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गठबंधन में पेंच फंसाएगी मुलायम सिंह की सीट, इस पार्टी की दावेदारी से बिगड़ी बात!

आगामी 2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की राह में बढ़ते जा रहे हैं रोड़े, अब आजमगढ़ सीट बनी समस्या!

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Akhilesh Yadav and Mayawati

अखिलेश यादव और मायावती

आजमगढ़. लोकसभा चुनाव-2019 में बीजेपी को रोकने के लिए महागठबंधन की कवायद में जुटा विपक्ष अपने ही नेताओं की महत्वाकांक्षा के चलते फेल होता दिख रहा है। हर पार्टी में टिकट के दावेदार है और वे टिकट हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोक रहे हैं। ऐसे लोग किसी भी हालत में नहीं चाहते कि गठबंधन हो और उनकी दावेदारी पर असर पड़े। यही वजह है कि राजनीतिक दल भी हर कदम फूंक कर रख रहे हैं और गठबंधन पर चर्चा तक के लिए तैयार नहीं है। कारण कि इन्हें पता है कि गठबंधन होने की स्थित में यह महत्वाकांक्षी लोग भीतरघात कर सकते हैं।


बता दें कि आजमगढ़ मंडल को सपा-बसपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है। यहां वर्ष 1980 के बाद कांग्रेस का जनाधार नहीं के बराबर रहा है। माना जा रहा है कि गठबंधन की स्थित में आजमगढ़ की दो सीटों में एक सपा और एक बसपा के खाते में जाएगी। यह बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस को आजमगढ़ में कोई सीट नहीं मिलनी है। कांग्रेस के लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं।


गठबंधन में सबसे बड़ा पेंच है कि बसपा आजमगढ़ की दोनों सीटों पर दावा कर रही है। सूत्रों की मानें तो बसपा का दावा इसलिए मजबूत है कि आजमगढ़ सीट पर अब तक उसने चार बार जीत हासिल की है जबकि सपा को मात्र तीन बार जीत मिली है। कांग्रेस के लोग अंदर ही अंदर गठबंधन की चर्चा मात्र से घबराये हुए है। कारण कि उन्हें पता है कि यदि गठबंधन होता है तो उनको किसी भी हालत में मौका नहीं मिलना है।


इसलिए कांग्रेसी नहीं चाहते कि गठबंधन हो। इस दल से कई दावेदार भी सामने आ गये हैं। वर्ष 1984 में आजमगढ़ सीट से सांसद रहे डा. संतोष सिंह सबसे मजबूत दोवदार है लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता ओम प्रकाश राय भी इस लाइन में लग गए है।


ओम प्रकाश ने तो अब तक के अपने कार्य का पूरा लेखाजोखा तक प्रदेश नेतृत्व को पहुंचा दिया है। इसके अलावा भी कई दावेदार है जो अंदरखाने से टिकट के लिए लगे हुए हैं। ऐसी ही हालत मंडल के अन्य जिलों में भी है। यही वजह है कि पार्टी जिला इकाई के लोग भी इस मामले में कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है।


राजनीति के जानकार भी मानने लगे हैं कि गठबंधन की राह इतनी आसान नहीं है। कारण कि अपनी महत्वाकांक्षा पूरी न होने तक गठबंधन में शामिल होने वाले दलों के नेता पार्टी के साथ भीतरघात कर सकते हैं। जैसा कि वर्ष 2017 के विधानसभा के चुनाव में हुआ था।
By Ran Vijay Singh