ऐसे में आप रोजाना पत्रिका उत्तर प्रदेश को फॉलो कर क्विज खेल सकते हैं। साथ ही अपने दोस्तों, घर-परिवारवालों और रिश्तेदारों को भी क्विज खेलने को आमंत्रित कर सकते हैं।
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