
Nepali Elephants liked picturesque hues of Katarniaghat
बहराइच. जिले में नेपाल के वर्दिया जंगल से खाता कारीडोर होकर भारतीय जंगल कतर्नियाघाट में विचरण करने आने वाले जंगली हाथियों का झुंड दशकों से आता रहा है। कालांतर में इन हाथियों को यहां की सुरम्य छटाएं इस तरह रास आईं कि वे यहीं के होकर रह गए हैं और यहां से जाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। हाथियों ने इस जंगल को ही अपना प्राकृतिक आवास बना लिया है। अब वे कुछ दिनों के भ्रमण कर भले ही चले जाएं, किन्तु वे नेपाल लौटते ही नहीं हैं। आमतौर पर झुंड में रहने पर हाथी हमला नहीं करते हैं। टस्कर हाथी भी अकेला होने पर ही हमला करता है। भूखा होने पर भोजन के तलाश में ही हाथी घरों या खेतों में धावा बोलते हैं। हाथियों को नमक, अनाज और गन्ना बहुत प्रिय है। भूख लगने पर जहां उन्हें भोजन मिलने की संभावना नजर आती है वह उन स्थानों पर हमला करते हैं।
बता दें कि वन्य प्राणियों में हाथी सबसे ज्यादा समझदार जानवर है। एक बार गौर से देख कर वह ताड़ लेता है कि उसकी ओर आने वाला हमलावर है या उसका हितैषी। हाथियों का सामाजिक ढ़ांचा बहुत मजबूत होता है। हाथियों में मनुष्य की तरह ही भावनाएं होती हैं। झुंड में होने पर वह कभी आक्रामक नहीं होते वरन काफी शान्त रहते हैं। झुंड में होने पर वे हमले भी नहीं करते हैं। भोजन या पानी की तलाश में जब वे कई हिस्सों में बंट जाते हैं। ऐसे में अकेला होने पर किसी को अपनी ओर आता देख कर वह हमला कर सकते हैं, किन्तु हमला करना उनके स्वभाव में नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का कहना है कि हाथी अपने बच्चों की सुरक्षा के प्रति बहुत ही संवेदनशील होते हैं। कोई जानवर या मनुष्य उनके बच्चे पर हमला न कर दे। इसलिए उनका झुंड बच्चों को चारों ओर से घेरकर खड़ा होता है। अकेला होने पर नर हाथी में हमला करने की प्रवृति भी देखी गई है। भोजन की तलाश में नर अथवा टस्कर हाथी कई बार घर गिरा देता है। खेत में लगी फसलों को भी तहस नहस कर देता है। कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग 550 वर्ग किलोमीटर में फैला है किन्तु इस जंगल की चौड़ाई बहुत कम अर्थात 5, 8, 12 व 20 किमी में है। इसके विपरीत नेपाल का वर्दिया जंगल इसके दो गुना अर्थात 1000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। वर्दिया जंगल का इतना विशाल क्षेत्र फल होने के बावजूद भी न जाने किस खाशियत की वजह से हाथियों को कतर्नियाघाट की सुरम्य छटाएं रास आ रही हैं।
हाथियों की खूब पसंद आई यहां की आबोहवा
ग्रामीण लोगों का यह भी कहना है कि पहले के समय में हाथी नेपाल के वर्दिया जंगल से खाता कारीडोर होकर भारतीय जंगल कतर्नियाघाट आते हैं और कुछ समय बिताने के बाद लौट जाते थे। हाल के वर्षों में उन्हें यहां की खूबसूरत वादियां और आबोहवा इस कदर रास आई कि वे यहीं के होकर रह गए। तराई इलाके में इनके आने का पुराना इतिहास रहा है। इनके परम्परागत गलियारों पर कब्जा कर कालांतर में लोगों ने वहां बस्तियां बना ली हैं। अपने परम्परागत रास्ते में पड़ने वाली बस्तियों को रौंदते हुए आगे बढ़ जाते हैं। जिससे लोगों का काफी नुकसान होता है और इसके साथ ही कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।
गांवों में तेजी से हो रहा है हाथियों का मूवमेंट
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी दबीर हसन बताते हैं कि जंगली हाथियों को स्वछंद विचरण के लिए एक बड़े भू-भाग की आवश्यकता होती है। एक जंगल से दूसरे जंगल तक जाने के लिए यह प्राकृतिक गलियारों का इस्तेमाल करते हैं। वर्तमान समय में जंगलों में बढ़ती इंसानी गतिविधियों के कारण इनके जैविक मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं। इस कारण इनका मूवमेन्ट अब गांवों की ओर तेजी से हो रहा है, कई बार भोजन के तलाश में भी यह गांवों का रुख कर लेते हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, वन्य जीवों के इस्तेमाल करने वाले कॉरिडोर पर कार्य कर रहा है। कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में वर्ष 2019 में 100 हाथियों का झुंड था। पिछले दो सालों में इस जंगल में 2, नेपाल में 1 व लखीमपुर खीरी के जंगल में एक हाथी की मौत हो गई है। वर्तमान में यहां करीब 65 से 70 तक हाथी व उनके बच्चे होने चाहिए।
Published on:
27 May 2021 02:35 pm
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