यह है पूरी परियोजना
जानकारी के अनुसार राज्य बांस मिशन भोपाल के सहयोग से दक्षिण वनमंडल बालाघाट के अंतर्गत ग्रीन बांस शिल्पकार संघ सीएफसी सेंटर गर्रा में इन उत्पादों का निर्माण होता है। यहां जिले के बांस शिल्पकार अपने हुनर के दम पर बांस को विभिन्न आकार व रंग देते हैं। इन्हें इस सेंटर में विक्रय के लिए रखा जाता है। इन सामग्रियों का प्रचार प्रसार व बिक्री ही नहीं होगी, तो इसका सीधा असर कारीगरों पर पड़ता है। कारीगर भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।इन सामग्री का निर्माण
समीपस्थ गर्रा के सेंटर में बांस से एक से बढकऱ एक उत्पाद बनाए जाते हैं, रेंज आफिस के पास के सेंटर पर प्रदर्शित व विक्रय के लिए रखा गया है। यहां आरामदायक कुर्सी, पलंग, सोफा सेट, कुर्सी, टेबल, सजावटी सामान जैसे उत्पाद हैं, जो सिर्फ बांस से बने हैं।लोगों की पहुंच से दूर उत्पाद
बांस उत्पादक जिले में बांस से बनी सामग्रियों की डिमांड ना हो ऐसा नहीं हो सकता। बल्कि जिले में बांस से बनी इन सामग्रियों की भारी मात्रा में डिमांड है। लेकिन इसके दाम अधिक होने से लोगों ने इससे दूरी बना रखी है। बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर में खरीदारों का कभी कभार या न के बराबर पहुंचना, ये बताता है कि बांस के उत्पादों को लेकर किए जा रहे प्रचार-प्रसार के प्रयास अपर्याप्त हैं।बहुत कम हो रहा व्यापार
सेंटर में बांस से बने दैनिक उपयोग से लेकर घर को सजाने तक के बांस से बने उत्पाद विक्रय के लिए प्रदर्शित किए गए हैं। विडंबना है कि यहां आमतौर पर कुछ लोग ही खरीदारी करने पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर पता चला कि महीने भर में कितने का कारोबार होगा, ये तय नहीं है। कभी दो हजार तो कभी पांच से दस हजार की बिक्री होती है।दाम कम करने की जरूरत
बताया गया कि आम लोगों तक प्रचार की कमी से कईं दिनों तक इस सेंटर में एक ग्राहक भी नहीं पहुंचता। जो आता है, वह ऊंचे दाम के कारण उल्टे पांव लौट जाता है। यदि बांस से बनी सामग्रियों के दाम कम कर दिए जाएं और इसका व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार किया जाए, तो इससे न सिर्फ वन विभाग को फायदा होगा। बल्कि जो कारीगर बांस से विभिन्न प्रकार की सामग्रियां बनाने का कार्य कर रहे हैं, उनके रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा।बांस उत्पाद सामग्रियों की बिक्री बढ़ाने वन विभाग द्वारा इसका व्यापक प्रचार प्रसार नहीं किया जा रहा है। बांस से बनी सामग्रियों की बिक्री के लिए बनाया गया बैंबू इंटरप्रिटेशन सेंटर महज शोपिश बनकर रह गया है। जिस पर जिम्मेदार अधिकारियों का कोई ध्यान नहीं है।
इकबाल एहमद कुरैशी, गणमान्य
सुभाष जगने, शिल्पकार व सेंटर प्रभारी