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एशिया की सबसे बड़ी ताम्र खदान के अस्पताल में सुविधाओं का टोटा

कर्मचारियों के घायल या बीमार होने पर अन्य अस्पतालों की लेनी पड़ रह शरण सर्व सुविधायुक्त अस्पताल और मेडिकल स्टॉफ की दरकार

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कर्मचारियों के घायल या बीमार होने पर अन्य अस्पतालों की लेनी पड़ रह शरण

कर्मचारियों के घायल या बीमार होने पर अन्य अस्पतालों की लेनी पड़ रह शरण

जिले के बिरसा क्षेत्र की हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड मलाजखंड माइन एशिया की सबसे बड़ी तांबे की खुली खदान है। यहां अच्छी गुणवत्ता का कॉपर निकलने से देश में मांग अधिक होती है। इससे एचसीएल को काफी मुनाफा भी होता है। लेकिन इसी एचसीएल के अस्पताल में 21 वीं सदी में सुविधाओं का भारी टोटा बना हुआ है। सर्व सुविधायुक्त अस्पताल, प्रशिक्षित मेडिकल स्टॉफ के साथ ही टेक्नीकल उपकरणों की भी भारी कमी बनी हुई है। कारण यहीं है कि छोटी मोटी बीमारी या किसी मजदूर और कर्मचारी के घायल होने पर अन्य अस्पतालों की मदद लेनी पड़ती है। ऐसे में अधिकांशतह: घायलों को रेफर किया जाता है। हालाकि में एचसीएल में हुए एक बस हादसे के दौरान भी कुछ इसी तरह का नजारा सामने आया है।

11 नवंबर को एसएमएस कंपनी जो एचसीएल में अंडर ग्राउंड में कार्यरत है। यहां एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और करीब 25 कर्मचारी घायल हो गए। इनमें चार कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। जिन्ळें प्राथमिक उपचार के बाद गोदिया व कुछ को भिलाई रेफर किया गया। इस हादसे के बाद एचसीएल प्रबंधन के अस्पताल और सुविधाओं को लेकर सवाल उठाए गए। वहीं एचसीएल के अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं, स्टाफ की मांग भी की जा रही है।

अधिक दूरी बनी समस्या.

मलाजखंड ताम्र परियोजना में कार्यरत कर्मचारियों और मजदूरों की माने तो एचसीएल प्रबंधन आज भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। गंभीर मरीजों को बालाघाट, गोदिया, भिलाई या रायपुर रेफर किया जाता है। जिनकी दूरी मलाजखंड से बालाघाट की दूरी 95 किमी, गोदिया की 170, भिलाई 150 किमी की है। इतनी लंबी दूरी तय करने के दौरान मरीज की तबियत अधिक खराब हो जाती है। गंभीर घायलों पर जान माल का खतरा भी बना रहता है। बावजूद इसके एचसीएल प्रबंधन इस अति आवश्यक सुविधाओं के विस्तार को लेकर कोई कारगर कदम नहीं उठा रहा है, जो बड़ा सवाल है।