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परीक्षित जन्म, सुखदेव आगमन की कथा का किया बखान

संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन

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परीक्षित जन्म, सुखदेव आगमन की कथा का किया बखान

बालाघाट/नेवरगांव. समीपस्थ ग्राम पिपरिया बडग़ांव के शिव मंदिर प्रांगण में संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सत्संग समागम में कथा व्यास महाराज भुवन कृष्ण दुबे ने परीक्षित जन्म सुखदेव आगमन की कथा सविस्तार सुनाई।
महाराज भुवन कृष्ण दुबे ने बताया पांडवों के पुत्र अर्जुन, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा, जो राजा विराट की पुत्री थी। वह अभिमन्यु को ब्याही गई थी। युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांच पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। लेकिन वे पांडव ना होकर द्रोपदी के पांच पुत्र थे। जानबूझकर चलाए गए इस अस्त्र से उन्होंने उत्तरा को अपना निशाना बनाया। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा उस समय गर्भवती थी। बाण लगने से उत्तरा का गर्भपात हुआ और गर्भपात होने से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वे जब 60 वर्ष के थे एक दिन वे क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने उन्हें आवाज लगाई लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने प्रति उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु 7 दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ कथा विस्तार देते हुए महाराज श्री ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।