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स्वतंत्रता सेनानी लालचंद तिवारी का दर्द, देश आजाद तो हुआ मगर नहीं मिली कट्टरपंथ और अलगाववाद से आजादी

बचपन से ही देश की आजादी का सपना देखने वाले लालचंद तिवारी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

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Freedom Fighter Lalchand Tiwari

स्वतंत्रता सेनानी लालचंद तिवारी

आजमगढ़. आज से 70 साल पहले जब देश को आजादी मिली थी तो उम्मीद थी कि देश की सरकारें शहीदों का सपना साकार करेगी। लेकिन आज तक कोई सरकार न तो शहीदों के सपने को पूरा कर सकी और ना ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपने को साकार कर सकी। देश की आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले 94 साल के स्वतंत्रता सेनानी लालचंद तिवारी का मानना है कि देश गोरों से तो आजाद हो गया लेकिन काले अंग्रेज आज भी देश को लूट रहे हैं।

ठेकमा ब्लॉक के बऊवा पार गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लालचंद तिवारी ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। बचपन से ही देश की आजादी का सपना देखने वाले लालचंद तिवारी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे लगातार क्रांतिकारियों की मदद करते थे। बाद में खुद भी उनके साथ अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने लगे। अग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वालों में लालचंद तिवारी ही मात्र एक जिंदा सदस्य है।

करीब आठ माह पहले इनके एक मात्र जिंदा साथी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लालचंद तिवारी का निधन हो गया। इनकी जोड़ी काफी मशहूर थी, दोनों 1942 में साथ ही जेल भी गए थे। लालचंद तिवारी बताते है कि वर्ष 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ करो या मरो का नारा दिया था। हर कोई गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए बेताब था। अंग्रेजों को खिलाफ संघर्ष जारी था। इसी बीच उन्हें और लालचंद तिवारी को सरायमोहन गांव में स्थित बेसो नदी पुल को तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई। हम करीब दर्जन भर लोग रात में पुल तोड़ने पहुंचे। घना अंधेरा था। वहां मौजूद वरिष्ठ लोगों ने हम दोनों को लालटेन लेने के लिए ठेकमा भेजा। अभी हम बिजौली गांव पहुंचे थे कि रास्ते में सिपाही राम दरश सिंह और राम प्रसाद राय ने गिरफ्तार कर लिया।

उन्होंने कहा कि हर क्रांतिकारी का सपना देश की आजादी थी। जब देश आजाद हुआ तो हम फूले नहीं समा रहे थे। हमें लगा कि अब भारत बदल जायेगा लेकिन अफसोस आज भी वह सपना साकार नहीं हुआ। देश में राजनीति के अपराधीकरण ने तस्वीर बिगाड़ कर रख दी। इसके बाद कट्टरपंथ, अलगाववाद, उग्रवाद ने इस देश को और पीछे ढकेल दिया। सही मायने में कहें तो गांधी, बोस आजाद ने आजादी को लेकर जो सपना देखा था वह आज तक पूरा नहीं हुआ। आज एक और आजादी की लड़ाई की जरूरत महसूस होती है। यह लड़ाई होनी चाहिए भ्रष्टाचार, अलगाववाद, उग्रवाद, और आतंकवाद के खिलाफ। जब तक यह बुराईयां समाप्त नहीं होती है तब तक देश सही मायनों में आजाद नहीं कहा जाएगा और ना ही शहीदों के सपने साकार होंगे।