
चंद्रास्वामी ने साफ कहा कि विहिप पवित्र कार्य कर रहा है और बिना गुंबद हटे राममंदिर का निर्माण नहीं हो सकता।
सरकारी तामझाम के साथ प्रख्यात तांत्रिक और केंद्र की सत्ता में अपनी हनक रखने वाले चंद्रास्वामी अयोध्या पहुंचे। वह अयोध्या पहुंंचते ही पत्रकारों के सामने विश्व हिंदू परिषद की तारीफों के पुल बांधना शुरू किए। पत्रकार मनोज तिवारी कहते हैं कि ऐसा करना चंद्रास्वामी की मजबूरी भी थी।
यदि वह विहिप की आलोचना करते तो अयोध्या में अलग-थलग पड़ जाते। संत उन्हें स्वीकार ही नहीं करते। बहरहाल, चंद्रास्वामी ने साफ कहा कि विहिप पवित्र कार्य कर रहा है और बिना गुंबद हटे राममंदिर का निर्माण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण का कार्य पवित्र है और इस पर राजनीति नहीं होना चाहिए।
चंद्रास्वामी ने महंत परमहंस रामचंद्र दास से मुलाकात की। महंत नृत्यगोपाल दास से बातचीत की। इसके बाद उन्होंने पत्रकार वार्ता शुरू की। पत्रकार वार्ता में परमहंस रामचंद्र दास बैठे तो लेकिन उन्होंने साफ कह दिया, “मैं विश्व हिंदू परिषद के अनुशासन से बंधा हूं और विहिप की योजना से ही हम आंदोलन करेंगे।” चंद्रास्वामी का दांव फेल होता नजर आया। कारण कि महंत नृत्य गोपाल दास ने चंद्रास्वामी के साथ बैठना स्वीकार ही नहीं किया। जबकि चंद्रास्वामी अपनी इस यात्रा से प्रसन्नचित्त थे। उन्होंने कहा कि मेरी उपस्थिति में पहली बार हनुमानगढ़ी के महंत, मणिराम दास छावनी के महंत और दिगंबर अखाड़े के महंत एक साथ बैठे।
पत्रकार मनोज तिवारी कहते हैं कि चंद्रास्वामी सरकार के दूत के तौर पर ही आए थे। वह आंदोलन को धीमे जहर की तरह नुकसान पहुंचाना चाहते थे। हांलाकि वह हरिद्वार के महामंडलेश्वर प्रकाशानंद को समझाने में कामयाब हो गए। प्रकाशानंद कारसेवा सत्याग्रह के संयोजक थे और उन्होंने गिरफ्तारी नहीं दी।
एकतरफ दांवपेंच, दूसरी तरफ सत्याग्रह
6 दिसंबर 1990 से विश्व हिंदू परिषद ने सत्याग्रह शुरू किया था जो 40 दिनों तक चलने वाला था। इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती थी युवाओं के भावना के ज्वार को काबू किए रखना। देश की आजादी के आंदोलन के बाद शायद यह सबसे बड़ा और लंबे समय तक चलने वाला सत्याग्रह था। जिसमें लाखों लोगों ने अयोध्या मेंं गिरफ्तारी दी तो अयोध्या के बाहर अन्य जिलों में संघ, विहिप, आम हिंदू जनता ने गिरफ्तारियां दी।
1990 दंगों की आग में झुलसा उत्तर प्रदेश
इधर विहिप का सत्याग्रह चल रहा था। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में दो सम्प्रदायों के बीच कड़वाहट बढ़ती जा रही थी। छोटी-छोटी बातें तूल पकड़ने लगी और देखते ही देखते दंगे भड़क जाते। अलीगढ़, एटा, कानपुर, मेरठ, वाराणसी, इलाहाबाद, फैजाबाद, आगरा, गाजियाबाद जिलों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। कहीं कर्फ्यू लगा तो कहीं सेना बुलानी पड़ी। सैनिकों और पुलिस बल पर हमले हुए।
कई जगह पीएसी और मुस्लिम वर्ग में संघर्ष हुए। बम चले, राकेट लांचर पकड़े गए। लोहे के औजार बनाने वालों के यहां हथियारों का जखीरा बरामद हुआ। धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई। कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई। करीब 500 से अधिक लोग मारे गए।
यहां तक कि अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती बीमारों और उनके तीमारदारों का कत्ल कर दिया गया। जहांगीरपुर में औरतों बच्चों को जिंदा जला देने की हैवानियत हुई। लड़कियों-महिलाओं के साथ बलात्कार और चाकू घोंप कर मार देने की रूह कंपा देने वाली घटनाओं से देश और प्रदेश हिल गया।
अलीगढ़ में ऐसे भड़का दंगा
साल 1990 के आखिरी महीने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में दंगों के भड़कने की कहानी हम आपको बताते हैं। अलीगढ़ में दंगा कैसे भड़का जब इस बारे में इतिहास को खंगालने की हम कोशिश करते हैं तो तत्कालीन श्रम मंत्री और बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक आजम खां के अनुसार अलीगढ़ में नमाजी जुमे की नमाज अदा करके लौट रहे थे तो उनपर बमों से हमला किया गया। उसके बाद शहर में मारकाट शुरू हो गई। जबकि अलीगढ़ के पुलिस अधीक्षक का कहना था कि लौट रहे नमाजियों में शामिल कुछ असामाजिक तत्वों ने आगजनी किया और मारपीट शुरू कर दिया। इससे दंगा भड़का।
खैर, अलीगढ़ के दंगों के भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां पर स्थिति नियंत्रण करने के लिए कर्फ्यू लगाने के साथ ही सेना बुलानी पड़ी। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में बीमारों को मार डाला गया और उनके साथ उनके तीमारदारों का भी कत्ल कर दिया गया। इस दंगों में मरनेवालों का आंकड़ा अलग-अलग सूत्रों से अलग-अलग था। लेकिन उस समय के घटनाक्रम को कवर कर रहे पत्रकारों का अनुमान है कि 250 से अधिक लोग मारे गए।
गोपाल शर्मा लिखते हैं कि 7 दिसंबर 1990 की सुबह अलीगढ़ में मुसलमान नमाज अदा करके लौट रहे थे। तभी सराय मुल्तानी और तमोली के बीच बम विस्फोट हुआ। किसी को चोट नहीं लगी लेकिन दोनों समुदाय के लोग घरों से बाहर निकल आए। आरोप-प्रत्यारोप होने लगा और बात बिगड़ गई।
एक-दूसरे पर बम फेंका जाने लगा। बीच-बचाव की कोशिश करने वाले भाग खड़े हुए। सराय मुल्तानी में घरों की छत से पत्थर ईंट चलने लगे। पथराव हुआ, गोलियां चली फिर बम चलने लगे। हाथरस में बस अड्डे के पास एक मंदिर में पेट्रोल बम फेंका गया। थाना कोतवाली में हमला किया जाने लगा। थोड़ी देर में ही चार लोग मारे गए।
मेडिकल कॉलेज से निकलकर छात्रों ने आसपास की दुकानों में आग लगानी शुरू कर दी। शमशाद मार्केट, जमालपुर, सरायहकीम, रसूलगंज, लक्ष्मीपुर, सासनीगेट और गांधी पार्क आदि स्थानों पर जमकर हिंसा हुई। पहले ही दिन मरने वालों का आंकड़ा 15 पर पहुंच गया। जारी रखेंगे...। हम अलीगढ़ दंगों से लेकर गोमती एक्सप्रेस पर हमला और फ्लैग मार्च कर रहे जवानों पर हमले से लेकर जहांगीरपुर में जिंदा जलाने की घटना का सिलसिलेवार ब्यौरा देंगे।
Published on:
04 Dec 2023 12:36 pm
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