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बालाघाट

जिम्मेदारों की उदासीनता की भेंट चढ़ा बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर

वन विभाग का प्रचार प्रसार पर नहीं ध्यान

बालाघाटMar 24, 2025 / 09:15 pm

mukesh yadav

वन विभाग का प्रचार प्रसार पर नहीं ध्यान

वन विभाग का प्रचार प्रसार पर नहीं ध्यान

बालाघाट. इसे जिम्मेदारों की लापरवाही कहे या अधिकारियों का उदासीन रवैया जिले में बांस से बनी सामग्रियों का व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है। शायद यही वजह है कि वन विभाग द्वारा बांस से बनवाई गई विभिन्न सामग्रियों की खपत उम्मीद के अनुसार नहीं हो रही है। बांस से बनी सामग्रियों की बिक्री के लिए बनाया गया बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। प्रचार प्रसार की कमी से लोग बांस से बनी सामग्री खरीदनें सेंटर तक नहीं पहुंच रहे हैं। कुछ पहुंच रहे हैं, वे उत्पादकों की कीमत अधिक होने से स्वत: ही दूरी बना रहे हैं। बांस से विभिन्न प्रकार की सामग्री बनाने वाले कारीगरों के रोजगार पर व्यापक असर पड़ रहा है। बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर भी औचित्यहीन नजर आ रहा है।
जानकारी के अनुसार जिले के वन उत्पादों में बांस अपनी खासियतों से देश-दुनिया में पहचाना जाता है। बांस उत्पादन और इससे बनने वाले आकर्षक सामग्रियों के निर्माण के लिए केंद्र भी बनाए गए हैं, लेकिन जिले के कारीगरों की कड़ी मेहनत के बाद भी बांस के उत्पादों को उम्मीद के मुताबिक खरीदार नहीं मिल रहे हैं। पुलिस लाइन रोड स्थित बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर के हाल यही बता रहे हैं।

यह है पूरी परियोजना

जानकारी के अनुसार राज्य बांस मिशन भोपाल के सहयोग से दक्षिण वनमंडल बालाघाट के अंतर्गत ग्रीन बांस शिल्पकार संघ सीएफसी सेंटर गर्रा में इन उत्पादों का निर्माण होता है। यहां जिले के बांस शिल्पकार अपने हुनर के दम पर बांस को विभिन्न आकार व रंग देते हैं। इन्हें इस सेंटर में विक्रय के लिए रखा जाता है। इन सामग्रियों का प्रचार प्रसार व बिक्री ही नहीं होगी, तो इसका सीधा असर कारीगरों पर पड़ता है। कारीगर भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

इन सामग्री का निर्माण

समीपस्थ गर्रा के सेंटर में बांस से एक से बढकऱ एक उत्पाद बनाए जाते हैं, रेंज आफिस के पास के सेंटर पर प्रदर्शित व विक्रय के लिए रखा गया है। यहां आरामदायक कुर्सी, पलंग, सोफा सेट, कुर्सी, टेबल, सजावटी सामान जैसे उत्पाद हैं, जो सिर्फ बांस से बने हैं।

लोगों की पहुंच से दूर उत्पाद

बांस उत्पादक जिले में बांस से बनी सामग्रियों की डिमांड ना हो ऐसा नहीं हो सकता। बल्कि जिले में बांस से बनी इन सामग्रियों की भारी मात्रा में डिमांड है। लेकिन इसके दाम अधिक होने से लोगों ने इससे दूरी बना रखी है। बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर में खरीदारों का कभी कभार या न के बराबर पहुंचना, ये बताता है कि बांस के उत्पादों को लेकर किए जा रहे प्रचार-प्रसार के प्रयास अपर्याप्त हैं।

बहुत कम हो रहा व्यापार

सेंटर में बांस से बने दैनिक उपयोग से लेकर घर को सजाने तक के बांस से बने उत्पाद विक्रय के लिए प्रदर्शित किए गए हैं। विडंबना है कि यहां आमतौर पर कुछ लोग ही खरीदारी करने पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर पता चला कि महीने भर में कितने का कारोबार होगा, ये तय नहीं है। कभी दो हजार तो कभी पांच से दस हजार की बिक्री होती है।

दाम कम करने की जरूरत

बताया गया कि आम लोगों तक प्रचार की कमी से कईं दिनों तक इस सेंटर में एक ग्राहक भी नहीं पहुंचता। जो आता है, वह ऊंचे दाम के कारण उल्टे पांव लौट जाता है। यदि बांस से बनी सामग्रियों के दाम कम कर दिए जाएं और इसका व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार किया जाए, तो इससे न सिर्फ वन विभाग को फायदा होगा। बल्कि जो कारीगर बांस से विभिन्न प्रकार की सामग्रियां बनाने का कार्य कर रहे हैं, उनके रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।
वर्सन
बांस उत्पाद सामग्रियों की बिक्री बढ़ाने वन विभाग द्वारा इसका व्यापक प्रचार प्रसार नहीं किया जा रहा है। बांस से बनी सामग्रियों की बिक्री के लिए बनाया गया बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर महज शोपिश बनकर रह गया है। जिस पर जिम्मेदार अधिकारियों का कोई ध्यान नहीं है।
इकबाल एहमद कुरैशी, गणमान्य
समय-समय पर जिले व प्रदेश में लगने वाले बड़े शिविरों व मेलों में यहां के बांस उत्पाद रखे जाते हैं। वहां अच्छी बिक्री भी होती है। इससे स्पष्ट हैं कि बांस उत्पाद के शौकीन भी बहुत संख्या में है। इस सेंटर को बेहतर बनाने व विक्रय बढ़ाने भी प्रयास किए जा रहे हैं।
सुभाष जगने, शिल्पकार व सेंटर प्रभारी

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