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त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी एमएलसी सीट, आसान नहीं दिख रही किसी की राह

आजमगढ़-मऊ स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश राज्य विधान परिषद निर्वाचन-2022 के मतदान चंद दिन शेष बचे हैं। जीत के दावे सभी कर रहे हैं लेकिन हकीकत में यहां सघर्ष त्रिकोणीय फंस गया है। बीजेपी के बागी विक्रांत सिंह ने पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी की आपसी लड़ाई सपा अपने लिए फायदेमंद मान रही है।

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प्रतीकात्मक फोटो

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. आजमगढ़-मऊ स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश राज्य विधान परिषद निर्वाचन-2022 की सरगर्मी चरम पर पहुंच गयी है। नौ अप्रैल को मतदान होना है। इससे पहले प्रत्याशियोें नेे अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पहली बार यहां चुनाव त्रिकोणीय फंसा है। विक्रांत सिंह के मैदान में आने के बाद सपा और बीजेपी दोनों का ही नुकसान होता दिख रहा है। वैसेे सपा का दावा है कि विक्रांत ज्यादा नुकसान बीजेपी का करेंगे जो उसके लिए फायदेमंद है।

बता दें कि एमएलसी चुनाव में यहां हमेंशा से सपा का दबदबा रहा है। पिछला चुनाव भी सपा के राकेश कुमार यादव ने बड़े अंतर से जीता था। बीजेपी के राजेश महुआरी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था जबकि राजेश महुआरी सपा छोड़कर बीजेपी में आये थे और पार्टी ने उन्हें मौका दिया था। अब आजमगढ़-मऊ स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश राज्य विधान परिषद निर्वाचन-2022 चल रहा है नौ अप्रैल को 24 बूथों पर मतदान होना है।

बीजेपी ने पूर्व विधायक अरूणकांत यादव को प्रत्याशी बनाया है। जबकि सपा ने एक बार फिर एमएलसी राकेश यादव पर विश्वास जताया है। वहीं बीजेपी एमएलसी यशवंत सिंह के पुत्र विक्रांत सिंह बीजेपी से बगावत कर निर्दल चुनाव लड़ रहे हैं। अरूणकांत को मैदान में उतार बीजेपी ने बड़ा दाव खेला था। कारण कि अरूण सपा के बाहुबली विधायक रमाकांत यादव के पुत्र है। बीजेपी को भरोसा था कि रमाकांत यादव पुत्र के समर्थन में भले ही खुलकर सामने न आए लेकिन अंदरखाने सेे उसकी मदद करेंगे जिसका फायदा पार्टी को मिलेगा और वह पहली बार सीट जीतने में सफल होगी।

विक्रांत के निर्दल मैदान में आने से पार्टी का दाव फेल होता नजर आ रहा है। कारण कि विक्रांत के पिता एमएलसी यशवंत सिंह की सवर्णों में गहरी पैठ है। वहीं मऊ जिले की राजनीति में भी उनका सीधा हस्तक्षेप है। सवर्ण ही बीजेपी का असल वोट बैंक है जिसमें यशवंत सेंध लगा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ आजमगढ़ जिले में सपा की गहरी पैठ है। जिला पंचायत से लेकर कई नगरपंचायत में पार्टी का बहुमत है। क्षेत्र पंचायत सदस्य और ग्राम प्रधान भी सपा के अच्छी संख्या में जीते है। जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी को 86 में से सिर्फ पांच वोट मिले थेे। बीजेपी का दस वोट भी सपा के साथ चला गया था। ऐसे में पार्टी की राह आसान नहीं दिख रही है। सब मिलाकर चुनाव त्रिकोणीय होता दिख रहा है। बाजी किसके हाथ लगेगी कह पाना मुश्किल है।