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ठंड के कारण भगवान के भोग में बढ़ी समस्या, जाने कहा से हो रही व्यवस्था

अयोध्या में हैं 7 हजार से अधिक मंदिर जिनके गर्भगृह में भगवान के भोग के लिए लगाई जाती है तुलसी के पत्ते

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ठंड के कारण भगवान के भोग में बढ़ी समस्या, जाने कहा से हो रही व्यवस्था

ठंड के कारण भगवान के भोग में बढ़ी समस्या, जाने कहा से हो रही व्यवस्था

अयोध्या. राम नगरी अयोध्या पढ़ रही ठंडी और पाला का असर मंदिरों के गर्भगृह में विराजमान भगवान के भोग पर भी पड़ रहा है। और घरों व मंदिरों के दहलीज में लगाई गई तुलसी पर पाला पढ़ने से गायब हो गए हैं। दरसल भगवान के भोग के लिए तुलसीदल की जरूर पड़ती है। बगैर तुलसीदल के स्पर्श के भगवान का भोग पूर्ण नहीं होता । वह भोजन भगवान के भोग लायक नहीं माना जाता है। लेकिन ठंड ने मंदिरों के पुजारियों को मुश्किल में डाल दिया है। और यह तुलसी का महत्व ही है कि भगवान को भोग लगाने के लिए पुजारियों को कोलकाता से तुलसी पत्तियां मंगानी पड़ रही है।

ठंड के कारण तुलसी की पत्तियां हुए प्रभावित

अयोध्या मंदिरों की नगरी मानी जाती है यहां पर 7000 से अधिक मंदिर हैं जिसके कारण मंदिरों गर्भ ग्रह में लगने वाले भोगराज के लिए तुलसी की मांग सबसे अधिक होती है। जिसके के कारण आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में तुलसी के पौधों को रोपा जाता है। लेकिन इस वर्ष कड़ाके की सर्दी से हरी-भरी रहने वाली तुलसी की पात्तियाँ प्रभावित होने से बच नहीं पाई । मंदिरों के पुजारी बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष तो तकरीबन लगभग ढाई महीने तक तुलसी की कमी रहती है । लेकिन इस वर्ष कई दिनों तक ठंडी लगातार बनी रही। इसलिए दिक्कत होना स्वाभाविक है। इसलिए दूर दराज रहने वाले भक्तों से संदेश भेज कर पत्तियां मंगवा रहे हैं।

तुलसी के बिना अधूरा होता है भगवान का भोग

हनुमानगढ़ी अखाड़े के प्रधान पुजारी रमेश दास बताते हैं कि प्रतिवर्ष 2 से ढाई माह तक तुलसीदल की काफी समस्या रहती है। लेकिन इस वर्ष यह समस्या और अधिक हो गई है ।मंदिर में भगवान के राग- भोग के लिए कभी- कभी तुलसी के नाममात्र पत्तों से किसी तरह पूजन कार्य निपटाए जा रहे हैं ।इसलिए इन महीनों में कोलकाता के भक्तों से हरे तुलसी के पत्ते मंगवाए जा रहे हैं।
वहीं रामजन्मभूमि परिसर के निकट स्थित राम कचहरी चारों धाम मंदिर के महंत शशिकांत दास ने बताया कि मानस में तुलसी महात्म्य की कथा को आधार मानकर बताते है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने अनन्य भक्त वृंदा को तुलसी के रूप होने का आशीर्वाद दिया था। कहा था कि बगैर तुलसी के भगवान कोई भोग ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिए भगवान का राग- भोग तुलसी दल के बिना अपूर्ण माना जाता है।


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