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श्रवणबेलगोला में समाप्त हुआ बाहुबली का 88वां महामस्तकाभिषेक

7 फरवरी 2018 को आरंभ हुआ महोत्सव 220 दिनों तक चलासदी के दूसरे महामस्तकाभिषेक के समापन समारोह में हजारों श्रद्धालु पहुंचे

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श्रवणबेलगोला में समाप्त हुआ बाहुबली का 88वां महामस्तकाभिषेक

श्रवणबेलगोला. 220दिनों उपरांत इस शताब्दी के दूसरे और भगवान बाहुबली के 88वें महामस्तकाभिषेक का शुक्रवार को पारंपरिक विधानों के उपरांत समापन हो गया। श्रवणबेलगोला में प्रत्येक १२ वर्ष पर एक बार बाहुबली का महामस्तकाभिषेक होता है जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी एकल पत्थर से बनी बाहुबली प्रतिमा का विविध प्रकार का पूजन एवं भांति भांति के पदार्थों से अभिषेक किया जाता है।
जैन मठ श्रवणबेलगोला के प्रमुख चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी के निर्देशन में 88वें महामस्तकाभिषेक की शुरूआत इस वर्ष 7 फरवरी-2018 को हुई थी और करीब साढ़े सात महीनों तक विविध प्रकार के पूजन, अभिषेक एवं विधान होते रहे। महामस्तकाभिषेक के अंतर्गत अभिषेक का विधान 17 फरवरी को शुरू था जो 25 फरवरी तक चला था। इस दौरान देश विदेश के लाखों श्रद्धालु उपस्थित हुए थे। समापन अनुष्ठान के पूर्व भगवान बाहुबली सहित सभी २४ तीर्थंकरों की विशेष पूजा की गई जिसमें अभिषेक महत्वपूर्ण रहा।
गौरवमयी अतीत वाला महामस्कताभिषेक इस बार भी उपलब्ध्यिों और भव्य आयोजन का समागन बना। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जहां महामस्तकाभिषेक का उद्घाटन किया वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मादी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी सहित केन्द्र एवं राज्य सरकार के मंत्रिमंडल के कई सदस्य उपस्थित हुए। इसके अतिरिक्त भारत सहित पूरी दुनिया से जैन धर्मावलम्बी महामस्तकाभिषेक के गवाह बने।

108 कलश से हुआ अभिषेक
महामस्तकाभिषेक के समापन अवसर पर शुक्रवार को श्रद्धालुओं ने विशेष रूप से तैयार १०८ कलशों से प्रतिमा का अभिषेक किया। दूध, गन्ने का रस और केसर लेप से अभिषेक के विधान की शरुआत हुई। चंदन, हल्दी सिंदूर चढ़ाने के उपरांत प्रतिमा को सोने और चांदी जैसी बहुमूल्य धातु अर्पित की गईं।
981 ईस्वी में बनी थी प्रतिमा
हासन जिले के श्रवणबेलगोला स्थित बाहुबली की यह प्रतिमा ५७ फीट ऊंची है जो एकल पत्थर से निर्मित अपने किस्म की दुनिया की एकमात्र प्रतिमा है। श्रवणबेलगोला की पहाड़ी पर स्थित इस प्रतिमा को दस किलोमीटर दूर से ही देखा जा सकता है। जैन दर्शन के अनुसार गोमाता या बाहुबली जैनों के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र थे। कमल के फूल के आकार वाले आधार पर खड़ी ग्रेनाइट से बनी बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण 981 इस्वी में गंग राजवंश के शासन में हुआ था। मान्यता है कि प्रतिमा के निर्माण में 12 वर्ष का समय लगा था, इसलिए प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार महामस्तकाभिषेक होता है। एक अन्य धारणा के अनुसार बाहुबली की प्रतिमा बनवाने वाले चावुंडराय ने प्रत्येक १२ वर्ष पर महामस्तकाभिषेक कराने का निर्देश दिया था। जैन मान्यताओं में 12 का अंक भी अत्यंत शुभ माना जाता है।