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विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस : इस गांव की वजह से मजबूत हुआ पीडीएस, 30 साल बाद भी नहीं बदली ग्रामीणों की किस्मत

locationबलरामपुरPublished: Jun 07, 2023 12:33:22 pm

Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ के बीजाकुरा गांव में फरवरी 1992 में पंडो जनजाति के दो लोगों की भूख से मौत हो गई थी। तब हंगामे और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दौरे के बाद जून 1992 में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आरपीडीएस) लागू की गई। इस घटना के 30 साल बाद पत्रिका के सीनियर रिपोर्टरों ने वहां जाकर जायजा लिया और यह समझना चाहा कि वास्तव में गांव के हालात कितने बदले हैं।

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस : इस गांव की वजह से मजबूत हुआ पीडीएस, 30 साल बाद भी नहीं बदली ग्रामीणों की किस्मत, देखें वीडियो

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देवेंद्र गोस्वामी और प्रणय राज सिंह

Chhattisgarh News : बलरामपुर जिले के बीजाकुरा के बारे में आसपास के लोग भी नहीं जानते। उबड़-खाबड़ रास्तों से यहां तक पहुंचना वैसे ही मुश्किल है, जैसे सरकार की योजनाएं पहुंच रही हैं। गांव के शुरुआत में ही स्कूल है, वहां मिली पूर्व जनपद सदस्य पान कुंवर साहू से पूछने पर वह जकलीबाई के घर ले गई। (CG News) जकलीबाई का बेटा राम साय जंगल गया था लकड़ी काटने के लिए। 40 डिग्री तापमान में बाहर आंगन में निकली राम साय की पत्नी सीता कुंवर ने बताया कि उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर आज तक नहीं मिला है। (CG News Update) राम साय लकड़ी लेकर आता है, उसी से खाना पकाया जाता है। लकड़ी बेचकर ही अन्य खर्च चलाए जाते हैं।
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बिजली है पर बल्ब और तार के पैसे नहीं

सीता कुंवर ने बताया कि सरकारी योजना के तहत एक कमरे का आवास बना है लेकिन जमीन मिट्टी की है। गांव में बिजली पहुंच चुकी है। (cg news hindi) सरकार एकल बत्ती योजना के तहत फ्री में बिजली कनेक्शन देती है। लेकिन घर में खाने को नहीं है तो तार और बल्ब कहां से खरीदें।
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प्रधानमंत्री आए थे जकली के घर

तब छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिला (अब बलरामपुर जिला) मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर एक गांव है बीजाकुरा। जकलीबाई के बड़े भाई सुखराम पंडो ने रुंधे गले से बताया। जीजा (जकलीबाई के पति) की मौत पहले ही बीमारी से हो गई थी। कई दिनों तक खाना नहीं मिलने से बहन की भी मौत हो गई। अगले दिन 10 साल के बेटे (जकलीबाई का बेटा) की भी मौत हो गई। (cg news today ) इसके बाद गांव के बाहर तीन हेलीकॉप्टर से प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और कई लोग आए थे। जकलीबाई के दूसरे बेटे राम साय को अधिकारी अपने साथ अंबिकापुर ले गए थे। उसे पालन-पोषण के साथ पढ़ाया-लिखाया जाना था। लेकिन सालभर बाद ही उसे घर लाकर छोड़ दिया गया। कोदो-कुटकी, चावल खिलाकर किसी तरह रामसाय को जिंदा रखे हैं।
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