
ज्ञान और आचरण के बादशाह तो सदगुरू होते है- आचार्य विमर्श सागर
बालाघाट. बिना निमित्त के प्रज्ञा जागृत नहीं होती आत्मा ज्ञानवान है और इस आत्म स्वरूप को इंसान तभी जान पाता है जब उसे कोई सद्गुरू प्राप्त होते है। उक्त विचार महावीर भवन में विराजमान श्रवणाचार्य विमर्शसागर जी ने सकल जैन समाज को व्यक्त किया।
आचार्य विमर्श सागर ने कहा कि सिर्फ कषाय और असंयम ही प्राप्त होता है। जो मार्ग इसकी ओर ले जाए वह कुमार्ग है, सच्चा मार्ग तो वह है जो अंधकार से प्रकाश की ओर और असंयम से संयम की ओर ले जाता है। सच्चा मार्ग दुनिया में महज सद्गुरू के आगमन और निमित्त से ही प्राप्त होता है। दुनिया में ज्ञान बांटने वाले बहुत मिलेंगे पर सांसारिक प्राणी को उसके चरित्र व आचरण को सुधारने वाले और ज्ञान देने वाले महज सद्गुरू ही मिलेंगे। वहीं ज्ञान है जो तुम्हें चारित्र की ओर ले जाए अन्यथा ज्ञान भी बन्ध्या (बांझ) स्त्री की तरह होता है। जिस तरह बन्ध्या स्त्री निमित्त मिलने के बाद भी पुत्र को उत्पन्न नहीं कर पाती उसी तरह इस लोक में ऐसे अनेकों क्षयोपशम ज्ञानी है जिन्हें देवशास्त्र गुरू जैसे श्रेष्ठ निमित्त भी मिल जाए तो भी उनका ज्ञान, चारित्ररूपी पुत्र को उत्पन्न नहीं कर पाता। उन्होंने कहा कि बातों के बादशाह, आचरण के दरिद्र होते है, आचरण के बादशाह, बातों के अमीर होते है, मानों या ना मानो इस हकीकत को मित्रों, बातों व आचरणों के बादशाह सद्गुरू दिगम्बर होते है। उन्होंने कहा कि गुरू जब आपकी श्रद्धा की वेदिका पर विराजेंगे तो अंतरंग का तिमिर क्षण पर खो जाएंगा। गुरू के बिना ज्ञान होता नहीं है और ज्ञान होने पर गुरूर होता नहीं है। अंतरंग में गुरू है तो गुरूर नहीं होगा और गुरूर है तो गुरू नहीं होंगे इसलिए अहंकार मुक्त होकर सद्गुरू की शरण को प्राप्त होना चाहिए। सद्गुरू धरती पर र्दुलभ है सद्गुरू का घर समाज में ऐसे संत का आगमन का मतलब-कल्पवृक्ष, कामधेनु, काम कुंभ व चिंतामणि रत्नात्रय का आगमन, अहम का विसर्जन ही गुरू परमात्मा का सृजन है और अहंकार की मृत्यु से सत्य के दर्शन है। जब हम परमात्म गुरू के द्ववार पर घमंड को लेकर जाते है तो भक्ति व साधना करने पर भी परमात्म के साक्षात् दर्शन संभव नहीं है। जो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चारित्र के रत्नाधारी होते है वहीं सद्गुरू है।
Published on:
15 Jan 2019 06:26 pm
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