
अयोध्या. आज राम की नगरी अयोध्या में भगवान राम और माता सीता का विवाह बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है। राम सीता विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि को शास्त्रों में विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है।
जानिए क्यों मनाई जाती है 'विवाह पंचमी'
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था। तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रथों में लिखा है कि इस दिन भगवान राम ने माता सीता से विवाह रचाया था। जिसका वर्णन महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में बड़ी ही सुंदरता से किया गया है।
मिलते हैं पुरे 36 गुण
भगवान राम और देवी सीता के विवाह इसलिए भी संपन्न माना जाता है क्योंकि इनके 36 गुण मिलते हैं। जिन लोगों के विवाह के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा होता है वह बिना पंचांग देखे भी इस दिन विवाह कर सकते हैं।
जानिए कब हुआ था विवाह
राम सीता का विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को हुआ था। बाल्मिकी रामायण के अनुसार जब राम सीता का विवाह हुआ था उस समय भगवान राम 13 वर्ष के थे और माता सीता 6 वर्ष की थी। विवाह के बाद देवी सीता अपने पिता के घर जनक जी के यहां 12 वर्ष की आयु तक रही थीं।
नेपाल में आज भी है मंडप
जिस मंडप में प्रभु श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था वह मंडप नेपाल के जनकपुर शहर में आज भी है। लोग इस विवाह मंडप और विवाह स्थल के दर्शन करने दूर दूर से आते हैं। मान्यता यह है कि यहाँ आने से सुहाग की उम्र लंबी होती है। जनकपुर के आस-पास के गांवों के लोग विवाह के अवसर पर यहां से सिंदूर लेकर आते हैं जिनसे दुलहन की मांग भरी जाती है।
दम्पत्तियों को करना चाहिए विवाह प्रसंग का पाठ
वैवाहिक दम्पत्तियों को विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और देवी सीता की पूजा करनी चाहिए।इसे वैवाहिक जीवन की खुशियों में वृद्धि करने वाला माना गया है। इस अवसर पर रामचरित मानस के बालकांड और विवाह प्रसंग का पाठ पारिवारिक जीवन के लिए अच्छा माना गया है।
Published on:
23 Nov 2017 12:38 pm
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