https://fb.watch/d67iNyhhF6/ बालाघाट. जल है तो कल है, जल है तो जीवन है। चिंता और मनन करने का समय आ गया। आज की समझदारी आने वाली पीड़ी के लिए वरदान साबित होगी। कुछ ऐसी चिंता अब भू जल विद व्यक्त करते सुनाई देने लगे हैं। जिनका कहना है कि बीते दस वर्ष में जल का स्तर 50 फीट से भी अधिक नीचे चला गया है। धरती से पानी का दोहन ऐसे ही होते रहा और जल संरक्षण की यही गति रही, तो जिले में पानी की स्थिति बहुत अधिक भयावह बन सकती है। अब समय आ गया है कि जल संरक्षण की बातों को गंभीरता से लिया जाए।
भूजल विदों की माने तो आगामी 25 वर्ष यानि वर्ष 2047 तक धारती में जल नहीं बचेगा। यह स्थिति प्राकृतिक जल स्त्रोतों को नहीं सहेजने, पानी का बेजा दुरूपयोग और बारिश के जल को संग्रहित नहीं करने से उत्पन्न हो सकती है। भूजल विद आज भी जल संरक्षण कर भूमिगत जल को आसानी से बचाने की बात कर रहे हंै। इसके लिए शासन और प्रत्येक आदमी को जागरुक होने की सलाह देते हंै। वरना भविष्य में होने वाली परेशानी के लिए तैयार करने की बात कर रहे हैं।
एक पनघट पूरा गांव
शहर के पुरातत्व शोध संग्रहालय के भूगर्भ विद बताते हंै, एक समय था जब एक कुएं से पूरा गांव पानी पीता था। आज कुएं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। लोग बोरवेल पर निर्भर हो चुके हंै। बोरवेल खुदवाना बुरी बात नहीं है, लेकिन जल संरक्षण नहीं करना चिंता का विषय है।
ऐसे गिर रहा जल स्तर
जानकारों के अनुसार आज भी जिले में कोई कुआं खोदता है तो तीस से चालीस फीट पर आसानी से पानी लग जाता है। बावजूद इसके बोरवेल खुदवाते समय सौ फीट तक खुदाई करना आम बात हो गई है। अधिक पानी की चाह में लोग दो सौ फीट तक खुदाई करने से परहेज नहीं करते। अधिक खुदाई के कारण पानी का स्तर कम होते जा रहा है।
मिट्टी की परेशानी
जिले में जल स्तर कम होने के पीछे मिट्टी को भी परेशानी बताया जा रहा है। दरअसल जिले की मिट्टी पानी एकत्रित करने की क्षमता कम रखती है। मतलब मिट्टी पानी नहीं सोखती, इस कारण भूमि में जल की बहुत कम मात्रा ही जा पाती है। ऐसे में पानी का दोहन और बोरवेल खुदाई का स्तर इसी तरह जारी रहा, तो पानी संग्रहण कम और दोहन अधिक होगा।
छत का पानी जमीन में
भू जल विदों के अनुसार अनुसार जिले की मिट्टी में सबसे बड़ी खामी यह है कि मिट्टी पानी नहीं सोखती इस कारण तालाब मेें पानी एकत्रित नहीं रहता। बारिश के समय छत के पानी को बचाकर, तालाब में जल संरक्षण कर जल संरक्षण भूमिगत जल स्त्रोत को बढ़ाया जा सकता है।
टैक्स मेें छूट
बीते कई वर्षो से जिला प्रशासन और नगर पालिका छत के पानी को संरक्षित करने के लिए आगामी समय में मुहिम चलाने मकान टैक्स में रियायत देने की योजना बना रही है। योजना को अमल में नहीं लाने के कारण जनता भी जागरूता नहीं दिखा रही। इस कारण जल बचाने की शुरूआत कौन करें, इसका इंतजार करने के चक्कर में पानी कल की बात ना बन जाए, यह बड़ सवाल भी भविष्य में खड़ा हो सकता है।
जिम्मेदारी से परहेजभवनों में अनिवार्य रूप से वाटर हार्वेस्टिंग का जिम्मा नगरपालिका का है। लेकिन नगर पालिका द्वारा प्लांट लगाने में कोताही बरतकर भवन मालिक को इसे लगाने कहा गया है। इसके साथ ही भौतिक सत्यापन में खानापूर्ती से योजना कागजों तक सीमित रह गई है।
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