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Shiva Temple: बुंदेलखंड के इस जिले में एकमात्र शिवलिंग, जहां दूध, शहद और जल से नहीं होता है ‌अभिषेक, कारण जानते हैं?

Shiva Temple: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में एकमात्र शिवलिंग है। जहां दूध, शहद और जल का अभिषेक नहीं किया जाता है। यहां सिर्फ दूर से ही भगवान के दर्शन कर सकते हैं। जबकि शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं जल हैं। इसलिए उनके प्रतिरूप शिवलिंग पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है।

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Jalabhishek does not happen in this Shiva temple of UP

Shiva Temple: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में एकमात्र शिवलिंग है। जहां दूध, शहद और जल का अभिषेक नहीं किया जाता है। यहां सिर्फ दूर से ही भगवान के दर्शन कर सकते हैं। जबकि शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं जल हैं। इसलिए उनके प्रतिरूप शिवलिंग पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है। आइए आपको बताते हैं कि यहां शिवलिंग पर दूध, शहद और जल का अभिषेक क्यों नहीं किया जाता है। इससे पहले सावन के महत्व की जानकारी लेते हैं।

सावन में हुआ था समुद्र मंथन, निकली थी ये 14 बहुमू्ल्य चीजें
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की। विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। इस दौरान समुद्र से पारिजात, हलाहल विष, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, चंद्रमा, ऐरावत हाथी, रंभा, वारुणी, लक्ष्मीजी, कल्पवृक्ष, कामधेनू गाय, कौस्तुभ मणि, उच्चै:श्रवा घोड़ा और अमृत कलश आदि प्राप्त हुआ था।

विष के प्रभाव को जर्जर करने के लिए भगवान शिव ने कालिंजर में ही योग साधना की थी। कालिंजर पहाड़ी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच विंध्याचल की पर्वतमाला के अंतर्गत पांच पर्वत (मड़फा पर्वत, फ़तेहगंज पर्वत, पाथर कछार पर्वत, रसिन पर्वत एवं बृहस्पति कुण्ड पर्वत) के मध्य स्थित है। इसी पर्वत पर कंठ में विष धारण करके भगवान शिव स्वयं पधारे थे। यहां पर भगवान शिव ने कंठ में स्थित जहर को योग से समाप्त कर दिया था। यानी काल पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसलिए इस पर्वत को अब कालिंजर पर्वत के नाम से जाना जाता है। कालिंजर का अर्थ होता है ‘कल को जर्जर करने वाला'।

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मंदिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत
कालिंजर किला के मुख्य आकर्षणों में नीलकंठ मंदिर है। इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाली विशालकाय प्रतिमा के अलावा रखा शिवलिंग नीले पत्थर का है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाएं पत्थरों पर उकेरी गईं हैं। भगवान नीलकंठ मंदिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है। इस स्रोत से शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है।

अब जानते हैं यहां क्यों नहीं चढ़ाया जाता दूध और शहद?
बुंदेलखंड के अपराजेय कालिंजर किले में भगवान नीलकंठ का मंदिर है। यहां स्वयंभू नीले पत्थर का शिवलिंग है। जिसपर जलाभिषेक और दूध, शहद चढ़ाना मना है। कालिंजर किला पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। विभाग के संरक्षक सहायक सत्येंद्र कुमार ने बताया कि पुरातत्व वैज्ञानिकों के शोध में जलाभिषेक से शिवलिंग क्षरण की बात सामने आई है। इसी वजह से दूध, शहद और जल चढ़ाने पर रोक लगा दी गई।

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कालिंजर शोध संस्थान निदेशक अरविंद कुमार छिरौलिया ने बताया कि भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ओर से भगवान नीलकंठ शिवलिंग पर जलाभिषेक, दूध, दही और शहद चढ़ाने से रोक है। श्रद्धालु जलाभिषेक न कर सकें। इसके लिए शिवलिंग से करीब ढाई फीट दूरी से रेलिंग एएसआई की ओर से कराई गई है। इससे कोई भी श्रद्धालु शिवलिंग तक नहीं पहुंच सकता है। यहां दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को दूर से ही पूजा-अर्चना करनी होती है। पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व के चलते सावन में यहां रोजाना एमपी, यूपी से हजारों श्रद्धालु दर्शन को पहुंचते हैं।