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अनोखा : कार्तिक माह में सरयू के तट राजा महाराजा भी करते थे कल्पवास, जाने इसका महत्व

कार्तिक माह प्रारंभ होने के साथ अयोध्या में हजारों की संख्या में श्रद्धालु ने कल्पवास शुरू कर दिया है।  

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अयोध्या की परिक्रमा के साथ समाप्त होता है कल्पवास

अयोध्या की परिक्रमा के साथ समाप्त होता है कल्पवास

कार्तिक माह के प्रारम्भ होने के साथ रामनगरी अयोध्या के सरयू तट के किनारे कल्पवासियों के जमावड़ा शुरू हो गया है और बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ लोग कल्पवास कर अपने धार्मिक अनुष्ठान सम्पूर्ण कर रहे हैं ऋतु परिवर्तन की दृष्टि से कार्तिक का महीना समशीतोष्ण होता है। भारतीय परंपरा में इसे महीनों में सर्वोत्तम बताया गया है। अर्जुन को गीता का ज्ञान देते वक्त भगवान कृष्ण ने खुद को महीनों में कार्तिक बताया था। इस महीने व्रत त्योहारों की संख्या भी अधिक होती है। करवा चौथ से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक शायद ही कोई दिन हो जिस दिन का विशेष महत्व न हो।

जहां राजा महाराजा भी करते थे कल्पवास

गंगा बड़ी गोदावरी तीरथ राज प्रयाग सबसे बड़ी अयोध्या नगरी जहां राम का हुआ अवतार कहा जाता है कि तीर्थ में सरयू तट बसी अयोध्या सबसे पवित्र स्थल है। सरयू तट के किनारे इस स्थान पर बैठकर कल्पवास करने से सभी इच्छा पूरी होती है। और मनमंछित फल प्राप्त होता है। और कहा जाता है कि इस घाट पर राजा महाराजा भी कल्पवास करने के लिए पहुंचते थे और एक माह तक पूजा अर्चन करते थे।

कल्पवास में पूरी करनी पड़ती है यह परंपरा

यह कल्पवास एक प्रकार की साधना है, जो पूरे कार्तिक मास के दौरान पवित्र नदियों के तट पर की जाती है। लेकिन इसके नियम इतने सरल नहीं हैं। कल्पवास स्वेच्छा से लिया गया एक कठोर संकल्प है। और इस कल्पवास में धार्मिक महत्व बताया गया है कि प्रमुख पर्वो पर उपवास रखना दिन भर में तीन बार पवित्र नदियों में स्नान करना।,त्रिकाल संध्या वंदन,भूमि शयन और इंद्रिय शमन,ब्रह्मचर्य पालन,जप, हवन, देवार्चन, अतिथि देव सत्कार, गो-विप्र सन्न्यासी सेवा, सत्संग, मुंडन एवं पितरों का तर्पण करना सामान्यत: गृहस्थों के लिए तीन बार गंगा स्नान को श्रेयस्कर माना गया है। विरक्त साधू और सन्न्यासी भस्म स्नान अथवा धूलि स्नान करके भी स्वच्छ रह सकते हैं। कल्पवास गृहस्थ और सन्न्यास ग्रहण करने वाले स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं। लेकिन उनका कल्पवास तभी पूर्ण होता है, जब वे सभी नियमों का पालन पूर्ण आस्था और श्रद्धा के साथ करेंगे।

अयोध्या की परिक्रमा के साथ समाप्त होता है कल्पवास

शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार का आचरण कर मनुष्य अपने अंत:करण एवं शरीर दोनों का कायाकल्प कर सकता है।एक कल्पवास का पूर्ण फल मनुष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर कल्पवासी के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। आचार्य सत्येन्द्र दास बताते हैं कि अयोध्या में कल्पवास का विशेष महत्व माना गया है। जिसके कारण कार्तिक माह प्रारम्भ होते ही कल्पवास करने वाले श्रद्धालु का जत्था सरयू के घाट पर पहुंच जाता है। और लोग अयोध्या में रह कर एक माह तक पूजन अनुष्ठान करते हैं। और अंत मे धाम की 5 कोसी और 14 कोसी परिक्रमा कर इस यात्रा को पूरा करते हैं।