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अजीत सिंह डेथ एनिवर्सिरी: मंत्री बनने वाले देश के पहले IITian, किसान जिन्हें कहते थे ‘म्हारा छोटा चौधरी’

Ajit Singh Death Anniversary: चौधरी अजीत सिंह की पढ़ाई IIT से हुई तो नौकरी उन्होंने अमेरिका में की।

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अजीत सिंह बागपत से सांसद चुने जाते थे। वो भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों में मंत्री रहे।

चौधरी चरण सिंह के घर पैदा हुए अजीत सिंह राजनीति में काफी बाद में आए। राजनीति में उतरकर पिता की विरासत संभालने से पहले वो 60 और 70 के दशक में देश के बेहतरीन इंजीनियरों में शुमार थे। किसानों के छोटे चौधरी अजीत सिंह दुनिया की प्रतिष्ठित कंपनी IBM में काम करने वाले शुरुआती भारतीयों में थे। अमेरिका से आकर राजनीति में उतरे अजित सिंह की आज पुण्यतिथि है। अजित सिंह, दो साल पहले 2021 में 6 मई को दुनिया छोड़ गए थे।


अजीत सिंह ने राजनीतिक माहौल में खोली आंखें
12 फरवरी, 1939 में मेरठ में चौधरी चरण सिंह और गायत्री देवी के घर में अजित सिंह का जन्म हुआ। इस वक्त चौधरी चरण सिंह छपरौली से विधायक थे। अजीत सिंह ने जब तक होश संभाला तब तक चरण सिंह पश्चिम यूपी के बड़े किसान नेता बन चुके थे।

अजीत सिंह पढ़ने में बहुत होशियार थे। स्कूल खत्म करने के बाद उन्होंने आईआईटी खड़गपुर में दाखिला लिया। आईआईटी के बाद अजित सिंह अमेरिका के इलिनाइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी में पहुंचे और मास्टर्स किया। इसके बाद अमेरिका में ही नौकरी शुरू कर दी। 1960 के दशक में आईबीएम में अजीत सिंह नौकरी करने लगे थे, जो उस वक्त एक बहुत प्रतिष्ठा की बात थी।

पिता के बुलावे पर लौटे भारत
अजीत सिंह ने 17 साल तक अमेरिका में नौकरी की। भारत में चरण सिंह राजनीति का बहुत बड़ा चेहरा 60 और 70 के दशक में बन गए। 1979 में चरण सिंह पीएम भी बन गए। इसके बावजूद अजीत सिंह का मन अपनी इंजीनियरिंग में ही लगा रहा।

चौधरी चरण सिंह 1982 तक आते-आते 80 साल की उम्र को पार कर गए थे। उनकी सेहत बिगड़ने लगी तो अजीत सिंह को उन्होंने भारत आने के लिए कहा। अजीत सिंह की नौकरही अच्छी चल रही थी लेकिन पिता के साथ बुआ और बहनों ने भी कहा तो वो IBM छोड़ मेरठ आ गए।

चौधरी चरण सिंह ने 1986 में अजीत सिंह को राज्यसभा भेजा तो वो पहले आईआईटीयन सांसद थे। 1987 में चौधरी चरण सिंह की मौत हो गई, इसके बाद उनकी लोकसभा सीट बागपत और उनकी पार्टी दोनों का जिम्मा अजीत सिंह पर आ गया।


चरण सिंह का देहांत और लोकदल में टूट

साल 1987 के मई महीने में चौधरी चरण सिंह का देहांत हो गया। उस वक्त चरण सिंह की लोकदल में हेमवती नंदन बहुगुणा, कर्पूरी ठाकुर, मुलायम सिंह, शरद यादव, नाथूराम मिर्धा जैसे तमाम बड़े नेता थे।

इतने बड़े नेताओं में चरण सिंह के निधन के बाद फूट पड़ी और लोकदल टूट गई। एक तरफ बहुगुणा और मुलायम सिंह जैसे नेता चले गए तो एक ओर अजित सिंह।

अजीत सिंह लोकदल (ए) के अध्यक्ष बने। कुछ समय बाद पार्टी का विलय जनता पार्टी में कर दिया और जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 1989 में हुए चुनाव में अजीत सिंह बागपत से सांसद बने। इस चुनाव के बाद वीपी सिंह पीएम बने तो उनकी सरकार में अजीत सिंह को उद्योग मंत्री बनाया गया।


1991 में पीवी नरसिम्हाराव ने बनाया मंत्री
1991 में पीवी नरसिम्हाराव की सरकार में भी अजीत सिंह केंद्रीय मंत्री बने। 1996 का लोकसभा चुनाव आए तो अजीत सिंह ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया। खुद भी बागपत से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उतरे। कांग्रेस के साथ अजीत सिंह की ज्यादा ना बन सकी। कांग्रेस से अलग होकर भारतीय किसान कामगार पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाई।

1998 में राष्ट्रीय लोकदल बनाकर अजीत सिंह ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में अजीत सिंह को बड़ा झटका लगा जब वो भाजपा के सोमपाल शास्त्री से बागपत का चुनाव हार गए। हालांकि एक साल बाद ही उन्होंने वापसी की और 1999 में फिर से बागपत के सांसद बने।


वाजपेयी सरकार में भी बने मंत्री
2001 में अजीत सिंह एनडीए का हिस्सा बन गए। इसके साथ ही एक बार फिर कैबिनेट में अजीत सिंह की वापसी हुई। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अजीत सिंह कृषि मंत्री बने। केंद्र ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी अजीत सिंह की आरएलडी मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते उनकी सरकार में साझेदार रही।

2004 में राष्ट्रीय लोकदल को तीन सीटें मिलीं। इसके बाद 2009 का लोकसभा चुनाव अजीत सिंह ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। इस चुनाव में अजीत सिंह ने बेटे जयंत को मथुरा से चुनाव लड़ाया और वो जीते भी। 2009 में यूपीए की सत्ता में वापसी हुई तो अजीत सिंह भाजपा को छोड़ कांग्रेस के साथ आ गए। यूपीए-2 में अजीत सिंह उड्डयन मंत्री बने।

जयंत चौधरी के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह। IMAGE CREDIT:


अपने आखिरी दो चुनावों में मिली हार
चौधरी अजीत सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बुरा दौर देखा साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद। दंगों ने जाट और मुसलमान दोनों को ही उनसे दूर कर दिया। नतीजा ये हुआ कि 2014 में अजीत सिंह और जयंत दोनों अपनी सीटें हार गए।

2017 का विधानसभा चुनाव हुआ तो उसमें भी आरएलडी महज एक सीट पर सिमट गई। इसके बाद 2019 का चुनाव अजीत सिंह ने मुजफ्फरनगर से लड़ा, जिसमें वो केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान से हार गए।


2019-20 के बाद अजीत सिंह की तबीयत लगातार गिरती रही। उन्होंने खुद को सार्वजनिक जीवन से भी काफी हद तक दूर कर लिया। मई 2021 में अजीत सिंह को कोविड हुआ और 6 मई को छोटे चौधरी हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गए।

अतीज सिंह की बनाई पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की कमान फिलहाल उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में है। जयंत चौधरी राज्यसभा के सांसद हैं। पार्टी का लोकसभा में कोई मेंबर नहीं है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में राष्ट्रीय लोकदल के 9 और राजस्थान में 1 विधायक है।

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