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साइन लैंग्वेज मूक-बधिरों के जीवन में आशा की एक नई किरण

शनिवार को अंतरराष्ट्रीय संकेत भाषा सप्ताह मनाया जा रहा है। वहीं मूक बधिरों के लिए बालोद में एकमात्र विद्यालय है, जिसका नाम पारसनाथ दिव्यांग स्कूल है और वहां के शिक्षक दुष्यंत साहू, जो कि खुद सुन और बोल नहीं पाते हैं पर उनकी कहानी सभी को प्रेरित करती है।

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अंतरराष्ट्रीय संकेत भाषा सप्ताह पर दिनेश की कहानी

संकेत भाषा की जानकारी देते दिनेश

बालोद. शनिवार को अंतरराष्ट्रीय संकेत भाषा सप्ताह मनाया जा रहा है। वहीं मूक बधिरों के लिए बालोद में एकमात्र विद्यालय है, जिसका नाम पारसनाथ दिव्यांग स्कूल है और वहां के शिक्षक दुष्यंत साहू, जो कि खुद सुन और बोल नहीं पाते हैं पर उनकी कहानी सभी को प्रेरित करती है। वो छत्तीसगढ़ डीफ एसोसिएशन में सचिव हैं और जिले में समन्वयक के रूप में कार्य कर रहे हैं।

जानिए दुष्यंत का संघर्ष
बालोद जिले के गुरुर नगर में रहने वाले दुष्यंत साहू के संघर्ष की कहानी अनोखी है। दुष्यंत बताते हैं कि वो बोल और सुन नहीं सकते लेकिन वे बहुत खुश हैं। दुष्यंत ने बताया कि उन्हें बचपन में सामान्य लोगों के विद्यालय में दाखिला दिलाया गया था, जहां काफी दिक्कतें होती थी। इसके बाद जैसे-जैसे उन्होंने संघर्ष किया और नागपुर गए। वहां साइन लैंग्वेज के बारे में जाना और सीखा। उसके बाद वापस छत्तीसगढ़ आए। यहां भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। इसके बाद इंदौर गए और वहां पर संकेत भाषा के लिए डिप्लोमा की पढ़ाई की और फिर काफी खुश हुए कि अब उनके जीवन में कुछ करने के लिए बेहतर अवसर है। आज साइन लैंग्वेज आम जीवन में भी बेहद आवश्यक है।

13 बच्चों को संकेत भाषा की शिक्षा दे रहे
दुष्यंत बताते हैं कि वह आज 13 बच्चों को संकेत भाषा की शिक्षा दे रहे हैं ताकि वह आत्मनिर्भर होकर अपना जीवन जी सकें । उन्हें देखकर कोई नहीं बोल सकता कि उनके जीवन में कोई समस्याएं हैं। समस्याएं हो सकती हैं परंतु वे आज एक सामान्य लोगों की तरह ही जीवन-यापन करते हैं। गाड़ी चलाते हैं, मोबाइल उपयोग करते हैं। आम जनता से रूबरू होते हैं। उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपनी नाकामियों में शामिल नहीं किया।

क्या है साइन लैंग्वेज
जो लोग बोल या सुन नहीं सकते। वे अपनी भावनाओं, आइडियाज और शब्दों को इशारों में समझाते हैं। इन इशारों को समझने के लिए प्रोफेशनल लेवल पर कई संस्थानों में साइन लैंग्वेज कोर्स करवाए जाते हैं। यह विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए बेहद अनिवार्य है। आज बालोद जिले के इस दिव्यांग विद्यालय में ऐसे बच्चे अपने जीवन के लिए उज्ज्वल भविष्य की नींव रख रहे हैं और उसमें दुष्यंत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

आम जन भी समझें संकेत भाषा
दुष्यंत और डीफ कम्युनिटी की यह इच्छा है कि आम जनता के बीच भी संकेत भाषा प्रचलन में आना चाहिए ताकि बोल व सुन पाने में अक्षम लोगों की भावनाएं उन तक पहुंच पाए। दुष्यंत ने विशेष जरूरतमंद वाले बच्चों के अधिकारों के लिए भी काफी लड़ाइयां लड़ी हैं। वह विभिन्न विभागों के चक्कर भी लगाते हैं। उन्हें उम्मीद है कि संकेत भाषा को सरकार भी हर जगह लागू करे।

विद्यालय को खुले अभी महज 6 माह हुए
पारसनाथ विद्यालय में वर्तमान में 13 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं और सभी संकेत भाषा में निपुण हो रहे हैं। इस विद्यालय को खुले अभी महज 6 माह हुए हैं। जैसे-जैसे लोगों को इसकी जानकारी होगी, उम्मीद है कि यहां पर संकेत भाषा सीखने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हो। इस विद्यालय में दुष्यंत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और इसका संचालन एक ट्रस्ट कर रही है।