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गुटबंदी के चलते अखिलेश के खिलाफ निरहुआ के ग्लैमर को भुनाने में नाकाम रही बीजेपी?

मतदान के बाद से उठ रहे हैं सवाल आखिर सबसे बड़ी पार्टी का बूथ मैनेजमेंट सबसे बदतर क्यों? बीजेपी के 30 प्रतिशत बूथों पर नहीं दिखे एजेंट। वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव हारने की बड़ी वजह बनी थी गुटबंदी। कई नेताओं पर लगा था बसपा के प्रचार का आरोप

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Akhilesh Yadav Nirahua

अखिलेश यादव निरहुआ

आजमगढ़. मतगणना में एक दिन बाकी है। सर्वे में अखिलेश यादव की जीत के दावे किये जा रहे है। सपाई गदगद है वहीं भाजपा भी यह दावा कर रही है कि वह आजमगढ़ सीट 20 से 25 हजार मतों से जीत रही है। लेकिन आम आदमी के जेहन में सिर्फ एक सवाल है कि कैसे। जो पार्टी चुनाव में 30 प्रतिशत बूथों पर एजेंट न खड़ी कर सकी हो वह इतना सटीक दावा कैसे कर सकती है। यहीं नहीं भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी होने के दावे पर भी सवाल उठने लगा है। साथ ही चर्चा है पार्टी की गुटबंदी की जिसने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीती हुई सीट को भी हरा दिया था।


बता दें कि आजमगढ़ जिले में कुछ एक मौकों को छोड़ दिया जाय तो बीजेपी ने कभी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। वर्ष 1991 की राम लहर में बीजेपी ने यहां दो विधानसभा सीट सरायमीर और मेंहनगर जीती थी। उस समय यह दोनों ही सीटें सुरक्षित थी। इसके बाद वर्ष 1996 में बीजेपी ने लालगंज विधानसभा सीट जीती थी। फिर उसे 2017 तक इंतजार करना पड़ा। इस चुनाव में बीजेपी ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया लेकिन आजमगढ़ में खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। बीजेपी को दस में से सिर्फ एक सीट फूलपुर मिली। अतरौलिया और लालगंज सीट पार्टी मामूली अंतर से हार गयी। इसके पीछे प्रमुख कारण गुटबाजी रही। उस समय अतरौलिया प्रत्याशी और गोपालपुर प्रत्याशी ने तो बाकायदा प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर वर्तमान जिलाध्यक्ष कई अन्य नेताओं पर बसपा की मदद का आरोप लगाया था।


रहा सवाल लोकसभा चुनाव का तो बीजेपी आजमगढ़ सीट 2009 व लालगंज सीट 2014 में जीतने में सफल रही थी। वर्ष 2019 में पार्टी ने आजमगढ़ सीट से दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा तो लगा कि पार्टी दोनों ही सीटों पर फिल्म स्टार के ग्लैमर का फायदा उठाएगी। इसका पूरा प्रयास भी किया गया लेकिन फिर पार्टी की गुटबंदी सामने आ गयी। जिन नेताओं पर 2017 में गंभीर आरोप लगे थे उनमें से कई को संगठन में पद तो पहले ही मिल गया था लेकिन चुनाव में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गयी। यहीं नहीं पिछड़े अति पिछड़े कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को नरजअंदाज किया गया।

कई को तो जिम्मेदारी कुछ और दी गयी और काम कुछ और लिया गया। यहीं नहीं बीजेपी ने बूथ जीतो और चुनाव जीतो का नारा दिया। बूथ मजबूत बनाने के लिए तीन महीने तक लगातार काम किया गया लेकिन गुटबंदी का ही नतीजा रहा है जहां विपक्ष ने निर्दल प्रत्याशियों के एजेंट के बदले बूथें पर अपने एजेंट तैनात कर लिए वहीं बीजेपी 30 प्रतिशत तक बूथों पर एजेंट ही नहीं बना पाई। चुनाव के बाद से ही इसकी जोरदार चर्चा है। पार्टी सूत्रों की माने तो एक बार फिर गुटबाजी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। खुद पार्टी के लोग मान रहे हैं कि लालगंज सीट पर गठबंधन काफी भारी है लेकिन आजमगढ़ सीट पर वे अब भी नजदीकी जीत का दावा कर रहे है।

By Ran Vijay Singh