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निजी स्कूल संचालक चुनिंदा दुकान से ही कोर्स-यूनिफॉर्म लेने कर रहे मजबूर

निजी स्कूलों की मनमानी के आगे पालक बेबस, 12 से 13 प्रतिशत बढ़ा दी फीस, निजी स्कूल संचालक चुनिंदा दुकान से ही कोर्स-यूनिफॉर्म लेने कर रहे मजबूर

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arbitrariness of private school operators

arbitrariness of private school operators

बड़वानी.
निजी स्कूल संचालकों की मनमानी और पालकों की परेशानी दूर नहीं हो पा रही है। कोरोना के दौरान ऑनलाइन क्लास के नाम पर अभिभावकों से पूरे साल भर की फीस वसूलने के मामले सामने आए थे और अब एक बार फिर से स्कूल संचालकों की मोनोपॉली ने अभिभावकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसके अलावा पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामोंं ने ट्रांसपोर्ट के खर्च में इजाफा भी कर दिया है। ऐसे में पालकों को अपने बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है।
अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी में भर्ती कर रहे हैं। पिछले दो साल के आंकड़े बताते हैं कि किस तरह सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। बच्चों के पालकों की जेब ढीली ना हो, इसके लिए प्रशासन ने किताब व गणवेश खरीदी के लिए एक से अधिक दुकानों का विकल्प रखने के निर्देश दिए हैं, लेकिन यह निर्देश फिलहाल हवा में है। वहीं निजी स्कूलों में अतिरिक्त भार बढ़ाया गया है। इसके तहत कक्षावार 12 से 13 प्रतिशत तक फीस में बढ़ोतरी की है और स्कूल बसों के किराए में भी मनमानी बढ़ोतरी की जा रही है।
30 प्रतिशत हो जाती है बढ़ोतरी
उल्लेखनीय है कि निजी स्कूल में एनसीईआरटी की किताबों से ज्यादा प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर जोर दिया जाता है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ये किताबें भी उन्हीं दुकानों के पास मिलती हैं, जो स्कूल तय करता है। वहीं ऐसे में अगर पालक गलती से किसी ओर पब्लिकेशन की वहीं किताब या मिलते-जुलते पाठ्यक्रम की अन्य किताब ले आए तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। वहीं हर वर्ष किताबों के खर्च में भी 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है, जो इस कमाई का बड़ा हिस्सा संबंधित स्कूलों में बतौर कमिशन भी पहुंचाया जाता है। इसके अलावा स्कूल की ओर से बताए गए दुकानदार के पास किताबों के लिए गए दामों का पक्का बिल भी देने से बचते है। दुकानदारों की ओर से प्रिंट रेट पर किताबें बेची जा रही है। कुल मिलाकर अभिभावकों पर निजी स्कूलों की मनमर्जी का बोझ बढ़ रहा है। वहीं बच्चों के भविश्य के आगे मजबूर अभिभावक भी शिकायत करने से कतराते हैं।
इसलिए एनसीईआरटी की किताबों पर रुझान नहीं
बता दें कि एनसीईआरटी की किताबों को निजी स्कूल इसलिए दरकिनार करते हैं, क्योंकि उसमें उनको कोई कमिशन नहीं मिलता। बुक डिपो की ओर से थोक विक्रेता यानी एजेंट को मूल्य में 20 फीसदी की छूट के साथ किताबें उपलब्ध होती है। नियमानुसार थोक विक्रेता को 15 प्रतिशत की छूट के साथ किताबें फुटकर विक्रेताओं को उपलब्ध कराना पड़ता है।
शासन के आदेश कागजों में सीमित
निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाने में जिला प्रशासन ने निर्देश जारी किए है। जिले के सभी अशासकीय मान्यता प्राप्त विद्यालय को भी आदेशित किया है कि वे अपने विद्यालय में विद्यार्थियों के उपयोग आने वाली पुस्तकें, प्रकाशक का नाम सहित प्रत्येक कक्षा में ली जाने वाली विद्यालय शुल्क की सूची अनिवार्य रूप से जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में भेजते हए इस सूची को विद्यालय के सूचना पटल पर भी प्रदर्शित करे। साथ ही शाला गणवेश व पुस्तकें उपलब्ध कराने वाली कम से कम 5-5 दुकानों के नाम भी सूचना पटल पर प्रदर्शित करेंगे, जिससे पालक इच्छित जगह से गणवेश एवं निर्धारित पुस्तक क्रय कर सके।
ये बोले अभिभावक
मोहित यादव ने बताया कि इस समय प्राइवेट स्कूलों की मनमानी चरम पर है। अभिभावक जब कोर्स लेने मार्केट में जाते है तो पाते हैं कि मनमाने रेट पर बुक सेल की जा रही हैं। पालकों को अपनी पसंद की बुक लेने की स्वतंत्रता नहीं है। चाहे फिर वह किताब जो पहले से ही आपके पास हो। जिससे कुछ खर्च कम हो सके। किताबों के साथ कॉपी भी जबरन खरीदवाई जा रही हैं। जो स्कूल ने निर्धारित की हैं। प्रशासन के उदासीन रवैए के कारण पालक लाचार है और उसे मजबूरीवश यह सब करना पड़ रहा है।
डीजल के बढ़ते दाम ने बढ़ाया किराया
बच्चे को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना उसका अधिकार है। लेकिन यह कर्तव्य इन दिनों अभिभावक नहीं निभा पा रहे हैं। इसके एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। प्राइवेट स्कूलों की भारी भरकम फीस, महंगा कोर्स और ड्रेस के बाद बच्चे को स्कूल भेजने का खर्च भी बढ़ गया है। क्योंकि पेट्रोल और डीजल दोनों के दाम निरंतर बढ़ते ही जा रही हैं। हर दिन बढ़ते दामों के बीच ऑटो चालक भी किराया बढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं। ऑटो चालकों ने बताया कि वे पहले एक महीने का किराया 700 से 800 रुपए प्रति बच्चा लेते थे लेकिन अब वे 900 से एक हजार रुपए मांग रहे हैं। लेकिन अभिभावक देने को राजी नहीं है। वह खुद अपनी कई तरह की परेशानी बताता है लेकिन वह अपनी परेशानी किसे बताएं। यदि वे स्कूली बच्चों को लाने ले जाने का काम ले लें तो वे दूसरा काम नहीं कर पाते। क्योंकि बच्चों को छोडऩे का काम बहुत जिम्मेदारी वाला है। समय पर पहुंचना होता हैै कोई छुट्टी भी नहीं मना पाते।