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Ravana worship on Dussehra : यूपी के इस गांव में दशहरे को होती है लंकाधिपति की पूजा,ग्रामीणों के दिल में बसे महाज्ञानी रावण

locationबागपतPublished: Oct 05, 2022 07:24:51 pm

Submitted by:

Kamta Tripathi

Ravana worship on Dussehra रावण उर्फ बड़ागांव से लंकाधिपति रावण को लेकर दिलचस्प किस्सा जुड़ा है। यहां ग्रामीण दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाते नहीं बल्कि लंकाधिपति की पूजा करते हैं। ग्रामीणों की माने तो यहां बलशाली लंकाधिपति रावण पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी मंशा देवी माता की मूर्ति को नहीं उठा पाया था।

Ravana worship on Dussehra : यूपी के इस गांव में दशहरे को होती है लंकाधिपति की पूजा,ग्रामीणों के दिल में बसे महाज्ञानी रावण

Ravana worship on Dussehra : यूपी के इस गांव में दशहरे को होती है लंकाधिपति की पूजा,ग्रामीणों के दिल में बसे महाज्ञानी रावण

Ravana worship on Dussehra थाना खेकड़ा क्षेत्र में रावण उर्फ बड़ागांव के लोग लंकाधिपति रावण के प्रति बहुत गहरी आस्था और सम्मान रखते हैं। रावण के सम्मान में यहां न रामलीला का आयोजन होता है और ना रावण के पुतले का दहन होता है। यहां पर देवी मंशा का सिद्धपीठ मंदिर है। जिसके प्रांगण में रावण कुंड मौजूद है। बताया जाता है कि हिमालय से तपस्या के बाद लंका लौटते समय लंकाधिपति रावण ने जिस मार्ग का उपयोग किया था। उसकी खोज की जा रही है। इतिहासकार दशकों से इस पर शोध कर रहे हैं। रावण उर्फ बड़ागांव का नाम लंकाधिपति रावण से जुड़ा है।
बताया जाता है कि हिमालय पर तपस्या करके रावण ने देवी मंशा को प्रसन्न कर लिया था। इसके बाद रावण ने देवी मंशा से उनके लंका में स्थापित होने का वरदान मांगा। इस पर देवी ने शर्त रखी कि मैं मूर्ति के रूप में तुम्हारे कंधों पर सवार होकर लंका तक चलूंगी। यदि रास्ते में मूर्ति का भूमि से स्पर्श हो गया तो मैं वहीं प्रतिष्ठित हो जाऊंगी। रास्ते में बागपत के बड़ागांव के पास रावण को लघुशंका इच्छा हुई तो उसने यहां ग्वाले को मूर्ति को संभालने के लिए दे दी। असल में ग्वाला भगवान विष्णु थे। उन्होंने मूर्ति को जमीन पर रख दिया। रावण लौटा तो मूर्ति को उठाने का प्रयास किया।
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रावण के लाख प्रयासों के बाद देवी की मूर्ति भूमि से नहीं उठ सकी। इसके बाद रावण मां को प्रणाम कर लंका प्रस्थान कर गया। कहा जाता है कि देवी मां बड़ागांव में प्राचीन मंशा देवी मंदिर में विराजमान हैं। कहा जाता है तभी से बडागांव का नाम रावण पड़ गया। मंशा देवी मंदिर में विष्णु की प्राचीन मूर्ति मौजूद है। जिसे इतिहासकार आठवीं शताब्दी की बताते हैं। ग्राम प्रधान दिनेश त्यागी का कहना है कि भगवान राम में ग्रामीणों की पूरी आस्था है। लेकिन महाज्ञानी रावण ग्रामीणों के दिल में बसे हैं। मंशा देवी मंदिर परिसर में उनके नाम से रावण कुंड है। गांव में ना तो रामलीला होती है और यहां पर रावण दहन भी नहीं होता।

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दशानन बुराइयों का प्रतीक है। सीता हरण के बाद श्रीराम ने लंकेश को मार गिराया। लंकापति का नाम आते ही भले ही लोग घृणा करें। लेकिन बागपत जनपद के बडागांव को रावण के नाम से जाना जाता है। बड़ा गांव उर्फ रावण में दशहरा तो मनाया जाता है। गांव के रकबे में रावण कुंड के नाम से तालाब है। इसका जीर्णाेद्वार कराने का प्रयास किया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि रावण में लाख बुराईयां थी। लेकिन उनके नाम से गांव को पहचान मिली है। वह देवी और शिव के पक्के भक्त हैं। गांव में रावण की मूर्ति स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है।
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